Tuesday, 1 September 2015

ब्रह्मांड_का_रहस्य - Mystry of Universe


ब्रह्मांड की उत्पति का रहस्य वैज्ञानिक भी हैं और धर्मिक भी.. जिसका जिक्र हमारे ऋगवेद में हैं...
किंगमहान_एस्ट्रोफिजिसिस्ट और प्रोफेसर_स्टीफन_हॉकिंग ने अपनी नई किताब The_Grand_Design में जोरदारी के साथ कहा है कि ब्रह्मांड का निर्माण भगवान ने नहीं किया है।
प्रो_हॉकिंग ने लिखा है कि सृष्टि का निर्माण भगवान के बजाय भौतिकी के नियमों ने किया है। ब्रह्मांड का जन्म और इससे हमारा संबंध...
ये रहस्य जितना वैज्ञानिक है, उतना ही धार्मिक भी।
ब्रह्मांड का जन्म कैसे हुआ? कौन सी चीजें इसके लिए जिम्मेदार थीं? इसका मकसद क्या था? हमने क्यों जन्म लिया...हमारा मकसद क्या है?
The_Grand_Design में प्रो_हॉकिंग ने एस्ट्रोफिजिक्स की मदद से इन सवालों की गहराई से पड़ताल की है। ब्रह्मांड ईश्वर ने नहीं बनाया....तो फिर ये कैसे बना?
इसका जवाब हमारे ऋगवेद में सदियों पहले से दर्ज है....
ऋगवेद की ऋचाएं बिगबैंग के सिद्धांत की उदघोषणा करती हैं....
भारत एक खोज का शीर्षक गीत -
नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं नासीद्रजो नो व्योमा परो यत् ।
किमावरीव: कुह कस्य शर्मन्नम्भ: किमासीद्गहनं गभीरम् ।।
ब्रह्मांड के उदभव की सबसे वैज्ञानिक व्याख्या ऋगवेद में दर्ज है...ये और ऊपर की बातें मेरे निजी विचार नहीं हैं। बल्कि ये बातें मशहूर एस्ट्रोफिजिसिस्ट डॉ_कार्ल_सगान ने अपनी बेस्ट सेलर कॉस्मस में लिखी हैं।
कॉस्मस में डॉ_सगान लिखते हैं :-
The Hindu religion is the only one of the world's great faith dedicated to the idea that the Cosmos itself undergoes and immense, indeed an infinite number of deaths and rebirths. It is the only religion in which the time scales correspond, no doubt by accident, to those of modern scientific cosmology. Its cycles run from our ordinary day and night to a day and night of Brahma, 8.64 billion years long, longer than the age of the Earth or the Sun and about half the time since the Big Bang. And there are much longer time scales still.
यानि, वेदों की मान्यता है कि सृष्टि - रचना और प्रलय के अनंत चक्र में चलती है। वेदों में दिया गया सृष्टि रचना का समय, आधुनिक विज्ञान के सबसे करीब है.. ये चक्र खरबों साल का है। डॉ_कार्ल_सगान की तरह, फ्रिटजॉफ कापरा ने भी विज्ञान को लोकप्रिय बनाने में अहम योगदान दिया है।
इन्होंने वियना विश्वविद्यालय से Physics में रिसर्च की है। ब्रह्मांड के जन्म के बारे में कापरा का भी मानना है कि वेदों की कई मान्यतायें आधुनिक विज्ञान के सबसे करीब है।
कापरा अपनी किताब द_टॉओ_ऑफ_फिज़क्सि' में लिखते हैं :-
The Eastern mystics have a dynamic view of the universe similar to that of modern physics, and consequently it is not surprising that they, too, have used the image of the dance to convey their intuition of nature.The metaphor of the cosmic dance has found its most profound and beautiful expression in Hinduism in the image of the dancing god Shiva. Among his many incarnations, Shiva, one of the oldest and most popular Indian gods, appears as the King of Dancers. According to Hindu belief, all life is part of a great rhythmic process of creation and destruction, of death and rebirth, and Shiva's dance symbolizes this eternal life-death rhythm which goes on in endless cycles.
यानि, भारतीय दर्शन में ब्रह्मांड के उदभव की परिकल्पना फिजिक्स के नियमों के अनुसार ही है। मुझे इस बात पर जरा भी हैरानी नहीं होती कि प्राचीन भारतीय ऋषियों ने इस कॉस्मिक_डांस को समझाने के लिए शिव के नृत्य के प्रतीक का सहारा लिया।
शिव का नृत्य रचना-प्रलय...और जीवन-मृत्यु का अनूठा प्रतीक है। शिव का नृत्य इस सृष्टि को रचने वाले मूल कणों का नृत्य है।
