अक्सर अमेरिका की इस बात पर आलोचना होती हैं उसने जापान पर परमाणु बम फेंका जिसमें लाखों लोग मारे गए मानवता शर्मशार हुई अमेरिका की इस हरक़त का विरोध वाही लोग करते हैं जो सिर्फ परिस्थति ही देखते पाते हैं और इस तरह से हमको अपनी राय नहीं बनानी चाहिए माईन काम्फ़ में अडोल्फ़ हिटलर लिखते हैं परिस्थति को समझने से पहले उसके पहले और बाद की परिस्थति समझनी चाहिए
उस दिन कैलेण्डर पर तारीख थी 6 अगस्त 1945. जापान के हिरोशिमा का आसमान साफ था, कोई बादल नहीं था। हिरोशिमा के लोगों के लिए ये हर सुबह जैसी ही थी। लोग अपने रोजमर्रा के कामों को निपटा रहे थे, इस बात से अंजान कि वहां सब कुछ चंद पलों में ही खत्म होने वाला है।
इतिहास तो लिखा जाना अभी भी बाकी था, लेकिन इसकी इबारत तैयार थी। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन एक बेहद गोपनीय अभियान में जापान पर परमाणु बम गिराए जाने को मंजूरी दे चुके थे।
इतिहास तो लिखा जाना अभी भी बाकी था, लेकिन इसकी इबारत तैयार थी। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन एक बेहद गोपनीय अभियान में जापान पर परमाणु बम गिराए जाने को मंजूरी दे चुके थे।
रात या कहलें कि सुबह के 2 बजकर 45 मिनट पर अमेरिकी वायुसेना के बमवर्षक बी-29 'एनोला गे' ने उड़ान भरी और दिशा थी पश्चिम की ओर, लक्ष्य था जापान... पढ़ें विवेचना विस्तार से...
हिरोशिमा के लिए जो बम रवाना किया गया उसे पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रुजवेल्ट के सन्दर्भ में 'लिटिल बॉय' के नाम से भी जाना जाता है। बी-29 में जब 'लिटिल बॉय' को लादा गया तो ये सक्रिय बम नहीं था, उसमें बारूद भरा जाना बाकी था और बम का सर्किट भी पूरा नहीं था।
'एनोला गे' विमान के चालकदल में शामिल 12 लोगों में पॉल डब्लू तिब्बेत्स, सहचालक थियोडोर, जे वॉन किर्क और शस्त्र अधिकारी मॉरिस जैप्सन थे। मॉरिस जैप्सन वो व्यक्ति थे जिनके हाथ में आखिरी बार 'लिटिल बॉय' था। उन्होंने अपने चालक सहयोगी डीक पार्सन के साथ मिल कर चार बड़े बैग बारूद इस बम में रख दिए। इसके बाद जैप्सन ने लिटिल बॉय में प्लग लगा कर इसे जिंदा बम में तब्दील कर दिया।
हिरोशिमा एक बंदरगाह शहर था जो कि जापान की सेना को रसद मुहैया कराने का केंद्र था। ये शहर सामरिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण शहर था, यहां से ही जापानी सेना का संचार तंत्र चलता था। उस समय हिरोशिमा में वक्त था सुबह के सवा आठ बजे।
'एनोला गे' ने लिटिल बॉय को आसमान में गिरा दिया। 'एनोला गे' की कमान पायलट कर्नल पॉल डब्लू तिब्बेत्स के हाथ में थी। वो कहते हैं, 'कुछ ऐसा था जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, क्या कहूं बम गिराने के बाद चंद सेकेंड के लिए मैंने पलट कर उसे देखा और आगे चल दिया।'
ट्रूमैन की घोषणा : तिब्बेत्स ने बताया कि उन्होंने धुएं के बादल और तेजी से फैलती हुई आग देखी। धुंए के गुबार ने बड़ी तेजी से शहर को अपनी चपेट में ले लिया। इस तरह चंद मिनटों में ही हिरोशिमा में सब कुछ निर्जन हो चुका था...उजाड़ और वीरान।
अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन ने घोषणा करते हुए कहा, 'अब से कुछ देर पहले एक अमेरिकी जहाज ने हिरोशिमा पर एक बम गिराकर दुश्मन के यहां भारी तबाही मचाई है। यह बम 20 हजार टन टीएनटी क्षमता का था और अब तक इस्तेमाल में लाए गए सबसे बड़े बम से दो हजार गुना अधिक शक्तिशाली था।'
