बरसात के मौसम में पानी भर जाने की वजह से कई तरह की बीमारियां जन्म लेती हैं। इसमें मलेरिया, जीका, चिकनगुनिया, डेंगू जैसे मच्छर से हाने वाली बीमारियां शामिल हैं। वैसे इस मौसम में सबसे ज्यादा कहर डेंगू बुखार का रहता है। यह बीमारी संक्रमित मादा एडीज एजिप्टी मच्छर के काटने से होती है।
डेंगू होने से पहले मरीज को तेज बुखार होता है। डेंगू बुखार के लक्षण में सिर दर्द, उल्टी, मतली, आंखों में दर्द और लाल चकत्ते शामिल हैं। गंभीर स्थिति में पेट दर्द, मसूड़ों या नाक से रक्तस्राव, मल या मूत्र में रक्त, सांस लेने में दिक्कत और थकान जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। यह एक ऐसी बीमारी है, जिसमें व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। हम आपको बता रहे हैं कि डेंगू बीमारी में पपीते के पत्ते का जूस कैसे फायदेमंद होता है।
डेंगू बुखार का उपचार - पपीते के पत्ते
पपीते के पत्ते का जूस डेंगू बुखार को ठीक करने का एक सिद्ध तरीका माना गया है। विटामिन-सी और एंटीऑक्सिडेंट का समृद्ध स्रोत पपीते के पत्ते इम्यून सिस्टम को बेहतर करने या बढ़ाने में बहुत ही मदद करते हैं। डेंगू बुखार में अक्सर प्लेटलेट्स की संख्या कम होने लगती हैं। इससे पीड़ित मरीज को तुरंत इलाज की जरूरत होती है। बता दें कि शरीर को पूरी तरह से व्यस्त रखने में प्लेटलेट्स का बड़ा योगदान होता है। प्लेटलेट्स छोटी रक्त कोशिकाएं होती हैं जो रक्तस्राव को रोकने के लिए आपके शरीर के थक्कों को बनाने में मदद करती हैं। डेंगू बुखार से ग्रसित व्यक्ति के यदि प्लेटलेट्स कम हो रहे हैं, तो पपीते के पत्ते ब्लड प्लेटलेट्स काउंट में सुधार करने में मदद कर सकते हैं।
पपीते के पत्ते का जूस कैसे बनाएं
1. इसके लिए आप एक कप पपीते के पत्ते लीजिए।
2. इसके बाद ओखली और मूसल के जरिए इसे पीसकर इसका जूस निकाल लीजिए। फिर इसे मरीज को दीजिए।
3. आप एक्सपर्ट की सलाह से इसमें शहद या फिर फलों का जूस मिला सकते हैं। इससे स्वाद बदल जाता है।
4. एक्सपर्ट की मानें तो प्लेटलेट्स कम होने की स्थिति में आप रोजाना तीन बार दो बड़े चम्मच पपीते के पत्ते का जूस पीजिए।
आदरणीय राष्ट्रप्रेमी भाईयों और बहनों आज मैं भारत में जारी एक बहुत बड़े षड़यंत्र के ऊपर आप लोगों का ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा जिसे आप “मौत का व्यापार” कह सकते हैं और ये व्यापार है अंग्रेजी दवाओं का, क्यों कि भारत अंग्रेजी दवाओं का Dumping Ground बन गया है | जो दवाई विश्व में कहीं नहीं मिलेगी वो भारत में आपको मिल जाएगी और ऐसी कई दवाये हैं जिनका कोई लेबोरेटरी टेस्ट भी नहीं हुआ रहता है और वो भारत के बाज़ार में धड़ल्ले से बिक रहा हैं | और हमेशा की तरह ये लेख भी परम सम्मानीय भाई राजीव दीक्षित जी के व्याख्यानों से जोड़ के मैंने बनाया है |भारत सरकार ने 1974 में श्री जयसुखलाल हाथी की अध्यक्षता में एक कमिटी बनाई थी, जिसे हम हाथी कमिटी या हाथी कमीशन के रिपोर्ट के रूप में जानते हैं और जिसे कहा गया था कि बाज़ार में कौन कौन से दवाएं हैं जो हमारे लिए सबसे जरूरी हैं और जिनके बिना हमारा काम नहीं चल सकता | हाथी कमिटी ने अपनी रिपोर्ट 1975 में तैयार कर सरकार को बताया कि भारत के मौसम, वातावरण और जरूरत के हिसाब से 117 दवाएं काफी जरूरी हैं | इन 117 दवाओं में छोटे बीमारी (खांसी, बुखार, आदि) से लेकर बड़ी बिमारियों (कैंसर) तक की दवा थी | कमिटी ने कहा कि ये वो दवाएं हैं जिनके बिना हमारा काम नहीं चल सकता | कुछ सालों बाद विश्व स्वस्थ्य संगठन (WHO) ने कहा कि ये लिस्ट कुछ पुरानी हो गयी हैं और उसने हाथी कमिटी की लिस्ट को बरक़रार रखते हुए कुछ और दवाएं इसमें जोड़ी और ये लिस्ट हो गया 350 दवाओं का | मतलब हमारे देश के लोगों को केवल 350 दवाओं की जरुरत है किसी भी प्रकार की बीमारी से लड़ने के लिए, चाहे वो बुखार हो या कैंसर लेकिन हमारे देश में बिक रही है 84000 दवाएं |
हमारे भारत में एक मंत्रालय है जो परिवार कल्याण एवं स्वास्थ्य मंत्रालय कहलाता है | हमारी भारत सरकार प्रति वर्ष करीब 23700 करोड़ रुपये लोगों के स्वास्थ्य पर खर्च करती है | फिर भी हमारे देश में ये बीमारियाँ बढ़ रही है | आइये कुछ आंकड़ों पर नजर डालते है –
भारत सरकार के आंकड़े बताते है कि सन 1951 में भारत की आबादी करीब 34 करोड़ थी जो सन 2012 तक 120 करोड़ हो गई है |
सन 1951 में पूरे भारत में 4780 अंग्रेजी डॉक्टर थे, जो सन 2012 तक बढ़कर करीब 18,00,000 (18 लाख) हो गयी है |
सन 1947 में भारत में एलोपेथी दवा बनाने वाली करीब 10-12 कंपनिया ही हुआ करती थी जो आज बढ़कर करीब 20 हजार हो गई है |
सन 1951 में पूरे भारत में करीब 70 प्रकार की दवाइयां बिका करती थी और आज इन दवाओं की संख्या बढ़कर करीब 84000 (84 हजार) हो गई है|
सन 1951 में भारत में बीमार लोगों की संख्या करीब 5 करोड़ थी आज बीमार लोगों की संख्या करीब 100 करोड़ हो गई है |
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हमारी भारत सरकार ने पिछले 64 सालों में अस्पतालों पर, दवाओ पर, डॉक्टर और नर्सों पर, ट्रेनिंग वगेरह वगेरह में सरकार ने जितना खर्च किया उसका 5 गुना यानी करीब 50 लाख करोड़ रूपया खर्च कर चुकी है | आम जनता ने जो अपने इलाज के लिए पैसे खर्च किये वो अलग है | आम जनता का लगभग 50 लाख करोड़ रूपया बर्बाद हुआ है पिछले 64 सालों में इलाज के नाम पर, बिमारियों के नाम पर | इतना सारा पैसा खर्च करने के बाद भी भारत में रोग और बीमारियाँ बढ़ी है |
हमारे देश में आज करीब 5 करोड़ 70 लाख लोग डाईबिटिज (मधुमेह) के मरीज है | और भारत सरकार के आंकड़े बताते है कि करीब 3 करोड़ लोगों को डाईबिटिज होने वाली है |
हमारे देश में आज करीब 4 करोड़ 80 लाख लोग ह्रदय सम्बन्धी विभिन्न रोगों से ग्रसित है |
करीब 8 करोड़ लोग कैंसर के मरीज है | भारत सरकार कहती है कि 25 लाख लोग हर साल कैंसर के कारण मरते है |
12 करोड़ लोगों को आँखों की विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ है |
14 करोड़ लोगों को छाती की बीमारियाँ है |
14 करोड़ लोग गठिया रोग से पीड़ित है |
20 करोड़ लोग उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure ) और निम्न रक्तचाप (Low Blood Pressure ) से पीड़ित है |
27 करोड़ लोगों को हर समय 12 महीने सर्दी, खांसी, जुकाम, कलरा, हैजा आदि सामान्य बीमारियाँ लगी ही रहती है |
30 करोड़ भारतीय महिलाएं एनीमिया की शिकार है | एनीमिया यानी शरीर में खून की कमी | महिलाओं में खून की कमी से पैदा होने वाले करीब 56 लाख बच्चे जन्म लेने के पहले साल में ही मर जाते है | यानी पैदा होने के एक साल के अन्दर-अन्दर उनकी मृत्यु हो जाती है | क्यों कि खून की कमी के कारण महिलाओं में दूध प्रयाप्त मात्र में नहीं बन पाता | प्रति वर्ष 70 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार होते है | कुपोषण के मायने उनमे खून की कमी, फास्फोरस की कमी, प्रोटीन की कमी, वसा की कमी, वगैरह-वगैरह …….
