Saturday, 27 June 2015

1984 का दंगा : रोंगटे खड़े कर देने वाला सच.... - अदिति गुप्ता


31 अक्टूबर 1984 को देश की राजधानी दिल्ली में अफरातफरी मची थी क्योंकि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से हर कोई स्तब्ध था. ऐसे नाजुक माहौल में इंदिरा के बेटे राजीव ने देश की कमान संभाली....जिस वक्त राजीव गांधी देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों की शपथ ले रहे थे. उसी वक्त दिल्ली की सड़कों पर एक अजीब सा शोर उठने लगा. एक ऐसा शोर, जिससे इंदिरा की मौत के बाद पसरा सन्नाटा टूटने लगा.....“खून का बदला खून”, “सरदार गद्दार हैं”. कुछ ऐसे नारों के साथ शुरू हुआ हिंसा का वह तांडव जिसे कभी कोई याद नहीं करना चाहेगा. लेकिन जिन्होंने उसे झेला है. वे चाहकर भी उसे कभी भुला नहीं पायेंगे.....एम्स के अंदर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का पार्थिव शरीर था और बाहर हजारों की भीड़ इकट्ठा थी. उस भीड़ में हिंदू भी थे, मुसलमान भी और सिख भी. लेकिन फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि भीड़ में शामिल सिख वहां से हटने लगे....इंदिरा गांधी की हत्या करने वाले दोनो बॉडीगार्ड सिख थे. इसी बात पर दिल्ली और देश के दूसरे हिस्सों में सिखों को निशाना बनाया जाने लगा. राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह भी इसका शिकार बने. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की खबर मिलते ही राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह अपना यमन दौरा बीच में ही छोड़कर देश लौटे थे. वह एयरपोर्ट से सीधे एम्स जा रहे थे. शाम के करीब पौने पांच बजे एम्स से लगभग एक किलोमीटर पहले करीब 20 लोगों का गुट हाथ में मशाल और लोहे की छड़ लिए हुए सिख विरोधी नारे लगा रहा था. तभी उधर से ज्ञानी जैल सिंह का काफिला गुजरा. भीड़ में से कुछ लोगों ने राष्ट्रपति के काफिले पर हमला कर दिया. इस हमले में काफिले की आखिरी कार के शीशे टूट गये....
तरलोचन सिंह उस दिन उसी कार में मौजूद थे. तब वह राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के प्रेस सेक्रेटरी हुआ करते थे. तरलोचन सिंह बताते हैं कि कुछ लड़के शाउटिंग कर रहे थे उन्होंने मेरी कार पर हमला किया मैं किसी तरह बच कर राष्ट्रपति भवन गया. दूसरा हमला फिर राष्ट्रपति के एम्स से निकलने के बाद हुआ.....राष्ट्रपति के एम्स से निकलने के बाद हिंसा की वारदातें एम्स के आसपास के इलाकों में फैलने लगी. पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज दिल्ली की पहली घटना अरबिन्दो मार्ग पर हुई जहां एक सिख की मोटरसाइकिल जला दी गयी थी. लेकिन इस तरह की कई वारदातें एक साथ कई जगहों पर हो रही थीं. कहीं सिखों को पीटा जा रहा था तो कहीं उनकी गाड़ियां जलाई जा रही थीं. कहीं उनके घरों और दुकानों में लूटपाट हो रही थी.....इस बीच राष्ट्रपति भवन में शपथ ग्रहण समारोह खत्म हो चुका था. दिल्ली में हालात ऐसे हो गये थे कि ज्ञानी जैल सिंह के पास मदद के लिए लोगों के फोन आने लगे. तब जैल सिंह ने प्रधानमंत्री राजीव गांधी को फोन किया. राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने कहा था कि राजीव जी दिल्ली में हालात बहुत खराब हैं. मेरी यह सलाह है कि बिना किसी देरी के आर्मी को बुला लेना चाहिए.

राजीव गांधी ने कहा था कि मेरी हालात पर नजर है. अगर पुलिस फोर्स हालात को काबू में नहीं कर पाती है तो आर्मी को मदद के लिये बुलाया जाए. तरलोचन सिंह बताते हैं कि राष्ट्रपति कुछ कर नहीं पा रहे थे.
महीप सिंह ने बताया कि ज्ञानी जैल सिंह एक तरह से बेबस जैसा महसूस करने लगे थे. राष्ट्रपति हमारे यहां तीनों सेनाओं का प्रमुख होता है वह चाहे तो आज्ञा दे सकता है मगर स्थिति ऐसी हो गयी थी की जैल सिंह वैसा नहीं कर सके और अपनी आंखों के सामने वह सब होते देखते रहे....राष्ट्रपति बेबस थे लेकिन उनसे भी ज्यादा बेबस थे वे सिख जो दिल्ली और देश के दूसरे कई हिस्सों में हिंसा का शिकार बन रहे थे. अब तक ये हिंसा सिर्फ मारपीट, लूटपाट और आगजनी तक ही सीमित थी. दंगा पीड़ितों के वकील एच एस फुल्का बताते हैं कि असली जो कत्ले आम शुरू हुआ पहली नवंबर को सुबह शुरू हुआ. जैसे किसी ने स्विच ऑन कर दिया हो इस तरह से एकदम से सारी दिल्ली में. सबके हाथों में रॉड सारी दिल्ली में एक पाउडर जिसको जहां फेंको वहां आग लग जाती थी. उसे केवल एक्सपर्ट यूज कर सकते थे. सबसे पहले गुरूद्वारे को आग लगाई फिर घरों को . सारी दिल्ली में पुलिस ने पहले जाकर सिखों के हथियार छीने कहा हम आपको बचाएंगे. आप अपने अपने एरिये मे जाओ. जिस-जिस एरिया में उन्होंने अपने हथियार पुलिस को दे दिए वहां सिखों को मार दिया.
31 अक्टूबर को एक प्रधानमंत्री की हत्या हुई लेकिन 1 नवंबर से जो हुआ वह लोकतंत्र की हत्या थी. दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, बोकारो, इंदौर और मुरैना जैसे कई दूसरे शहरों में सिखों की हत्याएं शुरू हो गयीं. अगले तीन दिन में देशभर में हजारों सिख मारे गये. लेकिन सबसे ज्यादा बुरी हालत थी दिल्ली में. बावजूद इसके कि देश की सरकार अपनी पूरी प्रशासनिक व्यवस्था के साथ दिल्ली में बैठी थी, अकेले दिल्ली में करीब तीन हजार सिखों की हत्या हुयी....पत्रकार जरनैल सिंह ने बताया कि रात को मीटिंग्स हुईं. रामपाल सरोज जैसे नेताओं के घर मीटिंग्स हुईं. एचकेएल भगत के यहां मीटिंग हुयी उसके बाद सफेद पाउडर उपल्ब्ध कराया गया. कांग्रेस के लीडर्स ने वोटर लिस्ट दिलाई....पत्रकार तवलीन सिंह ने बताया कि ये एक सोची समझी साजिश थी सिखो को सबक सिखाने की.जिसके पीछे सरकार थी. हिंदुस्तान के इतिहास में इससे पहले कभी भी किसी सरकार या किसी राजनीतिक दल पर इतने गंभीर आरोप नहीं लगे थे. यह आरोप लगाने वाले कोई एक दो लोग नहीं बल्कि सैकड़ों लोग थे. कितने ही लोगों ने कांग्रेस के छोटे-बड़े नेताओं के उस हिंसक भीड़ में शामिल होने का दावा किया.