उन्होंने कहा, 'इस बम के साथ ही हमें हथियारों के श्रृंखला में एक नया क्रांतिकारी विध्वसंक हथियार मिल गया है, जो हमारी सेनाओं को मजबूती देगा। इस समय इन बमों का उत्पादन किया जा रहा है, साथ ही इससे भी ज्यादा खतरनाक बमों पर काम किया जा रहा है। ये परमाणु बम हैं जिनमें ब्रहमांड की शक्ति है। इस वैज्ञानिक उपलब्धि को हासिल करने के लिए हमने दो अरब डॉलर खर्च किए हैं।'
धमाके, आग और तबाही : स्कूल की एक छात्रा जिंको क्लाइन, हिरोशिमा रेलवे स्टेशन पर अपने कुछ दोस्तों के साथ थीं, उस जगह के बिलकुल पास जहां बम गिराया गया था।
क्लाइन के मुताबिक, 'मैंने एक जोर का धमाका सुना, मुझे बहुत ज्यादा दबाव महसूस हुआ, मेरी आंखें जलने लगीं, कुछ समय के लिए मैं बेहोश हो गई। जब मुझे होश आया तो देखा आसमान पूरी तरह से काला हो चुका था। हर तरफ से मदद के लिए चीखती दर्दनाक आवाजें सुनाई दे रहीं थी। मैंने महसूस किया कि मैं सांस नहीं ले पा रही हूं और मैंने भी चीखना शुरू कर दिया।'
उनके मुताबिक, 'तभी दो मजबूत हाथ मेरी ओर बढ़े और उन्होंने मुझे वहां से खींच कर बाहर निकाल लिया। इसी समय हीरोशिमा स्टेशन भरभरा कर गिर पड़ा। मैं भागने लगी, मुझे लगा कि आग का गोला मेरा पीछा कर रहा है। तभी मुझे एक जानी पहचानी आवाज सुनाई दी उसने मुझे मेरे नाम से पुकारा, वो मेरी एक सहेली की आवाज थी।'
क्लाइन के मुताबिक, 'वो मलबे में दबी थी, मैंने उसे खींच कर बाहर निकालने की भरसक कोशिश की, लेकिन तभी वो आग की चपेट में आ गई। मैं सांस नहीं ले पा रही थी, उसके हाथ ने मेरे हाथ को भींच रखा था, भरी आंखों के साथ मैंने किसी तरह से अपना हाथ खींचा और फिर भागने लगीं। पीछे उसकी चीखती हुई आवाज धीरे-धीरे आग और धमाकों के शोर में गुम हो गई।'
लाशें ही लाशें : उनके अनुसार, 'भागते-भागते मैं एक पहाड़ी पर पहुंची जहां तमाम घायल, जले हुए लोग कराह रहे थे, मैं उनके और लाशों के ढेर के बीच कहीं पड़ी थी।'
'शाम को करीब पांच बजे मैं अपने पिता और मां के पास किसी तरह पहुंची, रास्ते भर में मुझे जले हुए शव, नदी में तैरती हुई लाशें दिखीं। शहर से बाहर रहने वाले मेरे पिता तो बच गए, लेकिन मेरी मां बुरी तरह घायल थीं। कुछ दिन बाद मेरे पूरे शरीर पर बैंगनी फफोले पड़ गए, मेरे सारे बाल गिर चुके थे, चेहरा विकृत हो चुका था।'
छह अगस्त 1945 को जो लोग भी हिरोशिमा में थे वो या तो मारे जा चुके थे और जो बच गए उन पर रेडियो विकिरण का असर हुआ। ये एक ऐसा असर था जो कि आने वाली पीढ़ियों पर भी दिखाई देने वाला था।
'लिटिल बॉय' जब हिरोशिमा के वायुमंडल में फटा तो 13 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में तबाही फैल गई थी। शहर की 60 फीसदी से भी अधिक इमारतें नष्ट हो गईं थीं। उस समय जापान ने इस हमले में मरने वाले नागरिकों की आधिकारिक संख्या 1 लाख 18 हजार 661 बताई थी।
बाद के अनुमानों के अनुसार, हिरोशिमा की कुल तीन लाख 50 हजार की आबादी में से 1 लाख 40 हजार लोग इसमें मारे गए थे। इनमें सैनिक और वे लोग भी शामिल थे जो बाद में परमाणु विकिरण की वजह से मारे गए। बहुत से लोग लंबी बीमारी और अपंगता के भी शिकार हुए।
कोकुरा था निशाना : कैलेंडर में एक बार फिर तारीख बदली और इस बार वो तारीख थी 9 अगस्त 1945। आठ अगस्त की रात बीत चुकी थी, अमेरिका के बमवर्षक बी-29 सुपरफोर्ट्रेस बॉक्स पर एक बम लदा हुआ था। यह बम किसी भीमकाय तरबूज-सा था और वज़न था 4050 किलो। बम का नाम विंस्टन चर्चिल के सन्दर्भ में 'फैट मैन' रखा गया।
इस दूसरे बम के निशाने पर था औद्योगिक नगर कोकुरा। यहां जापान की सबसे बड़ी और सबसे ज्यादा गोला-बारूद बनाने वाली फैक्टरियां थीं। सुबह नौ बजकर पचास मिनट पर नीचे कोकुरा नगर नजर आने लगा। इस समय बी-29 विमान 31,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ रहा था।