ऊपर बताये गए सारे आंकड़ों से एक बात साफ़ तौर पर साबित होती है कि भारत में एलोपेथी का इलाज कारगर नहीं हुआ है, एलोपेथी का इलाज सफल नहीं हो पाया है | इतना पैसा खर्च करने के बाद भी बीमारियाँ कम नहीं हुई बल्कि और बढ़ गई है | यानि हम बीमारी को ठीक करने के लिए जो एलोपेथी दवा खाते है उससे और नई तरह की बीमारियाँ सामने आने लगी है |
पहले मलेरिया हुआ करता था | मलेरिया को ठीक करने के लिए हमने जिन दवाओ का इस्तेमाल किया उनसे डेंगू, चिकनगुनिया और न जाने क्या-क्या नई-नई तरह की बुखारे, बिमारियों के रूप में पैदा हो गई है | किसी ज़माने में सरकार दावा करती थी कि हमने छोटी माता / बड़ी माता और टी.बी. जैसी घातक बिमारियों पर विजय प्राप्त कर ली है लेकिन हाल ही में ये बीमारियाँ फिर से अस्तित्व में आ गई है, फिर से लौट आई है | यानी एलोपेथी दवाओं ने बीमारियाँ कम नहीं की और ज्यादा बढ़ायी है |
यानि धीरे धीरे ये दवा कम्पनियां भारत में व्यापार बढाने लगी और इनके व्यापार को बढ़ावा दिया हमारी सरकारों ने | ऐसा इसलिए हुआ क्यों कि हमारे नेताओं को इन दवा कंपनियों ने खरीद लिया | हमारे नेता लालच में आ गए और अपना व्यापार धड़ल्ले से शुरू करवा दिया | इसी के चलते जहाँ हमारे देश में सन 1951 में 10-12 दवा कंपनिया हुआ करती थी वो आज बढ़कर 20000 से ज्यादा हो गई है | 1951 में जहाँ लगभग 70 कुल दवाइयां हुआ करती थी आज की तारीख में ये 84000 से भी ज्यादा हो गयी हैं | फिर भी रोग कम नहीं हो रहे है, बिमारियों से पीछा नहीं छूट रहा है |
आखिर सवाल खड़ा होता है कि इतनी सारे जतन करने के बाद भी बीमारियाँ कम क्यों नहीं हो रही है | इसकी गहराई में जाए तो हमे पता लगेगा कि मानव के द्वारा निर्मित ये दवाए किसी भी बीमारी को जड़ से समाप्त नहीं करती बल्कि उसे कुछ समय के लिए रोके रखती है | जब तक दवा का असर रहता है तब तक ठीक, दवा का असर खत्म हुआ तो बीमारियाँ फिर से हावी हो जाती है | दूसरी बात इन दवाओं के साइड इफेक्ट बहुत ज्यादा है यानी एक बीमारी को ठीक करने के लिए दवा खाओ तो एक दूसरी बीमारी पैदा हो जाती है | आपको कुछ उदहारण दे कर समझाता हूँ –
Antipyretic– बुखार को ठीक करने के लिए हम एंटीपायिरेटिक दवाएं खाते है जैसे – पैरासिटामोल, आदि | बुखार की ऐसी सैकड़ों दवाएं बाजार में बिकती है | ये एंटीपायिरेटिक दवाएं हमारे गुर्दे ख़राब करती है | गुर्दा ख़राब होने का सीधा मतलब है कि पेशाब से सम्बंधित कई बिमारियों का पैदा होना, जैसे पथरी, मधुमेह, और न जाने क्या क्या | एक गुर्दा खराब होता है, उसके बदले में नया गुर्दा लगाया जाता है तो ऑपरेशन का खर्चा करीब 3.50 लाख रुपये का होता है |
Antidiarrheal – इसी तरह से हम लोग दस्त की बीमारी में antidiarrheal दवाए खाते है | ये antidiarrheal दवाएं हमारी आँतों में घाव करती है जिससे कैंसर, अल्सर, आदि भयंकर बीमारियाँ पैदा होती है |
Analgesic (commonly known as a Painkiller) – इसी तरह हमें सरदर्द होता है तो हम एनाल्जेसिक दवाए खाते है जैसे एस्प्रिन, डिस्प्रिन, कोल्डरिन, ऐसी और भी सैकड़ो दवाए है | ये एनाल्जेसिक दवाए हमारे खून को पतला करती है | आप जानते है कि खून पतला हो जाये तो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और कोई भी बीमारी आसानी से हमारे ऊपर हमला बोल सकती है |
आप आये दिन अखबारों में या टी वी पर सुना होगा की किसी का एक्सिडेंट हो जाता है तो उसे अस्पताल ले जाते ले जाते रस्ते में ही उसकी मौत हो जाती है | समझ में नहीं आता कि अस्पताल ले जाते ले जाते मौत कैसे हो जाती है ? होता क्या है कि जब एक्सिडेंट होता है तो जरा सी चोट से ही खून शरीर से बाहर आने लगता है और क्यों कि खून पतला हो जाता है तो खून का थक्का नहीं बनता जिससे खून का बहाव रुकता नहीं है और खून की कमी लगातार होती जाती है और कुछ ही देर में उसकी मौत हो जाती है |
पिछले करीब 30 से 40 सालों में कई सारे देश है जहाँ पे ऊपर बताई गई लगभग सारी दवाएं बंद हो चुकी है | जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, और भी कई देश में जहा ये दवाए न तो बनती और न ही बिकती है लेकिन हमारे देश में ऐसी दवाएं धड़ल्ले से बन रही है, बिक रही है | इन 84000 दवाओं में अधिकतर तो ऐसी है जिनकी हमारे शरीर को जरुरत ही नहीं है | यानी जिन दवाओं कि जरूरत ही नहीं है वो डॉक्टर हमे लिखते है | मजेदार बात ये है कि डॉक्टर कभी भी इन दवाओं का इस्तेमाल नहीं करता और न अपने बच्चो को खिलाता है | ये सारी दवाएं तो आप जैसे और हम जैसे लोगों को लिखी जाती है | वो ऐसा इसलिए करते है क्यों कि उनको इन दवाओं के साइड इफ़ेक्ट पता होता है और कोई भी डॉक्टर इन दवाओं के साइड इफ़ेक्ट के बारे में कभी किसी मरीज को नहीं बताता | अगर भूल से पूछ बैठो तो डॉक्टर कहता है कि “तुम ज्यादा जानते हो या मैं ?” दूसरी और चौकाने वाली बात ये है कि ये दवा कंपनिया बहुत बड़ा कमीशन देती है डॉक्टर को | यानी डॉक्टर कमिशनखोर हो गए है या यूँ कहे कि डॉक्टर दवा कम्पनियों के एजेंट हो गए है तो गलत नहीं होगा |
इसके अलावा ये कंपनियाँ टेलीविजन के माध्यम से, पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से, अख़बारों के माध्यम से फिजूल की दवाएं भारत के बाजार में बेच लेती हैं | आप जानेंगे तो आश्चर्य करेंगे कि दुनिया भर के देशों में एक अंतर्राष्ट्रीय कानून है कि दवाओं का विज्ञापन आप टेलीविजन पर, पत्र-पत्रिकाओं में, अख़बारों में नहीं कर सकते, लेकिन भारत में धड़ल्ले से हर माध्यम में दवाओं का विज्ञापन आता है, और भारत में भी ये कानून लागु है, उसके बावजूद आता है | जब इससे सम्बंधित विभागों के अधिकारियों से बात कीजिये तो वो कहते हैं कि ” हम क्या कर सकते हैं, आप जानते हैं कि भारत में सब संभव है” | तो ऐसी बहुत सारी फालतू की दवाएँ हजारों की संख्या में भारत के बाजार में बेचीं जा रही है | आपने एक नाम सुना होगा M.R. यानि मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव | ये नाम अभी हाल के कुछ वर्षो में ही अस्तित्व में आया है | ये