एच के एल भगत, सज्जन कुमार, जगदीश टाइटलर, धर्मदास शास्त्री, यह कुछ ऐसे नाम हैं जिनके खिलाफ कितने ही लोग गवाही दे चुके हैं. कुछ अपने बयानों से पलटे भी. नतीजा यह हुआ कि कानून की नजर में अब तक इनमें से किसी पर भी दोष साबित नहीं हुआ है. यही वजह है कि हजारों सिख परिवारों के लिए 30 साला पुराना वह जख्म आज भी उतना ही ताजा है.
पूर्वी दिल्ली में कल्याणपुरी, शाहदरा. पश्चिमी दिल्ली में सुल्तानपुरी, मंगोलपुरी, नांगलोई. दक्षिणी दिल्ली में पालम कॉलोनी और उत्तरी दिल्ली में सब्जी मंडी और कश्मीरी गेट जैसे कुछ ऐसे इलाके हैं जहां सिखों के पूरे-पूरे परिवार खत्म कर दिए गये....
राहुल बेदी उन तीन पत्रकारों में से एक हैं जिन्होने सबसे पहले त्रिलोकपुरी में हुई हैवानियत को अपनी आंखों से देखा. राहुल बेदी बताते हैं कि हम थाने पहुंचे वहां एक ट्रक पर लाशें पड़ी थीं. एक लड़का जिंदा था उसने हमें बताया कि वहां सबको मार दिया गया.....कल्याणपुरी थाने के अंतर्गत आने वाले त्रिलोकपुरी में ज्यादातर गरीब सिख परिवार रहा करते थे. नानावटी कमीशन में दिये गये हलफनामों के मुताबिक त्रिलोकपुरी में हिंसा की शुरूआत 1 नवंबर की सुबह 10 बजे के करीब हुई. करीब 300 से 400 लोगों की भीड़ पहले ब्लॉक नंबर 36 के गुरूद्वारे के पास इकट्ठा हुई. कुछ ही मिनटों में गुरुद्वारे को आग लगा दी गयी.
साधु सिंह नाम के व्यक्ति ने नानावटी कमीशन को दिए बयान में कहा कि उस भीड़ में स्थानीय कांग्रेस नेताओं के साथ पुलिस वाले भी मौजूद थे. गुरुद्वारे को जलाने के बाद यह भीड़ ब्लॉक 32 की तरफ बढ़ी. यहां के सिख परिवारों ने उनके पास मौजूद कृपाण और कुछ छोटे हथियारों की मदद से इकट्ठा होकर भीड़ का मुकाबला करने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने खुद सुरक्षा देने का भरोसा दिलाकर सिखों के सारे हथियार ले लिए और उन्हें अपने अपने घर लौट जाने के लिए कहा.
पत्रकार राहुल बेदी बताते हैं कि 72 घंटो में कत्लेआम हुआ. हथियार ले लिए गये थे. त्रिलोकपुरी में 190 घरों में आग लगा दी गयी. 6 पुरूषों को छोड़कर सारे सिख पुरूषों को मार दिया गया. और मारने के बाद केरोसीन डालकर उन्हें जला दिया गया....तब त्रिलोकपुरी में रहने वाली तीरथ कौर ने अपनी आंखों से अपने परिवार के 7 लोगों को मरते देखा. तीरथ के मुताबिक जब वह बच्चों के साथ वहां से भागने लगीं तो दंगाइयों की नजर उनके बच्चों पर पड़ गयी. मैने कहा मेरे बच्चे को मत मारो मै उनके ऊपर लेट गयी वह मारते रहे. तीन दिन तक बच्चे के मुंह से खून आता रहा....नवंबर की दोपहर तक त्रिलोकपुरी में तीरथ कौर की तरह करीब 300 से ज्यादा महिलाएं विधवा हो चुकी थीं. यही नहीं भीड़ में शामिल लोगों पर महिलाओं से बलात्कार के भी आरोप लगे. आहुजा कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक पूर्वी दिल्ली में 1234 सिख मारे गये थे जिसमें से 610 कत्ल सिर्फ कल्याणपुरी में हुये. वहीं पश्चिमी दिल्ली के सुल्तानपुरी और मंगोलपुरी जैसे इलाकों में भी सिखों की सामुहिक हत्याएं हुयीं....3 दिन और करीब 450 कत्ल. सुल्तानपुरी ब्लॉक A-4 में 1 नवंबर की दोपहर को हमला शुरू हुआ और 2 नवंबर की सुबह 9 बजे तक लगातार दंगाई सिखों को मारने और उनके घरों को जलाने में लगे रहे. लगभग पूरा का पूरा ब्लॉक तबाह कर दिया गया. लेकिन इसी ब्लॉक के मकान नंबर 165 में रहने वाली पद्मी कौर के घर जो हुआ वह और भी ज्यादा शर्मनाक था....वकील एच एस फुल्का बताते हैं कि एक लड़की की 2 नवंबर को शादी थी. सारे रिश्तेदार उसके घर पर थे. पहली नवंबर को भीड़ ने हमला किया. रंगनाथ मिश्रा कमीशन को दिए बयान में पद्मी कौर ने कहा कि उन्होंने मेरी बेटी को पकड़ा और उसके कपड़े फाड़ने लगे. मेरे पति ने हाथ जोड़कर उनसे कहा कि उसे छोड़ दें. उन्होंने मेरे पति को मारने की धमकी दी. फिर मेरी बेटी के हाथ पैर तोड़े और उसे उठा ले गये. इसके बाद भीड़ ने मेरे पति और घर में मौजूद दूसरे लोगों को मारना शुरू कर दिया....वकील एच एस फुल्का ने बताया कि 9 लोगों को मार दिया और लड़की को उठा ले गये. 3 दिन बाद लड़की आयी तो पागल जैसी हो गयी थी. अक्सर यह सफाई दी जाती रही है कि 1984 में जो हुआ वह इंदिरा गांधी की हत्या की प्रतिक्रिया थी, लोगों का गुस्सा था. लेकिन क्या सुल्तानपुरी की पद्मी कौर की बेटी के साथ जो हुआ या फिर त्रिलोकपुरी की विधवाओं के साथ जो किया गया, वह कुछ ऐसे लोगों का गुस्सा था जो अपने नेता की हत्या से दुखी हों या फिर कुछ दंगाइयों की दरिंदगी ?