बम इसी ऊंचाई से गिराया जाना था। लेकिन नगर के ऊपर बादलों का डेरा था। बी-29 फिर से घूम कर कोकुरा पर आ गया। लेकिन जब शहर पर बम गिराने की बारी आई तो फिर से शहर पर धुंए का कब्जा था और नीचे से विमान-भेदी तोपें आग उगल रहीं थीं। बी-29 का ईंधन खतरनाक तरीके से घटता जा रहा था। विमान में सिर्फ इतना ही तेल था कि वापस पहुंच सकें।
नागासाकी बना निशाना : ग्रुप कैप्टन लियोनार्ड चेशर कहते हैं, 'हमने सुबह नौ बजे उड़ान शुरू की। जब हम मुख्य निशाने पर पहुंचे तो वहां पर बादल थे। तभी हमें इसे छोड़ने का संदेश मिला और हम दूसरे लक्ष्य की ओर बढ़े जो कि नागासाकी था।'
चालक दल ने बम गिराने वाले स्वचालित उपकरण को चालू कर दिया और कुछ ही क्षण बाद भीमकाय बम तेजी से धरती की ओर बढ़ने लगा। 52 सेकेण्ड तक गिरते रहने के बाद बम पृथ्वी तल से 500 फुट की ऊंचाई पर फट गया।
घड़ी में समय था 11 बजकर 2 मिनट। आग का एक भीमकाय गोला मशरुम की शक्ल में उठा। गोले का आकार लगातार बढ़ने लगा और तेजी से सारे शहर को निगलने लगा। नागासाकी के समुद्र तट पर तैरती नौकाओं और बन्दरगाह में खड़ी तमाम नौकाओं में आग लग गई। आसपास के दायरे में मौजूद कोई भी व्यक्ति यह जान ही नहीं पाया कि आखिर हुआ क्या है क्योंकि वो इसका आभास होने से पहले ही मर चुके थे।
शहर के बाहर कुछ ब्रितानी युद्धबंदी खदानों में काम कर रहे थे उनमें से एक ने बताया, 'पूरा शहर निर्जन हो चुका था, सन्नाटा। हर तरफ लोगों की लाशें ही लाशें थी। हमें पता चल चुका था कि कुछ तो असाधारण घटा है। लोगों के चेहरे, हाथ पैर गल रहे थे, हमने इससे पहले परमाणु बम के बारे में कभी नहीं सुना था।'
तबाही : नागासाकी शहर के पहाड़ों से घिरे होने के कारण केवल 6.7 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में ही तबाही फैल पाई। लगभग 74 हजार लोग इस हमले में मारे गए थे और इतनी ही संख्या में लोग घायल हुए थे।
इसी रात अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने घोषणा की, 'जापानियों को अब पता चल चुका होगा कि परमाणु बम क्या कर सकता है।'
उन्होंने कहा, 'अगर जापान ने अभी भी आत्मसमर्पण नहीं किया तो उसके अन्य युद्ध प्रतिष्ठानों पर हमला किया जाएगा और दुर्भाग्य से इसमें हजारों नागरिक मारे जाएंगे।'
दो परमाणु हमलों और 8 अगस्त 1945 को सोवियत संघ द्वारा जापान के विरुद्ध मोर्चा खोल देने पर, जापान के पास कोई और रास्ता नहीं बचा था। जापान के युद्ध मंत्री और सेना के अधिकारी आत्मसमर्पण के पक्ष में फिर भी नहीं थे, लेकिन प्रधानमंत्री बारोन कांतारो सुजुकी ने एक आपातकालीन बैठक बुलाई और इसके छह दिन बाद जापान ने मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
जापान ज्यादा जमीन संसाधनो के लिए अमेरिका पर हमला बोल दिया था ये बहुत साहसिक कदम था देखते ही देखते पर्ल हारबर आग की लपटों में जल गया बड़े बड़े जहाज धुएं में उड गए जापान ने सभी जगह कब्ज़ा जमा लिया अमेरिकन सैनिको को धुप में नागा खड़ा करते थे उमस प्यास से मारते थे चाइना के लोगो को तो और भी तरह प्रताड़ित करते थे
अमेरिका को जब लगा मुश्किल हैं जापान को रोकना तब उन्होंने फैसला लिया परमाणु बम्ब फेंकने का हिरोशिमा नागासाकी इस तबाही के मंजर बनें जापान की कमर टूट गई उसकी समर्पण करना पड़ा अमेरिका के सामने
जो लोग कहते हैं भारत को परमाणु बम्ब नहीं रखना चाहिए मैं उन उदारवादी लोगो से कहूँगी अगर जापान के पास भी परमाणु बम्ब होता तो अमेरिका हज़ार बार सोचता......
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