MR नाम का विचित्र प्राणी कई तरह की दवा कम्पनियों की दवाएं डॉक्टर के पास ले जाते है और इन दवाओं को बिकवाते है | ये दवा कंपनिया 40-40% तक कमीशन डॉक्टर को सीधे तौर पर देती है | जो बड़े बड़े शहरों में दवा कंपनिया है नकद में डॉक्टर को कमिसन देती है | ऑपरेशन करते है तो उसमे कमीशन खाते है, एक्सरे में कमीशन, विभिन्न प्रकार की जांचे करवाते है डॉक्टर, उसमे कमीशन, सबमे इनका कमीशन फिक्स रहता है | जिन बिमारियों में जांचों की कोई जरुरत ही नहीं होती उनमे भी डॉक्टर जाँच करवाने के लिए लिख देते है ये जाँच कराओ, वो जाँच करवाओ आदि आदि | कई बीमारियाँ ऐसी है जिसमे दवाएं जिंदगी भर खिलाई जाती है | जैसे हाई-ब्लड प्रेसर या लो-ब्लड प्रेसर, डाईबिटिज, आदि | यानी जब तक दवा खाओगे आपकी धड़कन चलेगी, दवाएं बंद तो धड़कन बंद | जितने भी डॉक्टर है उनमे से 99% डॉक्टर कमिशनखोर हैं केवल 1% इमानदार डॉक्टर है जो सही मायने में मरीजो का सही इलाज करते है| सारांश के रूप में अगर हम कहे कि मौत का खुला व्यापार धड़ल्ले से पूरे भारत में चल रहा है तो कोई गलत नहीं होगा | अभी भारत सरकार ने नई ड्रग प्राइसिंग पालिसी लाया है देखिये उसके माध्यम से क्या गुल खिलाती हैं ये दवा कंपनियां |
हमारे देश में एल्युमिनियम के बर्तन 100-200 साल पहले ही ही आये है । उससे पहले धातुओं में पीतल, काँसा, चाँदी के बर्तन ही चला करते थे और बाकी मिट्टी के बर्तन चलते थे । अंग्रेजो ने जेलों में कैदिओं के लिए एल्युमिनिय के बर्तन शुरू किए क्योंकि उसमें से धीरे धीरे जहर हमारे शारीर में जाता है । एल्युमिनिय के बर्तन के उपयोग से कई तरह के गंभीर रोग होते है । जैसे अस्थमा, बात रोग, टी बी, शुगर, दमा आदि । पुराने समय में काँसा और पीतल के बर्तन होते थे जो जो स्वास्थ के लिए अच्छे माने जाते थे। यदि सम्भव हो तो वही बर्तन फिर से ले कर आयें ।
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हमारे पुराने वैज्ञानिकों को मालूम था की एल्युमिनिय बोक्साईट से बनता है और भारत में इसकी भरपूर खदाने हैं, फिर भी उन्होंने एल्युमिनियम के बर्तन नहीं बनाये क्योंकि यह भोजन बनाने और खाना खाने के लिए सबसे घटिया धातु है इससे अस्थमा, टी बी, दमा, बातरोग में बढावा मिलता है । इसलिए एल्युमिनियम के बर्तनों का उपयोग बन्द करें।
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मित्रो कई विदेशी कंपनियाँ हमारे देश की माताओ ,बहनो को गर्भ निरोधक उपाय बेचती हैं !(Contraceptive) कुछ तो गोलियों (pills) के रूप मे बेचे जाते हैं ! और इसके इलवा इनके अलग अलग नाम हैं ! जैसे norplant,depo provera, I pill है एक E pill है ! ऐसे करके कुछ और अलग अलग नामो से हमारे देश की माताओ ,बहनो को ये Contraceptive बेचे जाते है ! और आपको ये जानकर बहुत दुख होगा जिन देशो की ये कंपनियाँ है !
ये सब वो अपने देश की माताओं बहनो को नहीं बेचती है ! लेकिन भारत मे लाकर बेच रही हैं ! जैसे ये depo provera नाम की तकनीक इनहोने विकसित की है गर्भ निरोधन के लिए !! ये अमेरिका की एक कंपनी ने विकसित किया है कंपनी का नाम है आबजोन ! इस कंपनी को अमेरिका सरकार ने ban किया हुआ है की ये depo provera नाम की तकनीक को अमेरिका मे नहीं बेच सकती ! तो कंपनी ने वहाँ नहीं बेचा ! और अब इसका उत्पादन कर भारत ले आए और भारत सरकार से इनहोने agreement कर लिया और अब ये धड़ले ले भारत मे बेच रहे हैं !
ये injection के रूप मे भारत की माताओ बहनो को दिया जा रहा है और भारत के बड़े बड़े अस्पतालो के डाक्टर इस injection को माताओं बहनो को लगवा रहें है ! परिणाम क्या हो रहा है ! ये माताओ ,बहनो का जो महवारी का चक्र है इसको पूरा बिगाड़ देता है और उनके अंत उनके uterus मे cancer कर देता है ! और माताओ बहनो की मौत हो जाती है ! कई बार उन माताओं ,बहनो को पता ही नहीं चलता की वो किसी डाक्टर के पास गए थे और डाक्टर ने उनको बताया नहीं और depo provera का injection लगा दिया ! जिससे उनको cancer हो गया और उनकी मौत हो गई !! पता नहीं लाखो माताओ ,बहनो को ये लगा दिया गया और उनकी ये हालत हो गई !
इसी तरह इनहोने एक NET EN नाम की गर्भ निरोधन के लिए तकनीकी लायी है ! steroids के रूप मे ये माताओ बहनो को दे दिया जाता है या कभी injection के रूप मे भी दिया जाता है ! इससे उनको गर्भपात हो जाता है ! और उनके जो पीयूष ग्रंथी के हार्मोन्स है उनमे असंतुलन आ जाता है !! और वो बहुत परेशान होती है जिनको ये NET EN दिया जाता है !
इसकी तरह से RU 496 नाम की एक तकनीक उन्होने ने आई है फिर रूसल नाम की एक है ! फिर एक यू क ले फ नाम की एक है फिर एक norplant है ! फिर एक प्रजनन टीका उन्होने बनाया है सभी हमारी माताओ ,बहनो के लिए तकलीफ का कारण बनती है फिर उनमे ये बहुत बड़ी तकलीफ ये आती है ये जितने भी तरह गर्भ निरोधक उपाय माताओ बहनो को दिये जाते हैं ! उससे uterus की मांस पेशिया एक दम ढीली पड़ जाती है ! और अक्सर मासिक चक्र के दौरान कई मताए बहने बिहोश हो जाती है ! लेकिन उनको ये मालूम नहीं होता कि उनको ये contraceptive दिया गया जिसके कारण से ये हुआ है ! और इस तरह हजारो करोड़ रुपए की लूट हर साल विदेशी कंपनियो द्वारा ये contraceptive बेच कर की जाती हैं !
इसके इलवा अभी 3 -4 साल मे कंडोम का व्यपार विदेशी कंपनियो दावरा बहुत बढ़ गया है !! और इसका प्रचार होना चाहिए इसके लिए AIDS का बहाना है !AIDS का बहाना लेकर TV मे अखबारो मे मैगजीनो मे एक ही बात क विज्ञापन कर रहे है कि आप कुछ भी करो कंडोम का इस्तेमाल करो !
ये नहीं बताते कि आप अपने ऊपर सयम रखो ! ये नहीं बताते कि अपने पति और पत्नी के साथ वफादारी निभाओ !! वो बताते है कुछ भी करो अर्थात किसी की भी माँ , बहन बेटी के साथ करो ,बस कंडोम का इस्तेमाल करो !! और इसका परिणाम पात क्या हुआ है मात्र 15 साल मे इस देश मे 100 करोड़ कंडोम हर साल बिकने लगे हैं ! 15 साल पहले इनकी संख्या हजारो मे भी नहीं थी !
और इन कंपनियो का target ये है कि ये 100 करोड़ कंडोम एक साल नहीं एक दिन मे बिकने चाहिए !!