तरलोचन सिंह बताते हैं कि दिल्ली के लोगों ने सिखों को बचाया यह जो गुंडे थे यह बाहर से लाये गये. मंगोलपुरी में शायद कोई गुरूद्वारा ऐसा नहीं बचा था जिस पर हमला न किया गया हो, जिसे जलाया न गया हो. अचानक कहीं से एक भीड़ आती थी, गुरुद्दारे में लूटपाट करती थी और फिर आग लगा देती थी. सवाल ये भी था कि आखिर यह भीड़ आ कहां से आ रही थी. ऐसा कैसे हो रहा था कि पूरी दिल्ली में अलग-अलग जगहों पर एक ही तरीके से, एक ही पैटर्न पर सिखों को निशाना बनाया जा रहा था. एक सफेद पाउडर, जलता हुआ टायर, केरोसीन और मिट्टी का तेल और कुछ सौ लोगों की भीड़ . आखिर कहां से आ रहा था यह सब?
पत्रकार जरनैल सिंह बताते हैं कि बाकायदा रोहतक से ट्रेन लगाई गयी. कातिलों को जेल से छोड़ा गया. हरियाणा रोडवेज और डीटीसी की बसें लगाई गयीं ड्राइवरों को ड्यूटी लगाई गयी. तेल के डिपों के मालिकों से कहा गया कि आपको मिट्टी का तेल प्रोवाइड कराना है. पुलिस को कहा गया कि आपको जहां अगर विरोध हो वहां जाना है वरना आपको एफआईआर दर्ज नहीं करनी है....उस वक्त नांगलोई की जे जे कॉलोनी में रहने वाली बिशन कौर ने अपने हलफनामे में लिखा है कि हमले की घटनाओं के बाद गुरूद्वारे के ग्रंथी साहब ने लाउडस्पीकर पर सिखों को गुरूद्वारे में इकट्ठा होने के लिए कहा. इसके बाद लगभग सभी सिख गुरूद्वारे में इकट्ठा हो गये. भीड़ ने उस गुरूद्वारे पर हमला कर दिया. लेकिन सिखों ने भीड़ को गुरूद्वारे में घुसने नहीं दिया. उसी दिन करीब 12 बजे रोहतक की तरफ से एक ट्रेन आयी जिसमें से सैकड़ों लोग उतरे. उनके हाथ में लोहे की रॉड थी और साथ में एक सफेद केमिकल. इन लोगों ने सिखों के घरों पर वह सफेद केमिकल फेंककर आग लगाना शुरू कर दिया. इस तरह बिशन कौर के पति समेत नांगलोई में कुल 122 सिख मारे गये...पत्रकार महीप सिंह बताते हैं कि तीन से चार दिन तो अबाध रूप से हत्यायें होती रहीं. सेना नहीं बुलाई गयी. पुलिस दंगाइयों के साथ जुड़ गयी. सिखों के घर जलाये जा रहे थे और पुलिस का रोल ये था कि पुलिस कहती थी कि जो करना है जल्दी कर लो क्योंकि ज्यादा समय नहीं है....उन तीन दिनों में दिल्ली में जो हुआ उससे पुलिस की भूमिका पर सबसे ज्यादा सवाल उठे. जितनी भी वारदातें हुईं चाहे वह टैक्सी और ट्रक जलाने की घटनाएं हो या फिर घरों और गुरूद्वारों को जलाने के मामले. पुलिस हर जगह मौजूद थी लेकिन सिर्फ मूक दर्शक की तरह. बल्कि ज्यादातर मामलों में तो पुलिस पर दंगाइयों के साथ शामिल होने के आरोप लगे...पत्रकार जरनैल सिंह ने कहा कि पुलिस यहां आश्रम में लोगों को भड़का रही थी कि सिखों ने हिंदुओं की ट्रेन काटकर पंजाब से भेजी है. उन्होंने जहर मिला दिया है पानी में. इस तरह की अफवाहें फैलाइ जा रही थीं....निरप्रीत कौर तब 16 साल की थीं. दिल्ली के वेंकटेश्वर कॉलेज में बीएससी की पढ़ाई करने वाली निरप्रीत 1984 में पालम के राजनगर में अपने परिवार के साथ रहा करती थीं. लेकिन 2 नवंबर 1984 को जो हुआ उससे निरप्रीत का भरोसा ऐसा टूटा कि वह उग्रवादियों के साथ जुड़ने को मजबूर हो गयीं. निरप्रीत के गुस्से की वजह भी दंगाइयों से ज्यादा वह पुलिस है जिसने उनके पिता के साथ धोखा किया.
निरप्रीत कौर बताती हैं कि पुलिस के कहने पर मेरे फादर साहब गये काम्प्रोमाइज के लिए और पुलिस इंस्पेक्टर कौशिक ने माचिस दी जिससे मेरे पिता को जिंदा जलाया गया. जब मै वापस आयी मेरे पिता जल गये मैं दौड़ के घर के अंदर की तरफ आयी हूं और मैने देखा कि मेरी मां बेहोश पड़ी है और हमारे घर में पुलिस खड़ी है. और हमारे घर को आग लगी हुई है. ये है पुलिस का रोल...निरप्रीत जिस राजनगर में रहती थीं वहां सिखों के 250-300 परिवार थे. जब सिखों पर हमले शुरू हुए तो इनमें से ज्यादातर लोग निरप्रीत के घर पर इकट्ठा हो गये. यह लोग डटकर दंगाइयों का मुकाबला करने लगे. इसी वजह से भीड़ ने पुलिस की मदद से निरप्रीत के पिता निर्मल सिंह को निशाना बनाया...निरप्रीत कौर बताती हैं कि मैने अपनी आंखों के सामने अपने पिता को जिंदा जलते देखा. तीन बार मेरे पिता ने बचने की कोशिश की. नाले में गिरे हैं और उन्होंने फिर बाद में लाठियां मारी हैं. सरिये से मारा है. चार घंटे हमने हिफाजत खुद की है. चार घंटे बाद इन्होंने धोखे से मेरे पिता को भीड़ के सामने कर दिया...निरप्रीत कौर ने पूर्व सांसद और कांग्रेस नेता सज्जन कुमार के खिलाफ कोर्ट में गवाही दी. सज्जन कुमार समेत 6 लोगों पर दिल्ली कैंट में 5 सिखों की हत्या का मामला दर्ज हुआ. लेकिन ट्रायल कोर्ट ने बाकी 5 को दोषी मानते हुए सज्जन कुमार को इसमें बरी कर दिया...राजनगर, सागरपुर, महावीर एनक्लेव और द्वारकापुरी – दिल्ली कैंट के वो इलाके हैं जहां सिख विरोधी हिंसा में सबसे ज्यादा मौते हुईं. हिंसा के शिकार लोग जब पुलिस से मदद मांगने गये तो पुलिस ने उनकी शिकायत दर्ज करने से इंकार कर दिया. आहूजा कमेटी के मुताबिक दिल्ली कैंट में 341 सिखों की हत्या हुईं लेकिन यहां सिर्फ 5 एफआईआर दर्ज हुयीं.
वकील एच एस फुल्का बताते हैं कि दिल्ली कैंट के केस में जगदीश कौर ने बयान दिया कि उसके पति और बेटे को मार दिया. दो दिन तक लाशें पड़ी रहीं फिर उसने घर की चारपाइयों की लकड़ी से उनका अंतिम संस्कार किया.
क्या पुलिस हिंसा के शिकार लोगों की मदद इसलिए नहीं कर रही थी क्योंकि उन पर ऊपर से दबाव था. सब्जी मंडी पुलिस स्टेशन की कहानी यही साबित करती है. 31 अक्टूबर 1984 को एसएचओ गुरमेल सिंह थे. वह खुद सिख थे. यही नहीं उस दिन सब्जी मंडी सब डिवीजन के एसीपी भी एक सिख थे जिनका नाम केवल सिंह था. 31 अक्टूबर को जब हिंसा की घटनाएं शुरू ही हुयी थीं तब पूरी दिल्ली में यह पहला थाना था जहां दंगाइयों के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज हुई. लेकिन उसके कुछ घंटो के अंदर ही दोनों पुलिसवालों को यहां से हटा दिया गया. 1990 में कुसुम लता मित्तल ने अपनी जांच रिपोर्ट में साफ कहा कि उन दोनों पुलिसवालों को सिर्फ इसलिए हटाया गया क्योंकि वह स्थिति को संभालने की कोशिश कर रहे थे. 1 नवंबर से यहां भी वही हुआ जो बाकी दिल्ली में हो रहा था...उन तीन दिनों में सिखों के परिवार के परिवार खत्म किए जा रहे थे और उन हिंदुओं को भी निशाना बनाया जा रहा था जो सिख परिवारों की मदद कर रहे थे. वकील एच एच फुल्का बताते हैं कि दिल्ली में एक भी जगह ऐसी नहीं थी जहां सिख सेफ हो छुपने के लिए भी नहीं थी. साउथ एक्स में मेरे घर पर हमला हुआ. लैंडलॉर्ड एम्स ले गये वहां सेफ नहीं लगा तो एय़रफोर्स के मेरे दोस्त ने साकेत में दो दिन तक मुझे छुपा कर रखा. ये हालत थी सारी दिल्ली की एक भी जगह सेफ नहीं थी...दिल्ली का दिल कहे जाने वाले कनॉट प्लेस में भी सिर्फ आग और धुंए का गुबार दिख रहा था. अपनी तस्वीरों के जरिए 1984 का सच सामने लाने वाले फोटोग्राफर अशोक वाही कहते हैं कि उन्होंने जो कुछ देखा वह मंजर रोंगटे खड़े कर देने वाला था...संसद से कुछ ही दूरी पर स्थित गुरूद्वारा रकाबगंज साहब भी भीड़ के निशाने पर आया. नानावटी आयोग को दिए गये हलफनामों के मुताबिक यहां 4 से 5 घंटों तक कुछ हजार लोगों की भीड़ हंगामा करती रही. हलफनामों के मुताबिक कांग्रेसी नेता कमलनाथ को भी इस भीड़ में काफी देर तक मौजूद देखा गया.
पत्रकार जरनैल सिंह बताते हैं कि गुरूद्वारा रकाबगंज साहब पर भी हमला किया गया. वहां बाहर कमलनाथ वसंत साठे पुलिस कमिश्नर सुभाष टंडन वहां खड़े थे गुरूद्वारा साहब पर गोलियां चलाई गयीं. ये नानावटी कमीशन की रिपोर्ट है. मुख्यतियार सिह का हलफनामा है उसमें उन्होंने बताया है कि किस तरह से दो सिखों को जला दिया गया...उन तीन दिनों में अगर गरीब सिख बस्तियों को पूरी तरह तबाह किया गया तो तथाकथित वीआईपी इलाके भी बहुत सुरक्षित नहीं थे. मशहूर लेखक खुशवंत सिंह ने अपनी आंखों से खान मार्केट में दंगाइयों को पुलिस की मौजूदगी में आगजनी और लूटपाट करते देखा. इसके बाद उन्होंने अगली दो रातें स्वीडश एम्बैसी में रहकर गुजारी.
खास हो या आम. 84 के उन तीन दिनों में शायद ही ऐसा कोई सिख परिवार हो जो किसी न किसी तरह से उस हिंसा का शिकार न बना हो. एयरफोर्स के ग्रुप कैप्टन मनमोहन बीर सिंह तलवार को 1971 में पाकिस्तानी हवाई हमले को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. लेकिन शर्म है कि दंगाइयों ने देश का गौरव बढ़ाने वाले उस वीर को भी निशाना बनाने की कोशिश की क्योंकि वह सिख थे. 84 में कैप्टन तलवार अपने परिवार के साथ पटेल नगर में रहते थे.
वकील एच एस फुल्का बताते हैं कि पटेल नगर में ग्रुप कैप्टन मोहन वीर सिंह तलवार के घर पर अटैक हुआ. पुलिस को फोन किया पुलिस नहीं आयी. जब घर को आग लगा दी तब उन्होंने फायरिंग की भीड़ हटाने के लिए. मगर जब पुलिस शाम को पहुंची, आर्मी पहुंची तब उन्होंने तलवार के घर पर अटैक किया और उसे अरेस्ट किया. भीड़ में से एक आदमी नहीं पकड़ा. जब एसएचओ से मैंने पूछा तो उसने कहा भीड़ बहुत ज्यादा थी हम कम थे. 15 दिन वो जेल में रहा...1984 के वो तीन दिन दिल्ली के ज्यादातर सिख परिवारों पर कहर बनकर टूटे. हिंसक भीड़ उन्हें मारने पर आमादा थी और पुलिस उस भीड़ की मदद कर रही थी. लेकिन 3 नवंबर को इंदिरा गांधी के अंतिम संस्कार के साथ ही यह हिंसा थम गयी.
फुल्का बताते हैं कि आर्मी इफ्केटिव हुई. 3 नवंबर को तब एकदम वायलेंस खत्म हो गयी. पहली नवंबर को शुरू हुई जैसे किसी ने स्विच औन किया हो तीन नवंबर को एकदम खत्म हुई जैसे किसी ने स्विच बंद कर दिया हो. आमतौर पर कहा जाता है कि 72 घंटे इन्होंने दिये थे सिखों को सबक सिखाने के लिए और जब वह पूरे हुए तो उन्होने स्विच बंद कर दिया...सिख विरोधी हिंसा में पुलिस की भूमिका की जांच के लिए कपूर मित्तल कमेटी बनाई गयी. 1990 में इस कमेटी ने 6 आईपीएस अफसरों समेत 72 पुलिसवालों पर कार्रवाई की सिफारिश की. लेकिन इनमें से कुछ एक मामलों को छोड़कर ज्यादातर पुलिसवालों को प्रमोशन मिलता रहा और कुछ सम्मान के साथ रिटायर हो गये....पुलिस के रवैये की वजह से हजारों बेगुनाह मारे गये और गुनहगार बच गये. न दोषी पुलिसवाले पकड़े गये, न उन नेताओं को सजा मिली जिनके इशारे पर सब हुआ. न वो लोग जिन्होंने खुद हत्याओं को अंजाम दिया. 2733 सिखों की हत्या के मामले में अब तक सिर्फ 49 लोगों को उम्र कैद की सजा हुयी है. ज्यादातर केस सबूतों के अभाव में बंद कर दिये गये. इस सब की वजह है कि उन तीन दिनों में दिल्ली के 76 पुलिस थानों में से ज्यादातर में कोई एफआईआर ही नहीं दर्ज की गयी....पत्रकार जरनैल सिंह बताते हैं कि अगर एफआईआर दर्ज करनी भी पड़ी तो यह किया कि भीड़ ने 300 लोगों का यहां कत्ल किया दो लाइन की एफआईआर में. कौन लीड कर रहा था किसने मारा कोई तफ्तीश ही नहीं है. क्या इस दो लाइन की एफआईआर में केस कभी प्रूव हो सकता है.....उन तीन दिनों में जो हुआ उसने राजीव गांधी सरकार को शुरु में ही कटघरे मे खड़ा कर दिया. लेकिन हिंसा थमने के कुछ दिनों बाद राजीव गांधी ने दिल्ली के बोट क्लब में जो बयान दिया वह और ज्यादा चौंकाने वाला था. राजीव गांधी ने कहा कि जब कोई बहुत बड़ा और भारी भरकम पेड़ गिरता है तो आसपास की धरती हिलती तो है ही.
3 कमीशन और 7 कमेटियों ने 1984 की सिख विरोधी हिंसा की जांच की. सबने माना जो हुआ बहुत गलत हुआ. इसी साल सिख विरोधी हिंसा की जांच के लिए SIT के गठन की घोषणा भी की गई लेकिन इतने सब के बावजूद हिंसा के शिकार आज भी इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं.