भविष्यदृष्टा कहे जाने वाले महान वैज्ञानिक और लेखक आर्थर सी क्लार्क भी मानते हैं कि ब्रह्मांड के जन्म को लेकर सबसे वैज्ञानिक और सटीक अनुमान ऋगवेद में दर्ज है। भारतीय दर्शन में दी गई समय की अवधारणा के तो क्लार्क जबरदस्त प्रशंसक थे। अपनी किताब प्रोफाइल्सआफ द फ्यूचर में उन्होंने 'अबाउट टाइम' शीर्षक का एक पूरा खंड ही समय की भारतीय दार्शनिक अवधारणा को समर्पित कर दिया है...आर्थर सी क्लार्क इसमें लिखते हैं :-
Time has been a basic element in all religions ...Some faiths (Christianity, for instance) have placed creation and beginning of Time and very recent dates in the past, and have anticipated the end of the Universe in the near future. Other religions, such as Hinduism, have looked back through enormous vistas of Time and forward to even greater ones. It was with reluctance thatwestern astronomers realized that the East was right, and that the age of the Universe is to be measured in billions rather than millions of years – if it can be measured at all.
'यानि, दुनिया के सभी प्रमुख धर्मों में समय की अवधारणा मूलभूत है। ज्यादातर धर्मों में, खास तौर से ईसाई धर्म में सृष्टि की रचना और प्रलय की समय सीमा बहुत कम बताई गयी है।
जब कि भारतीय वैदिक दर्शन एकदम अलग है, क्योंकि इसमें समय की सीमा बहुत ज्यादा आंकी गई है। पश्चिमी खगोलशास्त्रियों ने अब जाकर बड़ी मुश्किल से माना है कि पूरब में आंकी गयी समय सीमा सही है और सृष्टि रचना की समय सीमा अगर वाकई आंकी जा सकती है तो उसे करोड़ों की बजाय खरबों में ही आंका जा सकता है।
समय की भारतीय वैदिक अवधारणा और ब्रह्मांड की उत्पत्ति और इसके विनाश के संबंध में एक प्राचीन भारतीय पहेली बेहद दिलचस्प है। इस पहेली का संकलन स्व.गुणाकर मुले जी ने गणित की पहेलियां नाम की अपनी किताब में भी किया है...
पहेली एक कथा की तरह है -'कथा बहुत प्राचीन है। उस समय काशी में एक विशाल मंदिर था। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने जब इस संसार की रचना की, तब उसने इस मंदिर में हीरे की बनी हुई तीन छड़ें रखी और फिर इनमें से एक में छेद वाली सोने की 64 तश्तरियां रखीं सबसे बड़ी नीचे और सबसे छोटी सबसे उपर। फिर ब्रह्मा ने वहां एक पुजारी को नियुक्त किया।
उसका काम था कि वह एक छड की तश्तरियां दूसरी छड़ में बदलता जाए। इस काम के लिए वो तीसरी छड़ का सहारा ले सकता था, लेकिन एक नियम का पालनजरूरी था। पुजारी एक समय केवल एक ही तश्तरी उठा सकता था और छोटी तश्तरी के उपर बड़ी तश्तरी वो नहीं रख सकता था। इस विधि से जब सभी 64 तश्तरियां एक छड़ से दूसरी छड़ में पहुंच जाएंगी, सृष्टि का अन्त हो जाएगा।
ये पहेली पहली नजर में बड़ी साधारण सी लगती है। आप कहेंगे - तब तो कथा की सृष्टि का अंत हो जाना चाहिए था। 64 तश्तरियों को एक छड़ से दूसरी छड़ में रखने में समय ही कितना लगता है।लेकिन, पहेली की गुत्थी यहीं से शुरू होती है। तश्तरियों को एक छड़ से दूसरे छड़ में बदलने का ये ब्रह्म कार्य इतनी जल्दी खत्म नहीं हो सकता।
मान लीजिए कि एक तश्तरी के बदलनेमें एक सेकेंड का समय लगता है। इसके माने यह हुआ कि एक घंटे में आप 3600 तश्तरियां बदल लेंगे। इसी प्रकार एक दिन में आप लगभग 100,000 तश्तरियों और 10 दिन में लगभग 1,000,000 तश्तरियां बदल लेंगे।
आप कहेंगे - "इतने परिवर्तनों में तो 64 तश्तरियां निश्चित रूप से एक छड़ से दूसरी छड़ में पहुंच जाएंगी।"लेकिन आपका ये अनुमान भी गलत है ।
उपरोक्त 'ब्रम्ह-नियम' के अनुसार 64 तश्तरियों को बदलने में पुजारी महाशय को कम से कम 5,00,00,00,00,000 (पांच खरब) साल लगेंगे।इस बात पर शायद यकायक आप विश्वास न करें ।
परन्तु गणित के हिसाब से कुल परिवर्तनों की संख्या 264-1, यानि 18,446,744,073,709,551,615 होती है। ये है हमारे प्राचीन विज्ञान की एक छोटी सी झलक।
इस सिलसिले में उपनिषद का एक श्लोक काफी दिलचस्प है -
"तस्मिन् ह विज्ञाने सर्वमिदं विज्ञान भवति"
यानि, सृष्टि का मर्म ही विज्ञान है, उसे जान लेने पर ही सबका ज्ञान हो जाएगा।

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