एड्स का हल्ला मचा कर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों (साथ ही साथ देशी कम्पनियों ने भी) कण्डोम का बाजार खड़ा किया है और कई सौ करोड़ रूपये का सालाना मुनाफा पीट रही हैं। हालांकि एड्स खतरनाक बीमारी है और यौन संसर्ग के अलावा कई अन्य तरीकों से भी इसका प्रसार होता हे। जैसे इन्जेक्शन की सुई द्वारा, रक्त लेने से एवं पसीने के सम्पर्क द्वारा।
परन्तु बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की शह पर एड्स को रोकने के जिन तरीकों को ज्यादा प्रचारित किया जा रहा है उनमें हैं सुरक्षित सम्भोग और कण्डोम का प्रयोग। डाक्टर लार्ड ओ कलिंग्स के अनुसार एक बार के यौन सम्पर्क से 0.1-1 प्रतिशत ! सुई से 0.5-1 प्रतिशत, ! रक्त चढाए जाने से 0.9 प्रतिशत एड्स होने की सम्भावना रहती है। इस तरह संक्रमित व्यक्ति के साथ सम्भोग या सुई के इस्तेमाल और रक्त चढाने से एड्स होने की बराबर सम्भावनाएं रहती हैं। देश में यौन सम्बन्धों के लायक सिर्फ 30 % लोग ही हैं
जो अधिकतर अपने जीवन साथी के अलावा किसी अन्य से यौन सम्पर्क नहीं बनाते। दूसरी तरफ बच्चे से लेकर बूढे तक इन्जेक्शन की सुई का प्रयोग करते हैं अतः इस रास्ते एड्स फैलने की सम्भावनाएं बहुत अधिक हैं। इसके अलावा रक्तदान द्वारा इस बीमारी का होना लगभग तय है। और अभी भी हमारे देश में 50 प्रतिशत मामलों में रक्त बिना जांच के ही चढा दिये जाते हैं। भारत में विशेष स्थितियोें में उपर्युक्त दोनों तरीकों से एड्स प्रसार की ज्यादा सम्भावनाओं को नजर अंदाज कर यौन सम्पर्को को ही मुख्य जिम्मेदार मानना पश्चिम का प्रभाव और कण्डोम निर्माता कम्पनियों की पहुंच का ही परिणाम है। विलासी उपभोक्तावादी संस्कृति के इस दौर में कण्डोम संस्कृति और उस का प्रचार विवाहोतर यौन सम्बन्धों को बढ़ाकर इस बीमारी की जड को हरा ही बनायेंगे।
हमारे देश में लगभग 40 करोड़ रूपये का कण्डोम देशी कम्पनियाँ और इतना ही कण्डोम विदेशी कम्पनियाँ बेच रही हैं। विदेशी कण्डोमों के बारे में यह बात खास तौर से उल्लेखनीय है कि 1982 से ही सरकार ने इनके आयात पर से सीमा शुल्क समाप्त कर दिया था और उस फैसले के बाद ही देश का बाजार विदेशी कण्डोमों से भर गया। करीब 25-30 एजेन्सियाँ जापान, कोरिया, ताइवान, हांगकांग, थाइलैण्ड वगैरा से कण्डोम थोक के भाव मंगाती और बेचती हैं। करीब 20 देशी व 80 विदेशी ब्रांडो अर्थात 100 से ज्यादा ब्रांडो में 100 करोड़ से ज्यादा कण्डोम सालाना बिक रहे हैं।
”मुक्त यौन” की संस्कृति और उसे कण्डोम द्वारा सुरक्षा कवच पहना कर प्रचारित करने से युवाओं की उर्जा का प्रवाह किस दिशा में मोड दिया गया है यह अलग से एक बहुत ही गम्भीर सवाल है।
अंत सरकार और ये विदेशी कंपनिया AIDS रोकने से ज्यादा कंडोम की बिक्री बढ़ाना चाहती है !
इसके लिए देश के युवाओ को बहलाया-फुसलाया जा रहा है ! ताकि विवाह से पहले ही किसी भी लड़की के साथ संब्ध स्थापित करे ! और एक पत्नी से अधिक औरतों से संबंध बनाए !! जिससे समाज और परिवार खत्म हो जाये !
ताकि देश की सनातन संस्कृति को खत्म कर देश को जल्दी ही अमेरिका की कुत्ता संस्कृति मे मिलाया जाये ! कुत्ता संस्कृति से अभिप्राय सुबह किसी के साथ,दोपहर किसी के साथ, अगले दिन किसी के साथ !!
जब आप भोजन करे कभी भी तो भोजन का समय थोडा निश्चित करें । भोजन का समय निश्चित करें । ऐसा नहीं की कभी भी कुछ भी खा लिया । हमारा ये जो शरीर है वो कभी भी कुछ खाने के लिए नही है । इस शरीर मे जठर है, उससे अग्नि प्रदिप्त होती है । तो बागवटजी कहते है की, जठर मे जब अग्नी सबसे ज्यादा तीव्र हो उसी समय भोजन करे तो आपका खाया हुआ, एक एक अन्न का हिस्सा पाचन मे जाएगा और रस मे बदलेगा और इस रस में से मांस,मज्जा, रक्त,मल, मूत्रा, मेद और आपकी अस्थियाँ इनका विकास होगा । हम लोग कभी भी कुछ भी खाते रहते हैं । ये कभी भी कुछ भी खाने पद्ध्ती भारत की नहीं है, ये युरोप की है । युरोप में doctors वो हमेशा कहते रहते है की थोडा थोडा खाते रहो, कभीभी खाते रहो । हमारे यहाँ ये नहीं है, आपको दोनों का अंतर समझाना चाहता हूँ ।
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बागवटजी कहते है की, खाना खाते का समय निर्धरित करें । और समय निर्धरित होगा उससे जब आप के पेट में अग्नी की प्रबलता हो । जठरग्नि की प्रबलता हो । बागवटजी ने इस पर बहुत रिसर्च किया और वो कहते है की, डेढ दो साल की रिसर्च के बाद उन्हें पता चला की जठरग्नि कौन से समय मे सबसे ज्यादा तीव्र होती है । तो वो कहते की सूर्य का उदय जब होता है, तो सूर्य के उदय होने से लगभग ढाई घंटे तक जठरग्नि सबसे ज्यादा तीव्र होती है।
मान लो अगर आप चेन्नई मे हो तो 7 बजे से 9 बजे तक जठरग्नि सबसे ज्यादा तीव्र होगी । हो सकता है ये इसी सूत्रा अरूणाचल प्रदेश में बात करूँ तो वो चार बजे से साडे छह का समय आ जाएगा । क्यांे कि अरूणाचल प्रदेश में सूर्य 4 बजे निकल आता है । अगर सिक्कीम मे कहूँगा तो 15 मिनिट और पहले होगा, यही बात अगर मे गुजरात मे जाकर कहूँगा तो आपसे समय थोडा भिन्न हो जाएगा तो सूत्रा के साथ इसे ध्यान मे रखे । सूर्य का उदय जैसे ही हुआ उसके अगले ढाई घंटे तक जठर अग्नी सबसे ज्यादा तीव्र होती है । तो बागवटजी कहते है इस समय सबसे ज्यादा भोजन करें ।
बागवटजी ने एक और रिसर्च किया था, जैसे शरीर के कुछ और अंग है जैसे हदय है, जठर,किडनी,लिव्हर है इनके काम करने का अलग अलग समय है ! जैसे दिल सुबह के समय सबसे अधिक काम करता है ! 4 साढ़े चार बजे तक दिल सबसे ज्यादा सक्रीय होता है और सबसे ज्यादा heart attack उसी समय मे आते है । किसी भी डॉक्टर से पूछ लीजीए, क्योकि हदय सबसे ज्यादा उसी समय में तीव्र । सक्रीय होगा तो हदय घात भी उसी समय होगा इसलिए 99 % हार्ट अॅटॅक अर्ली मॉनिंग्ज मे ही होते है । इसलिए तरह हमारा लिव्हर किडनी है, एक सूची मैने बनाई है, बाहर पुस्तको मे है । संकेतरूप मे आप से कहता हूँ की शरीर के अंग का काम करने का समय है, प्रकृती ने उसे तय किया है । तो आप का जठर अग्नी सुबह 7 से 9.30 बजे तक सबसे ज्यादा तीव्र होता है तो उसी समय भरपेट खाना खाईए ।