भारतीय इतिहास की सबसे शर्मनाक राष्ट्रीय दुर्घटना / नरसंहार जिसमें 15000 से ज्यादा निर्दोष मासूम मारे गए ,,,,,, - अदिति गुप्ता


यदि हम देश मे हुए मजहबी दंगो को अनदेखा कर दे तो, मेरी नजर मे भोपाल गैस त्रासदी भारतीय इतिहास की सबसे शर्मनाक अप्राकर्तिक राष्ट्रिय दुर्घटना है ! अपितु इसे हमारी राजनैतिक और मानवीय मूल्यों के स्वर्णिम भारतीय इतिहास पर सबसे बड़ा कलंक कहना अतिश्योक्ति न होगा ! शायद यही वह समय था जब हमारे राजनेताओं की आम आदमी के प्रति आत्मीयता की संवेदना ने दम तोड़ दिया था !
3 दिसंबर 1984 की भारतीय राज्य मध्यप्रदेश के भोपाल शहर औद्योगिक क्षेत्र मे एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी यूनियन कार्बाइड मे विश्व का सबसे दर्दनाक शर्मनाक औद्योगिक हादसा हुआ ! सबसे हैरान करने वाली बात यह है की अभी तक की लगभग अनगिनत परिचर्चाओं मे कंही भी तत्कालीन निजाम शासक अर्जुन सिंह की भूमिका पर कंही कोई खास समीक्षा या तीव्र आलोचना नहीं हुई !जो भी हलकी फुलकी चर्चा हुई उसे राजनेतिक साजिश के तहत बरगला दिया गया !

पर मेरा इस विषय को पुन: जीवित, प्रज्जवलन करने का मूल उद्देश्य उन 15000 निरपराध जानों ( सरकारी आकडे ) , और असंख्य , गैस त्रासदी से विकलांग लोगो की पीड़ा को आप आम जन तक पहुचना है !
बहुराष्ट्रीय कम्पनी यूनियन कार्बाइड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वारेन एंडरसन ने विश्व के अन्य देश ,प्रान्तों, प्रदेशो की तरह यंहा भोपाल मे भी इक अत्यंत आधुनिक और सुरक्षा और उत्पादन के शीर्ष मायनों पर खरा उतरते रासायनिक कीटनाशक उत्पादन की महत्वकांक्षा का कारखाना स्थापित किया था !
यूनियन कार्बाइड की बेहतरीन कीटनाशक उत्पादन प्रणाली बाजार के साथ सामजस्य स्थापित नहीं कर पाई और इसने कारखाने को अनुमानित अर्थलाभ की उपेक्षा आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ा ! जिसका कंपनी की उत्पादन प्राणाली , सुरक्षा मानकदंड, और उपकरणों के अनुरक्षण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा !
3 दिसंबर 1984 की काली खूखार रात को यूनियन कार्बाइड के उत्पादन नियंत्रण कक्ष मे बैठे स्थाई कर्मचारियों कुछ रासायनिक रिसाव की शंका हुई , उपस्थित कर्मचारी ने तत्काल ही भूमिगत रसायन भंडारण टैंक का निरिक्षण किया तो उन्हें वंहा रसायन ” मिथायल आइसो सायनाइड” का मामूली सा रिसाव मिला ! जिसे उन्होंने दैनिक सुरक्षित रसायन रिसाव के छिटपुइय़ा रूप मे लिया ! पर देखते ही देखते इस रासायनिक रिसाव ने विकराल रूप ले लिया !
देखते ही देखते मिथायल आइसो सायनाइड के घातक वाष्पों ने भोपाल शहर के वायुमंडल में प्रवेश ले लिया ! आपातकालीन समय की गंभीरता ने कर्मचारिओं को मजबूर किया की शीघ्र ही आपातकालीन सुरक्षा प्राणाली का उपयोग कर समस्या का निदान किया जाए !
सबसे पहले उन्होंने रासायनिक वेंट स्क्रबर का इस्तेमाल किया, जिसका काम असुरक्षित गैस को क्षारीय जल में घोलकर वायुमंडल में जाने से रोकना है ,पर मिथायल आइसो सायनाइड के अनियंत्रित गैस रिसाव के विशाल बादल इससे अप्रभावित रहा !
यूनियन कार्बाइड ने ऐसी व्यवस्था की थी की यदि किसी कारणवश वेंट स्क्रबर असफल होता है तो तत्पश्चात ‘प्रज्ज्वलन कालम’ में प्रवेश कर रही इस भयानक गैस को इधन के रूप में जला वायुमंडल में जाने से रोका जा सके !
पर यह प्रयास भी विफल रहा ,
तीसरा तथा अंतिम प्रयास जल अग्निशमन के सिमित लघु संसाधनों के जल छिडकाव के रूप में रहा और यह प्रयास भी विफल रहा ,

