55 केस, 2,530 आरोपियों और 1,980 गिरफ्तारी के बावजूद इस खूनी घोटाले का रहस्य दिन-प्रतिदिन गहराता ही जा रहा है. पिछले 3 दिनों में 3 रहस्यमयी मौतें और अब तक करीब 46 मौत के साथ इस घोटाले की कहानी में मानों सस्पेंस धीरे-धीरे बढ़ता ही जा रहा है... मध्यप्रदेश के राज्यपाल से लेकर मुख्यमंत्री, मंत्री और तमाम अधिकारी एक-एक करके सभी संदेह के घेरे में आते जा रहे हैं...निर्दोष अपनी जान गंवा रहे हैं और दोषियों का अभी तक कोई पता ठिकाना भी नहीं है...
भोपाल के लिंक रोड एक के किनारे बने खूबसूरत चिनार पार्क के खत्म होते ही जो रास्ता ऊपर चढ़ता है, बस वहीं है व्यापम यानी मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल का दफ्तर. कुछ साल पहले तक यह दफ्तर प्रदेश भर के बेरोजगारों की आशाओं का केंद्र होता था. पढ़े-लिखे नौजवान इस बिल्डिंग के सहारे अपने सपनों को पूरा होता देखने की आस संजोते थे, मगर आज यही दफ्तर भोपाल का सबसे बदनाम पता हो गया है. आखिर ऐसा हुआ क्या, जो अपने बनने के तैंतीस साल के भीतर ही एक सरकारी संस्था बेइमानी और बदइंतजामी का पर्याय हो गयी.....
दरअसल, 1982 से शुरू हुए व्यापम का काम प्रदेश के मेडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों के लिए प्रवेश परीक्षा कराना ही था. तब परीक्षाओं के मानदंड बड़े कड़े होते थे, इसलिए व्यापम की निप्पक्षता उन दिनों संदेह के परे थी. लेकिन 2008 में व्यापम से सरकारी नौकरियों की भर्तियां भी करायी जाने लगीं. शिक्षक, पुलिस कांस्टेबल, सब इंस्पेक्टर, फूड इंस्पेक्टर, वन रक्षक और जेल रक्षक सरीखी नौकरियों की परीक्षाएं भी व्यापम आयोजित करने लगा. इन परीक्षाओं का दबाव बढ़ते ही प्रदेश भर से ये शिकायतें भी आने लगीं कि व्यापम की ओर से आयोजित मेडिकल कॉलेज के दाखिले की परीक्षाओं में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा हो रहा है. पहचान छिपा कर परीक्षाएं दी जा रहीं है.
कुछ जिलों में नकली छात्र पकड़े भी गये और मुन्ना भाइयों के रूप में उनकी पहचान कर खबरें भी छपीं, लेकिन पहला बड़ा खुलासा हुआ 7 जुलाई, 2013 को इंदौर में डॉ जगदीश सागर की गिरफ्तारी के बाद. डॉ जगदीश मध्य प्रदेश में चल रहे मेडिकल कॉलेज में धांधलीबाजी के रैकट का सरगना निकला. उसके पास से काफी नगदी और ऐसे दस्तावेज बरामद हुए, जिनसे इस रैकेट की परतें खुलनी शुरू हुईं.
वह ठेके लेकर मेडिकल कॉलेज में दाखिला करवाता था, जिसमें उसकी पूरी मदद करते थे व्यापम में बैठे अफसर. इस रैकेट में पैसे लेकर छात्र को पास कराने के सारे इंतजाम होते थे. संबंधित छात्र का रोल नंबर इस तरह से रखा जाता था कि आसपास बैठे साल्वर उसे नकल कराते थे. कई दफा साल्वर ही नकली पहचान बना कर पेपर साल्व कर देते थे. छात्र अपनी कापी (ओएमआर शीट) यदि खाली छोड़ आये, तो उसे व्यापम में अंकों की फिर से जांच के नाम पर नंबर बढ़ा दिये जाते थे और यदि इसमें भी कुछ ना हो तब भी रिजल्ट की लिस्ट में नाम जोड़ कर मेडिकल कॉलेज में दाखिला करा दिया जाता था.
व्यापम मामले की जांच कर रहे एक अधिकारी की मानें तो धांधली के जितने तरीके हो सकते थे, सारे हथकंडे अपनाये जाते थे मनपसंद लोगों के दाखिले और चयन के लिए. मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए 15 से 25 लाख रुपये तक लिये जाते थे, जबकि पीजी सीट के लिए यह रकम चार गुना तक बढ़ जाती थी. जांच से यह बात सामने आयी है कि प्रदेश भर से इकट्ठी रकम व्यापम के चेयरमैन से लेकर परीक्षा नियंत्रक और तकनीकी विशेषज्ञ तक बांटी जाती थी. यह धांधली इतने बड़े पैमाने पर होती रही कि सन् 2012 की पीएमटी परीक्षा में 712, तो 2013 की परीक्षा में 876 फर्जी दाखिले सामने आये.