ठीक है । फिर आप कहेगे दोपहर को भूख लगी है तो थोडा और खा लीजीए । लेकीन बागवट जी कहते है की सुबह का खाना सबसे ज्यादा । अगर आज की भाषा में अगर मे कहूँ तो आपका नाष्टा भरपेट करे । और अगर आप दोपहर का भोजन आप कर रहे है तो बागवटजी कहते है की, वो थोडा कम करिए नाश्ते से थोडा 1/3 कम कर दीजीए और रात का भोजन दोपहर के भोजन का 1/3 कर दीजीए । अब सीधे से आप को कहता हूँ । अगर आप सवेरे 6 रोटी खाते है तो दोपहर को 4 रोटी और शाम को 2 रोटी खाईए । अगर आप को आलू का पराठा खाना है आपकी जीभ स्वाद के लिए मचल रही है तो बागवटजी कहते है की सब कुछ सवेरे खाओ, जो आपको खानी है सवेरे खाओ, हाला की अगर आप जैन हो तो आलू और मूली का भी निषिध्द है आपके लिए फिर अगर जो जैन नहीं है, उनके लिए ? आपको जो चीज सबसे ज्यादा पसंद है वो सुबह आओ । रसगुल्ला , खाडी जिलेबी, आपकेा पसंद है तो सुबह खाओ । वो ये कहते हे की इसमें छोडने की जरूरत नहीं सुबह पेट भरके खाओ तो पेट की संतुष्टी हुई , मन की भी संतुष्टी हो जाती है ।
और बागवटजी कहते है की भोजन में पेट की संतुष्टी से ज्यादा मन की संतुष्टी महत्व की है।
मन हमारा जो है ना, वो खास तरह की वस्तुये जैसे , हार्मोन्स , एंझाईम्स से संचालित है । मन को आज की भाषा में डॉक्टर लोग जो कहते हैं , हाला की वो है नहीं लेकिन डाक्टर कहते हैं मन पिनियल गलॅंड हैं ,इसमे से बहुत सारा रस निकलता है । जिनको हम हार्मोन्स ,एंझाईम्स कह सकते है ये पिनियल ग्लॅंड (मन )संतुष्टी के लिए सबसे आवश्यक है , तो भोजन आपको अगर तृप्त करता है तो पिनियललॅंड आपकी सबसे ज्यादा सक्रीय है तो जो भी एंझाईम्स चाहीए शरीर को वो नियमित रूप मंे समान अंतर से निकलते रहते है । और जो भोजन से तृप्ती नहीं है तो पिनियल ग्लॅंड मे गडबड होती है । और पिनियल ग्लॅंड की गडबड पूरे शरीर मे पसर जाती है । और आपको तरह तरह के रोगो का शिकार बनाती है । अगर आप तृप्त भोजन नहीं कर पा रहे तो निश्चित 10-12 साल के बाद आपको मानसिक क्लेश होगा और रोग होंगे । मानसिक रोग बहुत खराब है । आप सिझोफ्रनिया डिप्रेशन के शिकार हो सकते है आपको कई सारी बीमारीया ,27 प्रकार की बीमारीया आ सकती है , । कभी भी भोजन करे तो, पेट भरे ही ,मन भी तृप्त हो । ओर मन के भरने और पेट के तृप्त होने का सबसे अच्छा समय सवेरे का है ।
अब मैने(राजीव भाई ने ) ये बागवटजी के सूत्रों को चारो तरफ देखना शुरू किया तो मुझे पता चला की मनुष्य को छोडकर जीव जगत का हर प्राणी इस सूत्रा का पालन कर रहा है । मनुष्य अपने को होशियार समझता है । लेकिन मनुष्य से ज्यादा होशियारी जीव जगत के प्राणीयों मे है । आप चिडीया को देखो, कितने भी तरह की चिडीये, सबेरे सुरज निकलते ही उनका खाना शुरू हो जाता है , और भरपेट खाती है । 6 बजे के आसपास राजस्थान, गुजरात में जाओ सब तरह की चिडीया अपने काम पर लग जाती है। खूब भरपेट खाती है और पेट भर गया तो चार घंटे बाद ही पानी पीती है । गाय को देखिए सुबह उठतेही खाना शुरू हो जाता है । भैंस, बकरी ,घोडा सब सुबह उठते ही खाना खाना शुरू करंगे और पेट भरके खाएँगे । फिर दोपहर को आराम करेंगे तो यह सारे जानवर ,जीवजंतू जो हमारी आँखो से दीखते है और नही भी दिखते ये सबका भोजन का समय सवेरे का हैं । सूर्योदय के साथ ही थे सब भोजन करते है । इसलिए, थे हमसे ज्यादा स्वस्थ रहते है ।
मैने आपको कई बार कहा है आप उस पर हँस देते है किसी भी चिडीया को डायबिटीस नही होता किसी भी बंदर को हार्ट अॅटॅक नहीं आता । बंदर तो आपके नजदीक है ! शरीर रचना मे बस बंदर और आप में यही फरक है की बंदर को पूछ है आपको नहीं है बाकी अब कुछ समान है । तो ये बंदर को कभी भी हार्ट अॅटॅक, डासबिटीस ,high BP ,नहीं होता ।
मेरे एक बहुत अच्छे मित्रा है, डॉ. राजेंद्रनाथ शानवाग । वो रहते है कर्नाटक में उडूपी नाम की जगह है वहाँपर रहते है । बहुत बडे ,प्रोफेसर है, मेडिकल कॉलेज में काम करते है । उन्होंने एक बडा गहरा रिसर्च किया ।की बंदर को बीमार बनाओ ! तो उन्होने तरह तरह के virus और बॅक्टेरिया बंदर के शरीर मे डालना शुरू किया, कभी इंजेक्शन के माध्यम से कभी किसी माध्यम से । वो कहते है, मैं 15 साल असफल रहाँ । बंदर को कुछ नहीं हो सकता । और मैने कहा की आप ये कैसे कह सकते है की, बंदर कुछ नहीं हो सकता , तब उन्हांने एक दिन रहस्य की बात बताई वो आपको भी ,बता देता हूँ । की बंदर का जो है न RH factor दुनिया में ,सबसे आदर्श है, और कोई डॉक्टर जब आपका RH factor नापता है ना ! तो वो बंदर से ही कंम्पेअर करता है , वो आपको बताता नहीं ये अलग बात है । कारण उसका ये है की, उसे कोई बीमारी आ ही नहीं सकती । ब्लड मे कॉलेस्टेरॉल बढता ही नहीं । ट्रायग्लेसाईड कभी बढती नहीं डासबिटीस कभी हुई नहीं । शुगर कितनी भी बाहर से उसके शरीर मे डंट्रोडयूस करो, वो टिकती नहीं । तो वो प्रोफेसर साहब कहते है की, यार ये यही चक्कर है ,की बंदर सवेरे सवेरेही भरपेट खाता है । जो आदमी नहीं खा पाता ।
तो वो प्रोफेसर रवींद्रनाथ शानवागने अपने कुछ मरींजों से कहा की देखो भया , सुबह सुबह भरपेट खाओ ।तो उनके कई मरीज है वो मरीज उन्हे बताया की सुबह सुबह भरपेट खाना खाओ तो उनके मरीज बताते है की, जबसे उन्हांने सुबह भरपेट खाना शुरू किया तो , डासबिटीस माने शुगर कम हो गयी, किसी का कॉलेस्टेरॉल कम हो गया, किसी के घटनों का दर्द कम हो गया कमर का दर्द कम हो गया गैस बनाना बंद हो गई पेट मे जलन होना, बंद हो गयी नींद अच्छी आने लगी ….. वगैरा ..वगैरा । और ये बात बागवटजी 3500 साल पहले कहते ये की सुबह की खाना सबसे अच्छा । माने जो भी स्वाद आपको पसंद लगता है वो सुबह ही खाईए ।
तो सुबह के खाने का समय तय करिये । तो समय मैने आपका बता दिया की, सुरज उगा तो ढाई घंटे तक । माने 9.30 बजे तक, ज्यादा से ज्यादा 10 बजे तक आपक भोजन हो जाना चाहिए । और ये भोजन तभी होगा जब आप नाश्ता बंद करेंगे । ये नाष्ता हिंदुस्थानी चीज नहीं है । ये अंग्रेजो की है और आप जानते है हमारे यहाँ क्या चक्कर चल गया है , नाष्टा थोडा कम, करेंगे ,लंच थोडा जादा करेंगे, और डिनर सबसे ज्यादा करेंगे । सर्वसत्यानाष । एकदम उलटा बागवटजी कहेते है की, नाष्टा सबसे ज्यादा करो लंच थोडा कम करो और डिनर सबसे कम करो । हमारा बिलकूल उलटा चक्कर चल रहा है !
ये अग्रेज और अमेरिकीयो के लिए नाष्टा सबसे कम होता है कारण पता है ??वो लोग नाष्टा हलका करे तो ही उनके लिए अच्छा है। हमारे लिए नाष्टा ज्यादा ही करना बहूत अच्छा है । कारण उसका एकही है की अंग्रेजो के देश में सूर्य जलदी नही निकलता साल में 8-8 महिने तक सूरज के दर्शन नहीं होते और ये जठरग्नी है । नं ? ये सूरज के साथ सीधी संबंध्ति है जैसे जैसे सूर्य तीव्र होगा अग्नी तीव्र होगी । तो युरोप अमेरिका में सूरज निकलता नहीं -40 तक . तापमान चला जाता है 8-8 महिने बर्फ पडता है तो सूरज नहीं तो जठरग्नी तीव्र नहीं हो सकती तो वो नाष्टा हेवियर नही कर सकते करेंगे तो उनको तकफील हो जाएँगी !