देखते ही देखते मिथायल आइसो सायनाइड के घातक वाष्पों ने रियाह्शी क्षेत्रों में अपना प्रकोप दिखाना शुरू कर दिया , लोगो के फेफड़ो ,आँतों ,आँखों में ये जहरीला रसायन समा गया , मासूम बच्चे , बूढ़े ,जवान सभी उलटी ,आँखों में जलन , सांस लेने में दिक्कत की घातक समस्या से जूझने लगे !
निर्दोष जनता ने अकारण तड़प तड़प प्राण त्यागना शुरू कर दिया ,
उपचार करने वाले चिकित्सक को कभी अमोनिया गैस कभी फोस्जिन गैस के रिसाव की गलत और अतिक्रूर सुचना दी गई ,जिससे उपचाराधीन लोगो और चिकित्सक दोनों को गुमराह किया !
इधर राजनेतिक गलियारों में हलचल चालु हो गई ,जो बस दिखावे मात्र को था ,वारेन एंडरसन को भारत आते ही गिरफ्तार कर लिया गया और अपने ही गेस्ट हाउस में उसे किसी शाही मेहमान की तरह रखा गया और कुछ ही दिनों में जमानत ले वह अपने देश लौट गया !
वारेन एंडरसन ने स्वदेश लौटते ही इस मार्मिक वीभत्स दुर्घटना को साजिश का जामा पहनाना शुरू कर दिया ,उसने अपने कारखाने के अत्यंत आधुनिक और सुरक्षा और उत्पादन के शीर्ष मायनों का हवाला देना शुरू कर दिया !
इधर देश में केंद्र की कांग्रेस सरकार द्वारा प्रारंभिक जांच भारतीय वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान (सीएसआईआर) और केंद्रीय जांच ब्यूरो परिषद द्वारा आयोजित किया गया ! जिसने 1994 तक किसी भी आकडे की सार्वजनिक सुचना से इनकार कर दिया !
आप सोच सकते है की 15000 से अधिक लोगो के जानमाल के नुक्सान को तत्कालीन सरकार ने बहुत ही शर्मनाक ढंग से अनदेखा कर दिया था !
लाशों की लाशें ,निर्बोध पशु मारे गए थे , शहर जैसे भुतहा नगर बन गया था !
यह जानना यंहा हर भारतीय नागरिक के लिए आवश्यक हो जाता है की आखिर इस दुर्घटना ने इतना विकराल रूप कैसे ले लिया ! एक विदेशी संस्था ने लाख प्रतिबन्ध के बाद जो गुप्त रूप से जांच की उसमे निम्नलिखित कारक सामने आये !

1 ; मिथायल आइसो सायनाइड का भण्डारण तरल रूप में प्रशीतन ( ठन्डे ) माध्यम में किया जाता है ! पर आर्थिक नुक्सान के चलते इसे अनदेखा कर दिया गया था !
2. मिथायल आइसो सायनाइड का क्षमता से अधिक भण्डारण ! जिस समय दुर्घटना हुई उसमे 42 टन मिथायल आइसो सायनाइड था ,जबकि सुरक्षा मानकों के अनुसार 30 टन मिथायल आइसो सायनाइड का भण्डारण ही होना चाहिय था !
3 - मिथायल आइसो सायनाइड की प्रकति के अनुसार यदि इसमें कोई अशुद्ध्त्ता मिश्रित हो जाए तो यह खतरनाक एक्ज़ोथिर्मिक प्रतिक्रिया का रूप ले लेता है ! यही हुआ भी, क्युंकी आर्थिक बजट के नियंत्रण के चलते प्रबंधन ने मेंटेनैंस सुपरवाईसर को निकाल दिया था !
और एक ही उपकरण कई प्रकिरियाओं में इस्तेमाल होने लगा, जिसने किसी तरह पानी और आयरन जंग को मिथायल आइसो सायनाइड टैंक के भीतर पहुंचा दिया !
4 उपकरण नियंत्रक नाइट्रोजन वाल्व का ख़राब होना !
5 रासायनिक वेंट स्क्रबर,प्रज्ज्वलन कालम’, जल अग्निशमन यंत्रों की क्षमता का कमजोर और ख़राब होना !
इस विभत्स अतिक्रूर परमाणु बम्ब के से शर्मनाक दुर्घटना के शिकार मासूम लोग आज भी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहें है ,
कंही भी उनकी मार्मिक चीखों का असर नहीं दिखता ! असर दिखता है तो बस उनके आने वाली पीढ़ीओं में , जो आज भी विकलांगता और गंभीर बिमारी की समस्या से जूझ रही है !

हमें गर्व हैं Smriti Zubin Irani जी पर जिस तरह यह इन भाड़ मीडिया के दल्ले पत्रकारों को उनकी औकाद दिखा रही हैं - अदिति गुप्ता


यह भाड़ मीडिया बाले मोदी सरकार से किस तरह बौखला हए हैं और किस तरह यह मोदी सरकार के मंत्रियो पर निशाना साध रहे हैं इसके दो उदहारण देखिये -
Aaj Tak के एंकर ने स्मृति ईरानी से पूछा कि " मोदी को (मोदी जी नहीं) आप में ऐसी क्या खूबी नज़र आई कि आपको इतनी कम उम्र में HRD जैसा महत्वपूर्ण विभाग दे कर मंत्री बना दिया?"
स्मृति ईरानी ने जवाब में सभागार में बैठी महिलाओं को संबोधित करते हुऐ पूछ लिया कि मैं अशोक सिंघल जी के (उपरोक्त) प्रश्न का महिला हो कर क्या उत्तर दूं..?
बस पहली बार आजतक के एंकर अशोक के खिलाफ सभागार में बैठे सारे लोग, शिक्षक, छात्र, महिलायें Shame Shame की लाईव हूटिंग कर दिये, लोग एंकर को मारने के लिये मंच पर चढ गये हैं ... अंजना ओम कश्यप का चेहरा फक् ..
आजतक पर अचानक कट् और विज्ञापन शुरू ।
ABP News के पत्रकार अभिसार की जो बजाई है स्मृति ईरानी नें... बोलती बन्द हो गई दोगले की... झेंप मिटाने तक की तरकीब नहीं सूझ रही थी इसे....पहली बार बेचारा AC स्टूडियो में बैठ कर बार बार पसीना पौंछ रहा था ....
गिनती करना मुश्किल हो गया कितनी बार पसीना पौंछा और पानी पिया बीच बीच में....
कसम से मज़ा आ गया लाइव देख कर !!!
जब स्मृति नें कहा कि ''मेरे पास प्रमाण हैं कि आप किस किस राजनीतिक पार्टी के प्रवक्ता हैं.. आप इस लाइव प्रोग्राम पर वादा करिये कि मैं वो प्रमाण दे दूँ तो आप पत्रकारिता छोड़ देंगे...
बोलिये...मैं अभी इसी वक्त आपके कैमरामैन को वो प्रमाण देने को तैयार हूँ '' तो बेचारे की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई .... स्मृति नें यहीं नहीं छोड़ा
'' अब आप कमर्शियल ब्रेक लेकर बात का रुख बदलने की कोशिश मत करियेगा .... जवाब दीजिये कि प्रमाण दूँ कि नहीं ?''
तुंरत बात बदल के बोला...''ये आज हमारा मुद्दा नहीं है''.......
हा हा हा हा हा ....मज़ा आ गया।
और आज जरुरत हैं की मोदी सरकार के सभी मंत्री , प्रवक्ता इन दोगले पत्रकारों को इसी तरह इनकी औकाद दिखाए तभी यह अपनी औकाद में रहेंगे और सरकार तभी अपना काम ठीक प्रकार से कर पायेगी..!!

पतंजलि और Baba Ramdev के खिलाफ कोंग्रेस के षड्यंत्र का पर्दाफास - अदिति गुप्ता


यह पोस्ट जन जन तक पहुचाये इसमें पतंजलि और Baba Ramdev के खिलाफ कोंग्रेस के षड्यंत्र का पर्दाफास किया गया है.....
CCTV के विडियो फुटेज व पोस्‍टामर्टम रिपोर्ट से सच आया सामने, उत्‍तराखंड पुलिस की खुली पोल
पतंजलि फूड पार्क में 27 मई को हुए संघर्ष में उत्‍तराखंड पुलिस की पोल पूरी तरह से खुल चुकी है। फूड पार्क पर हमला करने आए हमलावरों की एक-एक गतिविधि इस सीसीटीवी फुटेज में कैद है, जिससे यह साबित होता है कि मृतक दलजीत सिंह तलवार लेकर पतंजलि में माल ढुलाई में लगे ट्रांसपोर्टरों पर हमला कर रहा था। यही नहीं, दलजीत सिंह की पोस्‍टमार्टम रिपोर्ट दर्शाती है कि उसकी मौत, लाठी-डंडों से हुई पिटाई में हुई थी, लेकिन उत्‍तराखंड पुलिस ने शुरू शुरू में उसकी मौत गोली लगने से बतायी थी। यह साफ दर्शाता है कि उत्‍तराखंड पुलिस स्‍थानीय कांग्रेसी सरकार के दबाव में तथ्‍यों के परे जाकर काम कर रही है। यह भी एक हकीकत है कि पतंजलि फूड पार्क प्रशासन ने 15 अप्रैल 2015 को स्‍थानीय थाना में बार-बार हमला कर रहे इन अराजक तत्‍वों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराया था, लेकिन पुलिस उन पर कार्रवाई करने की जगह चुपचाप तमाशा देखती रही, जिस कारण यह नौबत आयी।