जब मेडिकल कॉलेज की सीटों में यह फर्जीवाड़ा चलने लगा, तो फिर व्यापम की दूसरी परीक्षाओं में भी यही तरीका अपना कर भर्तियां करायी जाने लगीं. व्यापम तकनीकी शिक्षा विभाग के अधीन दफ्तर था, इसलिए विभाग के मंत्री को इस फर्जीवाड़े की भनक लगी, मगर इसे बंद करने की जगह मंत्री के बंगले से भी मेडिकल कॉलेज से लेकर नौकरियों तक की सिफारिशें आने लगीं और पैसों के खेल में मंत्री उनका स्टाफ और व्यापम के लोग शामिल होने लगे.
मेडिकल कॉलेज में दाखिले की यह गड़बड़ी पकड़ी गयी, तो दूसरी सरकारी नौकरियों का फर्जीवाड़ा भी सामने आने लगा. घोटाले का दायरा बढ़ा तो इंदौर पुलिस से इस मामले की जांच सितंबर, 2013 में एसटीएफ को दे दी गयी. कोर्ट में जब इस घोटाले की अर्जियां लगीं, तो एसटीएफ की जांच हाइकोर्ट की निगरानी में होने लगी और फिर जब इस व्यापक घोटाले की सीबीआइ जांच की मांग उठी, तो हाइकोर्ट ने तीन सदस्यों की एसआइटी बना दी, जो एसटीएफ की नये सिरे से निगरानी करने लगी.
हालांकि, इस बीच में जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ी, व्यापम व्यापक होता गया. व्यापम के परीक्षा नियंत्रक पियूष त्रिवेदी और सिस्टम एनालिस्ट नितिन महिंद्रा के बाद तकनीकी शिक्षा मंत्री का ओएसडी ओपी शुक्ला गिरफ्तार हुआ, तो पूर्व तकनीकी शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा भी नहीं बच सके. शर्मा का करीबी और खनन कारोबारी सुधीर शर्मा भी जांच के चपेट में आया और अब सब जेल में है.
मध्यप्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव के बेटे शैलेश यादव के बाद खोजी पत्रकार अक्षय सिंह फिर जबलपुर मेडिकल कॉलेज के डीन और अब ट्रेनी सब इंस्पेक्टर अनामिका कुशवाहा की मौत ने जहां एक बार फिर इस घोटाले के संगीन होने का एहसास दिला दिया...पर सवाल है कि इस खूनी घोटाले का मास्टरमाइंड कौन है?
केवल इतना ही नहीं इस घोटाले की आंच राज्यपाल रामनरेश यादव से लेकर उनके बेटे शैलेश यादव समेत काफी नेताओ और वरिष्ठ अधिकारी पर आ चुकी है और जिसके बाद से ही घोटाले से जुड़े आरोपियों की संदिग्ध मौत का सिलसिला भी शुरू हो गया.
- व्यापम घोटाले की जांच कर रही स्पेशल टास्क फोर्स ने उच्च न्यायालय को कुछ समय पहले एक सूची सौंपी है, जिनमें बताया है कि 23 लोगों की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई है. एसटीएफ इन मामलों की जांच कर रही है.
- 10 मौतें सड़क दुर्घटना में.
- 11 मौतें बीमारी या अज्ञात कारणों से.
- तीन लोगों ने आत्महत्याएं कीं.
- जांच की निगरानी कर रही एसआइटी के प्रमुख सेवानिवृत न्यायाधीश चंद्रेश भूषण ने बताया है कि एसटीएफ के कुछ अधिकारियों को भी जान से मारने की धमकियां दी जा रही हैं. एसटीएफ के सहायक पुलिस महानिरीक्षक आशीष खरे और डीएसपी डीएस बघेल ने धमकी मिलने की बात कही है.
सबसे रहस्यात्मक मौतें
सबसे रहस्यात्मक मौतें
- शैलेश यादव : 50 वर्षीय शैलेश यादव राज्यपाल रामनरेश यादव के बेटे थे और व्यापम घोटाले के आरोपित भी थे. उन्हें राज्यपाल के लखनऊ आवास पर मार्च में मृत पाया गया था. पारिवारिक सदस्यों ने उन्हें डायबिटिक बताया और कहा कि सुबह उनके मरने की खबर हुई, पर कुछ रिपोर्टो में इसे जहर से हुई मौत कहा गया था. पोस्टमार्टम से भी मरने के कारणों का निर्धारण नहीं हो सका.
- विजय सिंह : जमानत पर रिहा चल रहे इस आरोपित की लाश छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में एक लॉज में पायी गयी थी. फार्मासिस्ट के रूप में सरकारी नौकरी करनेवाले सिंह के कमरे या भोजन में जहर या अन्य खतरनाक चीज नहीं पायी गयी थी. इनके परिवार ने मामले की जांच की मांग की है.