अब हमारे यहाँ सूर्य हजारो सालो से निकलता है और अगले हजारो सालों तक निकलेगा ! तो हमने बिना सोचे उनकी नकल करना शुरू कर दिया ! तो बाग्वट जी कहते है की, सुबह का खाना आप भरपेट खाईए । ? फिर आप इसमें तुर्क – कुतुर्क मत करीए ,की हम को दुनिया दारी संभालनी है , किसलिए ,पेट के लिए हीं ना? तो पेट को दूरूस्त रखईये , तो मेरा कहना है की, पेट दुरूस्त रखा तो ही ये संभाला तोही दुनिया दारी संभलती है और ये गया तो दुनिया दारी संभालकर करेंगे क्या?
मान लीजिए, पेट ठीक नहीं है , स्वास्थ ठीक नहीं है , आप ने दस करोंड कमा लिया क्या करेंगे, डॉक्टर को ही देगे ना ? तो डॉक्टर को देने से अच्छा किसी गोशाला वाले को दिजीए ;और पेट दुरूस्त कर लिजिए । तो पेट आपका है तो दुनिया आपकी है । आप बाहर निकलिए घरके तो सुबह भोजन कर के ही निकलिए । दोपहर एक बजे में जठराग्नी की तीव्रता कम होना शुरू होता है तो उस समय थोडा हलका खाए माने जितना सुबह खाना उससे कम खाए तो अच्छा है। ना खाए तो और भी अच्छा । खाली फल खायें , ज्यूस दही मठठा पिये । शाम को फिर खाये ।
अब शाम को कितने बजे खाएं ???
तो बाग्वट जी कहते हैं हमे प्रकति से बहूत सीखने की जरूरत हैं । दीपक । भरा तेल का दीपक आप जलाना शुरू किजीए । तो पहिली लौ खूप तेजी से चलेगी और अंतिम लव भी तेजी से चलेगी माने जब दीपक बूजने वाला होगा, तो बुझने से पहले ते जीसे जलेगा , यही पेट के लिए है । जठरग्नी सुबह सुबह बहूत तीव्र होगी और शमा को जब सूर्यास्त होने जा रहा है, तभी तीव्र होगी, बहुत तीव्र होगी । वो कहते है , शामका खाना सूरज रहते रहते खालो; सूरज डूबा तो अग्नी भी डूबी । तो वैसे जैन दर्शन में कहा है सभी भोजन निषेध् है बागवटजी भी यही कहते है ,तरीका अलग है ,बस । जैन दर्शन मे अहिंसा के लिए कहते है,वो स्वास्थ के लिए कहेते है । तो शाम का खाना सूरज डुबने की बाद दुनिया में ,कोई नहीं खाता । गाय ,भैंस को खिलाके देखो नहीं खाएगी ,बकरी ,गधे को खिलाके देखो, खाता नहीं । हा बिलकूल नहीं खाता । आप खाते है , तो आप अपने को कंम्पेअर कर लीजीए किस के साथ है आप ? कोई जानवर, जीवटाशी सूर्य डूबने के बाद खाती नही ंतो आप क्यू खा रहे है ?
प्रकृती का नियम बागवटजी कहते है की पालन करीए माना रात का खाना जल्दी कर दीजिए ।
सूरज डुबने के पहले 5.30 बजे – 6 बजे खायिए । अब कितना पहले ? बागवट जीने उसका कॅल्क्यूलेशन दिया है, 40 मिनिट पहले सूरज चेन्नई से शाम 7 बजे डूब रहा है । तो 6.20 मिनट तक हिंदूस्थान के किसी भी कोने में जाईए सूरज डूबने तक 40 मिनिट तक निकलेगा । तो 40 मिनिट पहले शाम का खाना खा लिजीए और सुबह को सूरज निकलने के ढाई घंटे तक कभी भी खा लीजीए । दोनो समय पेट भरके खा लिजिए । फिर कहेंगे जी रात को क्या ? तो रात के लिए बागवटजी कहेते है की, एक ही चीज हैं रात के लिए की आप कोई तरल पदार्थ ले सकते है । जिसमे सबसे अच्छा उन्होंने दूध कहा हैं । बागवटजी कहते है की, शाम को सूरज डूबने के बाद ‘हमारे पेट में जठर स्थान में कुछ हार्मोन्स और रस या एंझाईम पैदा होते है जो दूध् को पचाते है’ । इसलिए वो कहते है सूर्य डूबने के बाद जो चीज खाने लायक है वो दूध् है । तो रात को दूध् पी लीजीऐ । सुबह का खाना अगर आपने 9.30 बजे खाया तो 6.00 बजे खूब अच्छे से भूक लगेगी ।
फिर आप कहेंगे जी, हम तो दुकान पे वैठे है 6 बजे तो डब्बा मँगा लीजिए । दुकान में डिब्बा आ सकता है । हाँ दुकान में आप बैठे है, 6 बजे डब्बा आ सकता है और मैं आपको हाथ जोडकर आपसे कह रहाँ हूँ की आप मेरे से अगर कोई डायबिटीक पेशंट है, कोई भी अस्थमा पेशंट है, किसी को भी बात का गंभीर रोग है आज से ये सूत्रा चालू कर दिजीए । तीन महिने बाद आप खुद मुझे फोन करके कहंगे की, राजीव भाई, पहले से बहुत अच्छा हूँ sugar level मेरा कम हो रहा है ।
अस्थमा कम हो रहा है। ट्रायग्लिसराईड चेक करा लीजीए, और सूत्रा शुरू करे, तीन महीने बाद फिर चेक करा लीजीए, पहले से कम होगा, LDL बहुत तेजी से घटेगा ,HDL बढ़ेगा । HDL बढना चाहिए, LDL VLDL कम होना ही चाहिए । तो ये सूत्रा बागवटजी का जितना संभव हो आप ईमानदारी से पालन करिए वो आपको स्वस्थ रहने में बहुत मदद करेगा !!
कंप्यूटर के virus कौन बनाता है ?? कंप्यूटर के 85 % virus , Anti virus software वाली कंपनियाँ बनाती है । पहले virus बनाओ ! फिर anti virus बेचो !! अर्थात पहले swine flu का वैक्सीन बनाओ ! फिर swine flu के वाइरस का डर बैठाओ और फिर वैक्सीन बेचो ! विदेशी कंपनियाँ और निजी हास्पिटल वाले साधारण FLU (शरीर दर्द करना ,पेट दर्द करना थोड़ा बुखार आ जाना ) साधारण FLU को ही swine flu बता रहे है ! ताकि इनकी बनाई tami flu नामक दवा जिनके गोदाम इन विदेशी कंपनियो ने भरे हुए है वो खाली हो सके !! बाकी पैसा swine flu test करने वाले, मास्क बेचने वाले कमाएं ! मित्रो जैसा की आप जानते हैं पिछले कुछ दिनो से पूरे देश मे हँगामा हो रहा है swine flu आ गया swine flu आ गया ! swine flu आ गया ! अखबारो मे front page पर खबर है! TV चैनलो पर इसके अलावा दूसरी कोई खबर ही नही है लेकिन क्या आप जानते है ?? हमारे देश मे हर दिन कैंसर से औसतन (avg) 1500 लोग मरते है ! लेकिन कोई खबर नही आती ! दमा , अस्थमा ,ट्यूबर क्लोसिस लगभग 1200 लोग रोज मरते हैं लेकिन कोई खबर नहीं आती ! heart attack से हर दिन 800 से 1000 लोग मरते हैं ! लेकिन कोई खबर नहीं आती ! तो इतनी बड़ी मौत के आंकड़े हैं ! कैंसर ,दमा अस्थमा ,ट्यूबर क्लोसिस,heart attack ! इनके बारे मे मीडिया मे कोई चर्चा नहीं है ! चर्चा सिर्फ एक ही है swine flu,swine flu,swine flu,
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इसका एक रहस्य है ! रहस्य ये है कैंसर का वैक्सीन (vaccine) नहीं बनता !वैक्सीन (vaccine का अर्थ आप समझते है ?? जो दवा पहले पिला दी जाती है कि ये ले लो आपको ये बीमारी नहीं होगी !!, तो कैंसर का वैक्सीन (vaccine) नहीं बनता !दमा का वैक्सीन नहीं बनता ,अस्थमा का वैक्सीन नहीं बनता, ट्यूबरक्लोसिस का वैक्सीन नहीं बनता ! heart attack का वैक्सीन नहीं बनता ! मतलब ये है कि जिन बीमारीयों का कोई वैक्सीन नहीं बनता media उनकी चर्चा नहीं करता ! क्यूंकि कंपनियो को इन बीमारियो से कोई लाभ होने की गुंजाईश नहीं ! लेकिन swine FLU का वैक्सीन बन सकता है ,avian flu का वैक्सीन बन सकता है sars का वैक्सीन बन सकता है ! और थोड़े दिन पहले bird flu आया था ! उसका वैक्सीन बन सकता है ! तो swine है ,avian flu है ,bird flu है ! इन सबके वैक्सीन बन सकते है और बाजार मे बिक सकते हैं ! तो इनमे कंपनियो को भयंकर मुनाफा है ! इस लिए ये सब परयोजित तरीके से media मे दिखाया जाता है !