उल्‍लेखनीय है कि 27 मई 2015 को स्‍थानीय अराजक तत्‍वों ने हथियारों से लैस होकर पतंजलि फूड पार्क पर हमला कर दिया था, जिसमें करीब 12 लोग घायल हुअए और एक व्‍यक्ति दलजीत सिंह की मौत हो गई। सीसीटीवी फुटेज से पता चलता है कि हमलावरों में सबसे आगे दलजीत सिंह ही था, जिसके हाथ में तलवार थी और वह ट्रांसपोर्टरों पर हमला कर रहा था। एक-एक ट्रांसपोर्टर की गाडी को रोककर वह उनके शीशे तोड़ रहा था। ट्रांसपोर्टर विवेक जैन, सुधीर कुमार व नरेंद्र चहल ने बताया कि आप सीसीटीवी फुटेज में साफ देख सकते हैं कि दलजीत हमारे ऊपर जानलेवा हमला कर रहा है। उसके हाथ में नंगी तलवार थी, जो वह बेखौफ लहरा रहा था।

उधर दलजीत सिंह की पोस्‍टमार्टम रिपोर्ट बताती है कि उसकी मौत लाठी-डंडे की मार से हुई है, न कि राइफल की गोली से। उत्‍तराखंड पुलिस ने दलजीत की मौत के बाद मीडिया को बताया था कि दलजीत की मौत राइफल की गोली से हुई है। आचार्य बालकृष्‍ण ने एक प्रेसवार्ता में बताया था कि 26 मई को भी हमलावरों ने फूड पार्क पर हमला किया था, जिसकी शिकायत मैंने स्‍वयं राज्‍य के सभी आला पुलिस अधिकारियों को फोन कर किया था और उनसे सुरक्षा की गुहार लगाई थी। उन्‍हें बताया था कि 15 अप्रैल 2015 को हमने इस बारे में पथरी थाने में एक प्राथमिकी भी दर्ज करायी थी, लेकिन आज तक पुलिस ने उस पर कार्रवाई नहीं किया है। उल्‍टे निर्दोष रामभरत को रात के अंधेरे में उठाकर ले गई। आचार्य बालकृष्‍ण के मुताबिक स्‍थानीय कांग्रेस प्रशासन जानबूझ कर हमें परेशान करने की कोशिश कर रही है।

पतंजलिा के पदाधिकारियों के अनुसार, CCTV के विडियो फुटेज जिसमे साफ़ साफ दिखाई दे रहा है मृतक दलबीर सिंह खुद हमलावर था। वह बिना कारन पतंजलि के गेट पर आया तथा उसने खुद आकर गाड़ी में बैठे लोगों पर जानलेवा हमला शुरू कर दिया। प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने षड्यंत्र करके राम्भारत को गिरफ्तार किया है। षड्यंत्र करके पतंजलि फ़ूड पार्क को बंद करके एक लाख किसानो के पेट पर लात मारकर उनको भूखो मारने का काम कर रही है।
आप खुद देखिये पतंजलि फूड पार्क का सच.... खुद देखिये वीडियो में पूरा सच वीडियो लिंक -https://www.youtube.com/attribution_link…
— with परेश स्वर्णकार.

भारतीय प्रधानमंत्री इजरायल की यात्रा पर ....उम्मीद है कि राष्ट्रवाद को नये आयाम मिलेंगे. - अदिति गुप्ता


पहली बार कोई भारतीय प्रधानमंत्री इजरायल की यात्रा पर जा रहा है. उम्मीद है कि राष्ट्रवाद को नये आयाम मिलेंगे. हिंदुस्तान और इजरायल दोनों एक असभ्य पड़ोसी देश के आतंकवाद के विरूद्ध खड़े एक एक बहादुर लोकतंत्र हैं... ये दोनों देश इस्लामी आतंकवाद का सामना कर रहे हैं.. 1999 के कारगिल संघर्ष के दौरान इज़राइल ने हिंदुस्तान को तोप के गोलों की आपूर्ति की थी तब से, इज़राइल रूस के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा शस्त्र आपूर्तिकर्ता बनकर उभरा है।
भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक समय वो भी था कि इजराइल के दुश्मन फिलिस्तीन से यूँ गलबहियां की जाती थी...कांग्रेस के लगभग सभी प्रधानमंत्री फिलिस्तीन के मुस्लिमों के समर्थक थे मगर इजराइल के राष्ट्रवादियों के नहीं....यही मुल्ला तुष्टिकरण कांग्रेस की सत्ता प्राप्ति का सबसे बड़ा फार्मूला था....उस समय का मशहूर आतंकवादी यासिर अराफ़ात इंदिरा गांधी का मुह बोला भाई था.."जब भी अराफ़ात भारत आता इंदिरा गांधी अराफ़ात को हमेशा रिसीव करने हवाई अड्डे पर जाती थीं. वह हमेशा इंदिरा गांधी को 'माई सिस्टर' कह कर पुकारता...राजीव गांधी के साथ भी अराफ़ात की बहुत घनिष्टता थी. कहा जाता है कि एक बार उन्होंने भारत में राजीव गांधी के लिए चुनाव प्रचार करने की पेशकश की थी.
फिलिस्तीन के पहले प्रमुख यासिर अराफ़ात ने इंदिरा गांधी को अपनी बहन कहा था और उसके ठीक बाद 1983 में भारत में जब गुटनिरपेक्ष देशों का शिखर सम्मेलन हुआ तो अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में खुलेआम यह भी कहा था कि भारत कश्मीर का सबसे बड़ा दुश्मन है और पाकिस्तान सबसे बड़ा दोस्त....इन हरामज़ादे फिलीस्तीनियों ने आज तक कभी भी कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा पे और पाकिस्तान के बलोचिस्तान और सिंध में शिया, हज़ारा और अहमदिया मुसलामानों के दुर्दशा पे भी एक शब्द नहीं बोला है...कांग्रेस का फ़िलिस्तीन के प्रति झुकाव महज़ घरेलू राजनीति के लिये था...

यासिर अराफात को छींक भी आती थी तब वो भागकर दिल्ली आता था .. इंदिरा और राजीव उसके लिए पलके बिछाए रहते थे ...जब आतंकवादी यासिर अराफात ने फिलिस्तीन राष्ट्र की घोषणा की तो फिलिस्तीन को सबसे पहले मान्यता देने वाला देश कौन था??.....
सउदी अरब --- नहीं
पाकिस्तान ---- नहीं
अफगानिस्तान --- नहीं
हिंदुस्तान ------ जी हा.....
इंदिरा गाँधी ने मुस्लिम तुस्टीकरण के लिए सबसे पहले फिलिस्तीन को मान्यता दिया और यासिर अराफात जैसे आतंकवादी को नेहरु शांति पुरस्कार [5 करोड़ रूपये ] दिया और राजीव गाँधी ने उसको इंदिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार दिया. राजीव गाँधी ने तो उसको पुरे विश्व में घुमने के लिए बोईंग 747 गिफ्ट में दिया था....
जिस व्यक्ति को दुनिया के 103 देश आतंकवादी घोषित किये हो और जिसने 8 विमानों का अपहरण किया हो और जिसने दो हज़ार निर्दोष लोगो को मारा हो. ऐसे आतंकवादी यासिर अराफात को सबसे पहले भारत ने किसी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार ने नवाजा.....जी हाँ, इंदिरा गाँधी ने इसे नेहरु शांति पुरस्कार दिया. जिसमे एक करोड रूपये नगद और दो सौ ग्राम सोने से बना एक शील्ड होता है......आप सोचिये, 1983 मे मतलब आज से करीब 32 साल पहले एक करोड रूपये की क्या वैल्यू होगी??.....फिर राजीव गाँधी ने इसे इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय शांति पुरस्कार से नवाजा......
फिर बाद मे यही यासिर अराफात कश्मीर के मामले पर खुलकर पाकिस्तान के साथ हो गया और इसने घूम घूमकर पूरे इस्लामीक देशो मे कहा की फिलिस्तीन और कश्मीर दोनों जगहों के मुसलमान गैर मुसलमानों के हाथो मारे जा रहे है. इसलिए पूरे मुस्लिम जगत को इन दोनों मामलो पर एकजुट होना चाहिए......
भारत जब थोड़े सालो के लिए इन नीच गांधियो के चंगुल से मुक्त हुआ और पीवी नरसिम्हाराव प्रधानमंत्री बने थे तब 1992 में भारत में इजरायल के साथ राजनयिक समबन्ध स्थापित किये और दिल्ली मुंबई में इजरायल के दूतावास खोलने की मंजूरी दी ... 2004 में, जब भाजपा से सत्ता छीनकर कांग्रेस ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सत्ता की कमान संभाली तो भारत-इज़राइल संबंध ठंडे पड़ गए दो-देश के अलगाव हेतु लंबे समय तक सिर्फ समर्थन करते रहने की बजाय, भारत ने फ़िलिस्तीन की पूर्वी येरूशलम को भविष्य के राज्य की राजधानी बनाने की मांग को अपना समर्थन दिया जिसके कारण भारत और इज़राइल के बीच उच्च स्तर की सरकारी यात्राओं ने गति खो दी..
इन नीच गांधियो ने वोट बैंक के लिए मुसलमानो को खुश करके के खातिर कभी इजरायल के साथ किसी भी तरह का कोई समबन्ध नही रखा यह इस देश का सबसे बड़ा दुर्भागय हैं...!!