- नम्रता दामोर : इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज की छात्र नम्रता दामोर की लाश 7 जनवरी, 2012 को उज्जैन के पास रेल पटरी पर मिली थी. वह एक हफ्ते से कॉलेज से लापता थी. दामोर का नाम 2010 में कदाचार से मेडिकल परीक्षा पास करनेवालों संदिग्धों में था.
- डॉ डीके साकाले : साकाले जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज के डीन थे और इनकी मृत्यु जुलाई, 2014 में हुई थी. व्यापम घोटाले से जुड़े छात्रों के निलंबन के बाद हंगामे के कारण साकाले महीने भर की छुट्टी पर थे. खबरों के अनुसार, उन्हीं दिनों जलने के कारण साकाले की मौत हो गयी थी.
- रमेंद्र सिंह भदौरिया : इस वर्ष जनवरी में प्राथमिकी दर्ज होने के कुछ दिन बाद भदौरिया ने आत्महत्या कर ली. एक सप्ताह के बाद उसकी माता ने भी तेजाब पीकर आत्महत्या कर ली. परिवार का आरोप है कि भदौरिया पर घोटाले के सरगनाओं द्वारा चुप रहने के लिए बहुत दबाव डाला जा रहा था.
- नरेंद्र सिंह तोमर : इंदौर जेल में पिछले माह तोमर की मौत ने व्यापम को फिर चर्चा में ला दिया है.
- डॉ राजेंद्र आर्य : तोमर की मौत के 24 घंटे के अंदर ग्वालियर में आर्य की मृत्यु हो गयी. वे साल भर से जमानत पर थे.
इस घोटाले को लेकर चौतरफा सीबीआई जांच की मांग हो रही है और लोगों द्वारा तरह-तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं लेकिन इन सब के बावजूद अब देखना यह है कि आखिरकार इस घोटाले की गाज और कितने लोगों पर गिरेगी...और कितने लोग इसके घेरे में आएंगे...केवल इतना ही नहीं इस केस की फाइल अब और कितने बेगुनाहों के खून से सनेगी.
7 जुलाई, 2013 को मध्य प्रदेश के इंदौर में पीएमटी की प्रवेश परीक्षा में फर्जी परीक्षार्थियों के पकड़े जाने के साथ ही शुरू हुई इस रहस्यमयी फिल्म की कहानी में रोज नए नाम जुड़ते जा रहे हैं...रोज संदिग्धों की लिस्ट लंबी होती जा रही है और बेगुनाहों के खून से इस घोटाले की फाइल रंगती जा रही है.
व्यापम घोटाले में 55 केस दर्ज किये गये हैं, जिनमें 2,530 लोग आरोपित हैं, इनमें से 1,980 गिरफ्तार हो चुके हैं और 550 फरार हैं. इतने सारे केसों की सुनवाई के लिए प्रदेश में बीस से ज्यादा कोर्ट बनाये गये हैं. इस केस की व्यापकता का अंदाजा इस बात से भी लगता है कि लंबे समय से चल रहे इस घोटाले के कुल 42 आरोपित मौत के मुंह में जा चुके हैं.
पहली एफआइआर लिखे जाने से पहले ही 11 लोग मर चुके थे. दुर्घटना, बीमारी और डिप्रेशन से तो लोग मरे ही हैं, कुछ मौतें संदेह के दायरे में भी हैं, जिनकी जांच के आदेश एसआइटी ने दी है. मगर इन मौतों ने व्यापम घोटाले को देश-दुनिया की निगाहों में ला दिया है. अब उम्मीद की जा रही है कि इस महीने के आखिर तक 55 में से आधे से ज्यादा मामलों के चालान पेश कर दिये जायेंगे. लेकिन, केस को साबित करना भी जांच एजेंसी के लिए आसान नहीं होगा.
खैर मामले की जांच कर रही एसटीएफ की निगरानी के लिए हाईकोर्ट ने एसआईटी बनाई है...मामले की जांच जारी है और मैं कोई जज नहीं हूं इसीलिए मैं यह नहीं कह सकती कि इस खूनी घोटाले का मास्टरमाइंड कौन है लेकिन इतना जरुर कह सकती हूं जिस तरह से दिन-प्रतिदिन एक-एक करके यह घोटाला अपना विकराल रुप धारण कर रहा है और इस गुनाह के पन्नों पर एक-एक करके कई बेगुनाहों के खून के छिंटें पड़ते जा रहे हैं उससे यह तो साफ है कि यह मामला अभी शांत नहीं होने वाला है. यह किसी एक व्यक्ति या गिरोह का नहीं बल्कि एक बहुत बड़े मकड़जाल के द्वारा रची गई एक गहरी साजिश का परिणाम है जिसके गुनाहों पर पर्दा डालने के लिए रोज नए नए गुनाह किए जा रहे है जिसके चलते इसका रहस्य समय के साथ गहराता जा रहा है..... सही मायने में देखा जाए तो अभी तो हमने सिर्फ ‘व्यापम: खूनी घोटाला और रहस्यमयी मौतें’ का ट्रेलर ही देखा है…पूरी पिक्चर अभी बाकी है जनाब! #VyapamScam
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