एक अमेरिकन कंपनी है वे swine flu की दवा बानाती है जिसका नाम है tamiflu ! और जैसा की आप जानते है किसी भी बीमारी की वैक्सीन मे हमेशा बीमारी के virus को ही मृत रूप मे डाला जाता है ! तो ये tamiflu दवा बनाते बनाते virus uncontrolled हुआ ! और उसने swine flu को फैलाना शुरू किया सारी दुनिया मे ! मतलब एक अमेरिकन कंपनी की बदमाशी से एक अमेरिकन कंपनी की गैरजिम्मेदारी से से swine flu का virus सक्रीय हुआ और उसने 30 देशो को अपनी चपेट मे ले लिया ! अब वो 30 देश है tamiflu के ग्राहक हो गए ! अब जिनको swine flu होने की संभावना है या हो गया है डाक्टर उनको एक ही दवा लिख रहे है tamiflu खाओ tamiflu खाओ ! लेकिन जो विद्वान डाक्टर है जो इन कंपनियो के चक्कर मे नहीं फँसते ! वो बता रहे है tami flu कभी मत खाओ ! क्यूकि आपने जब tamiflu खाया ! तो ये जो swine flu का virus है ये structure बदलने मे माहिर है तुरंत नया structure ले सकता है और फिर उसमे रजिसटेन्स आ सकता है और फिर जितना मर्जी tamiflu खाना ठीक ही नहीं होगा !
तो ऐसा आंतक पूरे देश मचा दिया है जिसके दो ही उदेश्य है ज्यादा से ज्यादा tamiflu दवा बेचना ! जो पिछले 10 सालो से कंपनी ने गोदामो मे भरी हुई है ! अब वो गोदाम को toothpaste के गोदाम तो नहीं है जो रोज करे और फेंक दे ! इसके लिए डर ,दहशत ,आंतक पैदा करना पड़ता है ! डर दहशत और आंतक के चक्कर मे मजबूर हो जाता है आदमी मंहगी से महंगी दवा खाने पर और महंगा से मंहगा इलाज करवाने पर !
तो आपसे ये बात कहनी है ये swine flu का virus इसी तरह का एक propaganda है और ये swine flu नहीं media flu है media ने पैदा किया है ! दोस्तो ये कंपनिया कितनी बड़ी हत्यारी और लूट खोर हो सकती हैं आप सोचिए ! सन 1916 से 1919 मे एक बीमारी फैल गई पूरी दुनिया मे उसका नाम था avian flu ! और पूरी दुनिया मे इससे बीमारी से 4 crore लोग प्रभावित हुये ! लेकिन 4 crore मे से सिर्फ 6 हजार लोगो की मौत हुई ! तभी अमेरिका की एक कंपनी मे एक वैक्सीन बना दिया avian flu का ! और वो धडले से बिका पूरी दुनिया मे ! और आपको ये जान कर बहुत दुख होगा वो वैक्सीन लेने के बाद 60 लाख लोग पूरी दुनिया मे मर गए !
बीमारी आने से 6 हजार लोग मरे लेकिन बीमारी का वैक्सीन लेने 60 लाख लोग पूरी दुनिया मे मर गए ! तो आप सोचिए ये वैक्सीन कितने खतरनाक हो सकते हैं ! अभी इसी बात का डर है ऐसे ही swine flu का वैक्सीन आने वाला है ! पता नहीं उससे क्या होगा !! और swine flu के एक वैक्सीन की कीमत कंपनी बोल रही है 3000 रुपए ! आप सोचिए इसके डर अगर भारत मे केवल 10 crore लोगो ने ही वैक्सीन लगा दिया ! तो 30 हजार crore की बिक्री तो कंपनी की केवल भारत मे ही हो गई !
ऐसे ही दोस्तो कुछ साल पहले की बात है आपको याद होगा ! पूरे भारत मे खबर फैल गई hepatitis b आ गया hepatitis b आ गया ! और कितने ही करोड़ लोगो ने इसका वैक्सीन लिया !(आपमे से भी शायद बहुत लोगो ने लिया होगा या अपने बच्चो को पिलाया होगा !) हर जगह इसके कैंप लगाए गए ! डर के कारण पागलो की तरह भीड़ उमड़ी ! थोड़े दिन बाद मुंबई हाईकोर्ट मे इसके खिलाफ मुकदमा हुआ ! तब कोर्ट ने आदेश दिया इसकी जान micro (सूक्षम ) स्तर पर करो !!
फिर तब पता चला ये hepatitis b नाम की बीमारी भारत मे होती ही नहीं है ! बीमारी होती है hepatitis A की जिसे आप पीलिया बोलते हैं सामान्य ये बारिश के दिनो मे होती ही है ! पानी मे गंदगी आने से ये होता है !! तो बीमारी होती है hepatitis A की और वैक्सीन दे दिया hepatitis b का ! तो सबको वैक्सीन पिला हजारो करोड़ दो कंपनियो ने लूट लिया !बाद मे अदालत का फैसला आया ! अगर बीमारी ही नहीं है तो वैक्सीन क्यूँ लगाए ! तब आदालत ने आदेश दिया हो hepatitis b का वैक्सीन पिलाएगा ! उसको जेल मे डाल देंगे !! उसके बाद सभी संस्थाओ ने इसको बंद कर दिया ! और फिर कंपनी ने भी इसका धंधा बंद कर दिया !! अधिकारियों का कहना था सारा माल बिक गया है ! अब तो वैसे भी जरूरत नहीं !
तो दोस्तो इसी तरह का ड्रामा जल्दी swine flu के नाम पर होने वाला है ! कंपनी को आपके स्वास्थ्य से कोई मतलब नहीं उनको बस माल बेचना और पैसा कमाना है ! इस लिए आप जरा संभल कर रहिए !
वैक्सीन के इलावा ये कंपनिया mask भी बेचेंगी ! और ये अफवाह फैलाएंगी !कि इसी mask से control होगा ! और उसकी भी 500 /700 रुपए मे बेच डालेंगी ! और कुछ educated idiots अपना status समझ के पहनेगे ! और अपने बच्चो को पहनाएंगे ! और लोग भी इनको देखा देखी शुरू हो जाएँगे ! और कुछ डर के कारण पहन लेंगे ! तो आप अपनी थोड़ी बुद्धि का प्रयोग करे ! इस तरह की लूट से खुद बचे और देश को बचाये !