अयोध्या_का_इतिहास‬ - एक आलेख प्रस्तुत हैं......- अदिति गुप्ता (HISTORY OF AYODHAYA)


प्रिय विद्वान मित्रों आपके समक्ष फेसबुक के माध्यम से शोध किया हुआ एक आलेख.... अयोध्या का इतिहास...प्रस्तुत हैं आलेख में कुछ जानकारी का अभाव संभव हो सकता है किन्तु बहुत मेहनत से जानकारी उपलब्ध कर आलेख लिखा है उम्मीद हैं आप इस आलेख को ध्यान से पढ़ेंगे..मैं भली भाँति जानती हूँ की 25-30 से ज्यादा लोग इस लेख को पूरा पढ़ेंगे भी नहीं..
जब बाबर दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ उस समय जन्मभूमि सिद्ध महात्मा श्यामनन्द जी महाराज के अधिकार क्षेत्र में थी। महात्मा श्यामनन्द की ख्याति सुनकर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा आशिकान अयोध्या आये । महात्मा जी के शिष्य बनकर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा ने योग और सिद्धियाँ प्राप्त कर ली और उनका नाम भी महात्मा श्यामानन्द के ख्यातिप्राप्त शिष्यों में लिया जाने लगा।
ये सुनकर जलालशाह नाम का एक फकीर भी महात्मा श्यामानन्द के पास आया और उनका शिष्य बनकर सिद्धियाँ प्राप्त करने लगा।
जलालशाह एक कट्टर मुसलमान था, और उसको एक ही सनक थी, हर जगह इस्लाम का आधिपत्य साबित करना । अत: जलालशाह ने अपने काफिर गुरू की पीठ में छुरा घोंपकर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा के साथ मिलकर ये विचार किया कि यदि इस मदिर को तोड़ कर मस्जिद बनवा दी जाये तो इस्लाम का परचम हिन्दुस्थान में स्थायी हो जायेगा। धीरे धीरे जलालशाह और ख्वाजा कजल अब्बास मूसा इस साजिश को अंजाम देने की तैयारियों में जुट गए ।
सर्वप्रथम जलालशाह और ख्वाजा, बाबर के विश्वासपात्र बने और दोनों ने अयोध्या को खुर्द मक्का बनाने के लिए जन्मभूमि के आसपास की जमीनों में बलपूर्वक मृत मुसलमानों को दफन करना शुरू किया । और मीरबाँकी खां के माध्यम से बाबर को उकसाकर मंदिर के विध्वंस का कार्यक्रम बनाया। बाबा श्यामानन्द जी अपने मुस्लिम शिष्यों की करतूत देख के बहुत दुखी हुए और अपने निर्णय पर उन्हें बहुत पछतावा हुआ। दुखी मन से बाबा श्यामानन्द जी ने रामलला की मूर्तियाँ सरयू में प्रवाहित कर दी और खुद हिमालय की और तपस्या करने चले गए। मंदिर के पुजारियों ने मंदिर के अन्य सामान आदि हटा लिए और वे स्वयं मंदिर के द्वार पर रामलला की रक्षा के लिए खड़े हो गए। जलालशाह की आज्ञा के अनुसार उन चारो पुजारियों के सर काट लिए गए । जिस समय मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाने की घोषणा हुई उस समय भीती के राजपूत राजा महताब सिंह, बद्री नारायण की यात्रा करने के लिए निकले थे, अयोध्या पहुचने पर रास्ते में उन्हें ये खबर मिली तो उन्होंने अपनी यात्रा स्थगित कर दी और अपनी छोटी सेना में रामभक्तों को शामिल कर 1 लाख चौहत्तर हजार लोगो के साथ बाबर की सेना के 4 लाख 50 हजार सैनिकों से लोहा लेने निकल पड़े।

रामभक्तों ने सौगंध ले रखी थी रक्त की आखिरी बूंद तक लड़ेंगे जब तक प्राण है तब तक मंदिर नहीं गिरने देंगे। रामभक्त वीरता के साथ लड़े 70 दिनों तक घोर संग्राम होता रहा और अंत में राजा महताब सिंह समेत सभी 1 लाख 74 हजार रामभक्त मारे गए। श्रीराम जन्मभूमि रामभक्तों के रक्त से लाल हो गयी। इस भीषण कत्ले आम के बाद मीरबांकी ने तोप लगा के मंदिर गिरवा दिया । मंदिर के मसाले से ही मस्जिद का निर्माण हुआ पानी की जगह मरे हुए हिन्दुओं का रक्त इस्तेमाल किया गया नीव में लखौरी इंटों के साथ ।
इतिहासकार कनिंघम अपने लखनऊ गजेटियर के 66वें अंक के पृष्ठ 3 पर लिखता है की एक लाख चौहतर हजार हिंदुओं की लाशें गिर जाने के पश्चात मीरबाँकी अपने मंदिर
ध्वस्त करने के अभियान मे सफल हुआ और उसके बाद जन्मभूमि के चारो और तोप लगवाकर मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया ।
इसी प्रकार हैमिल्टन नाम का एक अंग्रेज बाराबंकी गजेटियर में लिखता है की ” जलालशाह ने हिन्दुओं के खून का गारा बना के लखौरी ईटों की नीव मस्जिद बनवाने के लिए दी गयी थी। ”
उस समय अयोध्या से 6 मील की दूरी पर सनेथू नाम का एक गाँव के पंडित देवीदीन पाण्डेय ने वहां के आस पास के गांवों सराय सिसिंडा राजेपुर आदि के सूर्यवंशीय क्षत्रियों को एकत्रित किया॥ देवीदीन पाण्डेय ने सूर्यवंशीय क्षत्रियों से कहा भाइयों आप लोग मुझे अपना राजपुरोहित मानते हैं ..आप के पूर्वज श्री राम थे और हमारे पूर्वज महर्षि भारद्वाज जी। आज मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की जन्मभूमि को मुसलमान आक्रान्ता कब्रों से पाट रहे हैं और खोद रहे हैं इस परिस्थिति में हमारा मूकदर्शक बन कर जीवित रहने की बजाय जन्मभूमि की रक्षार्थ युद्ध करते करते वीरगति पाना ज्यादा उत्तम होगा ।
देवीदीन पाण्डेय की प्रार्थना से दो दिन के भीतर 90 हजार क्षत्रिय इकठ्ठा हो गए दूर दूर के गांवों से लोग समूहों में इकठ्ठा हो कर देवीदीन पाण्डेय के नेतृत्व में जन्मभूमि पर जबरदस्त धावा बोल दिया । शाही सेना से लगातार 5 दिनों तक युद्ध हुआ । छठे दिन मीरबाँकी का सामना देवीदीन पाण्डेय से हुआ उसी समय धोखे से उसके अंगरक्षक ने एक लखौरी ईंट से पाण्डेय जी की खोपड़ी पर वार कर दिया। देवीदीन पाण्डेय का सर बुरी तरह फट गया मगर उस वीर ने अपनी पगड़ी से खोपड़ी को बाँधा और तलवार से उस कायर अंगरक्षक का सर काट दिया। इसी बीच मीरबाँकी ने छिपकर गोली चलायी जो पहले ही से घायल देवीदीन पाण्डेय जी को लगी और वो जन्मभूमि की रक्षा में वीर गति को प्राप्त हुए ।
जन्मभूमि फिर से 90 हजार हिन्दुओं के रक्त से लाल हो गयी। देवीदीन पाण्डेय के वंशज सनेथू ग्राम के ईश्वरी पांडे का पुरवा नामक जगह पर अब भी मौजूद हैं ।
पाण्डेय जी की मृत्यु के 15 दिन बाद हंसवर के राजपूत महाराजा रणविजय सिंह ने सिर्फ 25 हजार सैनिकों के साथ मीरबाँकी की विशाल और शस्त्रों से सुसज्जित सेना से रामलला को मुक्त कराने के लिए आक्रमण किया । 10 दिन तक युद्ध चला और महाराज जन्मभूमि के रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हो गए। जन्मभूमि में 25 हजार हिन्दुओं का रक्त फिर बहा।
रानी जयराज कुमारी हंसवर के स्वर्गीय महाराज रणविजय सिंह की पत्नी थी। जन्मभूमि की रक्षा में महाराज के वीरगति प्राप्त करने के बाद महारानी ने उनके कार्य को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और तीन हजार नारियों की सेना लेकर उन्होंने जन्मभूमि पर हमला बोल दिया और हुमायूं के समय तक उन्होंने छापामार युद्ध जारी रखा। रानी के गुरु स्वामी महेश्वरानंद जी ने रामभक्तों को इकठ्ठा करके सेना का प्रबंध करके जयराज कुमारी की सहायता की। साथ ही स्वामी महेश्वरानंद जी ने सन्यासियों की सेना बनायीं इसमें उन्होंने 24 हजार सन्यासियों को इकठ्ठा किया और रानी जयराज कुमारी के साथ हुमायूँ के समय में कुल 10 हमले जन्मभूमि के उद्धार के लिए किये। 10वें हमले में शाही सेना को काफी नुकसान हुआ और जन्मभूमि पर रानी जयराज कुमारी का अधिकार हो गया।