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दोस्तो भारत मे बहुत बड़े बड़े ऋषि हुये ! चरक ऋषि ,पतंजलि ऋषि ,शुश्रुत ऋषि ऐसे एक ऋषि हुए है 3000 साल पहले बाकभट्ट ऋषि ! उन्होने 135 साल के जीवन मे एक पुस्तक लिखी जिसका नाम था अष्टांग हृद्यम उसमे उन्होने ने मानव शरीर के लिए सैंकड़ों सूत्र लिखे थे उनमे से एक सूत्र के बारे मे आप पढे ! बाग्भट्टजी एक जगह लिख रहे है ! कि जब भी आप आराम करे मतलब सुबह या शाम या रात को सोये तो हमेशा दिशाओ का ध्यान रख कर सोये| अब यहाँ पे वास्तु घुस गया वास्तुशास्त्र | वास्तु भी विज्ञान ही है| तो वो कहते की इसका जरूर ध्यान रखे|
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क्या ध्यान रखे ? तो वो कहते है हमेशा आराम करते समय सोते समय आपका सिर सूर्य की दिशा मे रहे ! सूर्य की दिशा मतलब पूर्व और पैर हमेशा पश्चिम की तरफ रहे !और वो कहते कोई मजबूरी आ जाए कोई भी मजबूरी के कारण आप सिर पूर्व की और नहीं कर सकते तो दक्षिण (south)मे जरूर कर ले| तो या तो east या south| जब भी आराम करे तो सिर हमेशा पूर्व मे ही रहे| पैर हमेशा पश्चिम मे रहे !और कोई मजबूरी हो तो दूसरी दिशा है दक्षिण| दक्षिण मे सिर रखे उत्तर दिशा मे पैर|
आगे के सूत्र मे बागभट्ट जी कहते है उत्तर मे सिर करके कभी न सोये| फिर आगे के सूत्र मे लिखते है उत्तर की दिशा म्रत्यु की दिशा है सोने के लिए| उत्तर की दिशा दूसरे और कामो के लिए बहुत अच्छी है पढ़ना है लिखना है अभ्यास करना है ! उत्तर दिशा मे करे ! लेकिन सोने के लिए उत्तर दिशा बिलकुल निषिद्ध है|
अब बागभट्ट जी ने तो लिख दिया| पर राजीव भाई इस पर कुछ रिसर्च किया, तो राजीव भाई लिखते हैं कि गाव गाव जब मैं घूमता था तो किसी कि मृत्यु हो जाती तो मुझे अगर किसी के संस्कार पर जाना पड़ता, तो वहाँ मैं देखता कि पंडित जी खड़े हो गए संस्कार के लिए, और संस्कार के सूत्र बोलना वो शुरू करते हैं| तो पहला ही सूत्र वो बोलते हैं ! मृत का शरीर उत्तर मे करो मतलब सिर उत्तर मे करो| पहला ही मंत्र बोलेंगे मृत व्यक्ति का सिर उत्तर मे करो| और हमारे देश मे आर्य समाज के संस्थापक रहे दयानंद सरस्वती जी| भारत मे जो संस्कार होते है| जन्म का संस्कार है, गर्भधारण का एक संस्कार है ऐसे ही मृत्यु भी एक संस्कार (अंतिम संस्कार) है तो उन्होने एक पुस्तक लिखी है (संस्कार विधि) ! तो उसमे अंतिम संस्कार की विधि मे पहला ही सूत्र है ! मृत का शरीर उत्तर मे करो फिर विधि शुरू करो !
अब ये तो हुआ बागभट्ट जी, दयानंद जी आदि लोगो का,
अब इसमे विज्ञान क्या है वो समझे|
ये राजीव भाई का अपना explaination है –
क्यूँ ????
आज का जो हमारा दिमाग है न वो क्यूँ ? के बिना मानता ही नहीं !
क्यूँ क्यूँ ऐसा करे ???
कारण उसका बिलकुल सपष्ट है ! आधुनिक विज्ञान ये कहता है आपका जो शरीर है, और आपकी पृथ्वी है इन दोनों के बीच एक बल काम करता है इसको हम कहते हैं गुरुत्वाकर्षण बल (GRAVITATION force )!
इसको आप ऐसे समझे जैसे आपने कभी दो चुंबक अपने हाथ मे लिए होंगे और आपने देखा होगा कि वो हमेशा एक तरफ से तो चिपक जाते हैं पर दूसरी तरफ से नहीं चिपकते ! दूसरे तरफ से वे एक दूसरे को धक्का मारते है ! तो ये इस लिए होता है चुंबक कि दो side होती है एक south एक north ! जब भी आप south और south को या north और north को जोड़ोगे तो वो एक दूसरे को धक्का मारेंगे चिपकेगे नहीं ! लेकिन चुंबक के south और north एक दूसरे से चिपक जाते है !!
अब इस बात को दिमाग मे रख कर आगे पढे
अब ये शरीर पर कैसे काम करता है, तो आप जानते है कि पृथ्वी का उत्तर और पृथ्वी का दक्षिण ये सबसे ज्यादा तीव्र है गुरुत्वाकर्षण के लिए| पृथ्वी का उत्तर पृथ्वी का दक्षिण एक चुंबक कि तरह काम करता गुरुत्वाकर्षण के लिए| अब ध्यान से पढ़े !आपका जो शरीर है उसका जो सिर वाला भाग है वो है उत्तर ! और पैर वो है दक्षिण| अब मान लो आप उत्तर कि तरफ सिर करके सो गए| अब पृथ्वी का उत्तर और सिर का उत्तर दोनों साथ मे आयें तो force of repulsion काम करता है ये विज्ञान ये कहता है ! यह लेख आप राजीव दीक्षित जी डॉट कौम पर पढ़ रहे है..
force of repulsion मतलब प्रतिकर्षण बल लगेगा ! तो आप समझो उत्तर मे जैसे ही आप सिर रखोगे प्रतिकर्षण बल काम करेगा धक्का देने वाला बल !तो आपके शरीर मे संकुचन आएगा contraction. शरीर मे अगर संकुचन आया तो रक्त का प्रवाह blood pressure पूरी तरह से control के बाहर जाएगा !क्यूँ की शरीर को pressure आया तो blood को भी pressure आएगा| तो अगर खून को pressure है तो नींद आएगी ही नहीं| मन मे हमेशा चंचलता रहेगी|दिल की गति हमेशा तेज रहेगी, तो उत्तर की दिशा पृथ्वी की है जो north pol कहलाती है| और हमारे शरीर का उत्तर ये है सिर, अगर दोनों एक तरफ है तो force of repulsion (प्रतिकर्षण बल ) काम करेगा नींद आएगी ही नहीं !
अब इसका उल्टा कर दो आपका सिर दक्षिण मे कर दो ! तो आपका सिर north है उत्तर है ! और पृथ्वी की दक्षिण दिशा मे रखा हुआ है ! तो force of attraction काम करेगा ! एक बल आपको खींचेगा !और आपके शरीर मे अगर खीचाव पड़ेगा मान ली जिये अगर आप लेटे हैं !और ये पृथ्वी का दक्षिण है और इधर आपका सिर है !तो आपको खिंचेगा और शरीर थोड़ा सा बड़ा होगा ! जैसे रबड़ खीचती है न ? elasticity ! थोड़ा सा बढ़ाव आएगा ! जैसे ही शरीर थोड़ा सा बड़ा तो body मे relaxation आ गया !
उदारण के लिए जैसे आप अंगड़ाई लेते हैं न एक दम !शरीर को तान देते है फिर आपको क्या लगता है ? बहुत अच्छा लगता है !क्यूँ की शरीर को ताना शरीर मे थोड़ा बढ़ाव आया और आप बहुत relax feel करते हैं|
इसलिए बागभट्ट जी ने कहा की दक्षिण मे सिर करेगे तो force of attraction है ! उत्तर मे सिर करेगे तो force of repulsion है ! force of repulsion से शरीर पर दबाव पड़ता है| force of attraction से शरीर पर खीचाव पड़ता है ! खीचाव और दबाव एक दूसरे के विपरीत है ! दबाव से शरीर मे संकुचन आएगा दबाव से शरीर मे थोड़ा सा फैलाव आएगा| फैलाव है तो आप सुखी नींद लेंगे, और अगर दबाव है तो नींद नही आएगी है|
इस लिए बागभट्ट जी ने सबसे बढ़िया विश्लेषण दिया है, ये विश्लेषण जिंदगी मे सारे मानसिक रोगो को खत्म करने का उतम उपाय है| नींद अच्छी ले रहे है तो सबसे ज्यादा शांति है, इस लिए नींद आप अच्छी ले ! दक्षिण मे सिर करके सोये नहीं तो पूर्व मे !!
अब पूर्व क्या है ?
पूर्व के बारे मे पृथ्वी पर रिसर्च करने वाले सब वैज्ञानिको का कहना है ! की पूर्व नूट्रल है ! मतलब न तो वहाँ force of attraction है ज्यादा न force of repulsion. और अगर है भी तो दोनों एक दूसरे को balance किए हुए हैं, इस लिए पूर्व मे सिर करके सोयेगे तो आप भी नूट्रल रहेंगे आसानी से नींद आएगी !
पश्चिम का पुछेगे जी !??
तो पश्चिम पर रिसर्च होना अभी बाकी है !
बागभट्ट जी मौन है उस पर कोई explanation देकर नहीं गए हैं !
और आज का विज्ञान भी लगा हुआ है इसके बारे भी तक कुछ पता नहीं चल पाया है !
तो इन तीन दिशाओ का ध्यान रखे !
उत्तर मे कभी सिर मत करे !
पूर्व या दक्षिण मे करे !
बस एक अंतिम बात का ध्यान रखे !
को साधू संत है या सन्यासी है ! जिहोने विवाह आदि नहीं किया ! वो हमेशा पूर्व मे सिर करके सोये ! और जो गृहस्थ आश्रम मे जी रहे है, विवाह के बंधन मे बंधे है, परिवार चला रहे है| वो हमेशा दक्षिण मे सिर करके सोये|
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