लेकिन लगभग एक महीने बाद हुमायूँ ने पूरी ताकत से शाही सेना फिर भेजी, इस युद्ध में स्वामी महेश्वरानंद और रानी कुमारी जयराज कुमारी लड़ते हुए अपनी बची हुई सेना के साथ मारे गए और जन्मभूमि पर पुनः मुगलों का अधिकार हो गया। श्रीराम जन्मभूमि एक बार फिर कुल 24 हजार सन्यासियों और 3 हजार वीर नारियों के रक्त से लाल हो गयी रानी जयराज कुमारी और स्वामी महेश्वरानंद जी के बाद यद्ध का नेतृत्व स्वामी बलरामचारी जी ने अपने हाथ में ले लिया। स्वामी बलरामचारी जी ने गांव गांव में घूम कर
रामभक्त हिन्दू युवकों और सन्यासियों की एक मजबूत सेना तैयार करने का प्रयास किया और जन्मभूमि के उद्धारार्थ 20 बार आक्रमण किये. इन 20 हमलों में कम से कम 15 बार स्वामी बलरामचारी ने जन्मभूमि पर अपना अधिकार कर लिया मगर ये अधिकार अल्प समय के लिए रहता था। थोड़े दिन बाद बड़ी शाही फ़ौज आती थी और जन्मभूमि पुनः मुगलों के अधीन हो जाती थी । जन्मभूमि में लाखों हिन्दू बलिदान होते रहे।
उस समय का मुग़ल शासक अकबर था। शाही सेना हर दिन के इन युद्धों से कमजोर हो रही थी । अतः अकबर ने बीरबल और टोडरमल के कहने पर खस की टाट से उस चबूतरे पर 3 फीट का एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया। लगातार युद्ध करते रहने के कारण स्वामी बलरामचारी का स्वास्थ्य गिरता चला गया था और प्रयाग कुम्भ के अवसर पर त्रिवेणी तट पर स्वामी बलरामचारी की मृत्यु हो गयी ।
इस प्रकार बार-बार के आक्रमणों और हिन्दू जनमानस के रोष एवं हिन्दुस्थान पर मुगलों की ढीली होती पकड़ से बचने का एक राजनैतिक प्रयास के कारण अकबर की इस कूटनीति से कुछ दिनों के लिए जन्मभूमि में रक्त नहीं बहा।
यही क्रम शाहजहाँ के समय भी चलता रहा। फिर औरंगजेब के हाथ सत्ता आई वो कट्टर मुसलमान था और उसने समस्त भारत से काफिरों के सम्पूर्ण सफाये का संकल्प लिया था। उसने लगभग 10 बार अयोध्या मे मंदिरों को तोड़ने का अभियान चलाकर यहाँ के सभी प्रमुख मंदिरों की मूर्तियों को तोड़ डाला। औरंगजेब के समय में समर्थ गुरु श्री रामदास जी महाराज जी के शिष्य श्री वैष्णवदास जी ने जन्मभूमि के उद्धारार्थ 30 बार आक्रमण किये। इन आक्रमणों मे अयोध्या के आस पास के गांवों के सूर्यवंशी क्षत्रियों ने पूर्ण सहयोग दिया जिनमे सराय के ठाकुर सरदार गजराज सिंह और राजेपुर के कुँवर गोपाल सिंह तथा सिसिण्डा के ठाकुर जगदंबा सिंह प्रमुख थे। ये सारे वीर ये जानते हुए भी की उनकी सेना और हथियार बादशाही सेना के सामने कुछ भी नहीं है अपने जीवन के आखिरी समय तक शाही सेना से लोहा लेते रहे। लम्बे समय तक चले इन युद्धों में रामलला को मुक्त कराने के लिए हजारों हिन्दू वीरों ने अपना बलिदान दिया और अयोध्या की धरती पर उनका रक्त बहता रहा।
ठाकुर गजराज सिंह और उनके साथी क्षत्रियों के वंशज आज भी सराय मे मौजूद हैं। आज भी फैजाबाद जिले के आस पास के सूर्यवंशीय क्षत्रिय सिर पर पगड़ी नहीं बांधते, जूता नहीं पहनते, छाता नहीं लगाते, उन्होने अपने पूर्वजों के सामने ये प्रतिज्ञा ली थी की जब तक श्री राम जन्मभूमि का उद्धार नहीं कर लेंगे तब तक जूता नहीं पहनेंगे, छाता नहीं लगाएंगे, पगड़ी नहीं पहनेंगे।
1640 ईस्वी में औरंगजेब ने मन्दिर को ध्वस्त करने के लिए जबांज खाँ के नेतृत्व में एक जबरदस्त सेना भेज दी थी, बाबा वैष्णव दास के साथ साधुओं की एक सेना थी जो हर विद्या मे निपुण थी इसे चिमटाधारी साधुओं की सेना भी कहते थे। जब जन्मभूमि पर जबांज खाँ ने आक्रमण किया तो हिंदुओं के साथ चिमटाधारी साधुओं की सेना भी मिल गयी और उर्वशी कुंड नामक जगह पर जाबाज़ खाँ की सेना से सात दिनों तक भीषण युद्ध किया । चिमटाधारी साधुओं के चिमटे की मार से मुगलों की सेना भाग खड़ी हुई। इस प्रकार चबूतरे पर स्थित मंदिर की रक्षा हो गयी
जाबाज़ खाँ की पराजित सेना को देखकर औरंगजेब बहुत क्रोधित हुआ और उसने जाबाज़ खाँ को हटाकर एक अन्य सिपहसालार सैय्यद हसन अली को 50 हजार सैनिकों की सेना और तोपखाने के साथ अयोध्या की ओर भेजा और साथ मे ये आदेश दिया की अबकी बार जन्मभूमि को बर्बाद करके वापस आना है, यह समय सन् 1680 का था । बाबा वैष्णव दास ने सिक्खों के गुरु गुरुगोविंद सिंह से युद्ध मे सहयोग के लिए पत्र के माध्यम संदेश भेजा । पत्र पाकर गुरु गुरुगोविंद सिंह सेना समेत तत्काल अयोध्या आ गए और ब्रहमकुंड पर अपना डेरा डाला। ब्रहमकुंड वही जगह जहां आजकल गुरुगोविंद सिंह की स्मृति मे सिक्खों का गुरुद्वारा बना हुआ है। बाबा वैष्णव दास एवं सिक्खों के गुरुगोविंद सिंह रामलला की रक्षा हेतु एकसाथ रणभूमि में कूद पड़े। इन वीरों कें सुनियोजित हमलों से मुगलो की सेना के पाँव उखड़ गये सैय्यद हसन अली भी युद्ध मे मारा गया। औरंगजेब हिंदुओं की इस प्रतिक्रिया से स्तब्ध रह गया था और इस युद्ध के बाद 4 साल तक उसने अयोध्या पर हमला करने की हिम्मत नहीं की। औरंगजेब ने सन् 1664 मे एक बार फिर श्री राम जन्मभूमि पर आक्रमण किया। इस भीषण हमले में शाही फौज ने लगभग 10 हजार से ज्यादा हिंदुओं की हत्या कर दी नागरिकों तक को नहीं छोड़ा। जन्मभूमि हिन्दुओं के रक्त से लाल हो गयी। जन्मभूमि के अंदर नवकोण के एक कंदर्प कूप नाम का कुआं था, सभी मारे गए हिंदुओं की लाशें मुगलों ने उसमे फेककर चारों ओर चहारदीवारी उठा कर उसे घेर दिया। आज भी कंदर्पकूप “गज शहीदा” के नाम से प्रसिद्ध है, और जन्मभूमि के पूर्वी द्वार पर स्थित है। शाही सेना ने जन्मभूमि का चबूतरा खोद डाला बहुत दिनो तक वह चबूतरा गड्ढे के रूप मे वहाँ स्थित था। औरंगजेब के क्रूर अत्याचारो की मारी हिन्दू जनता अब उस गड्ढे पर ही श्री रामनवमी के दिन भक्तिभाव से अक्षत, पुष्प और जल चढाती रहती थी | नबाब सहादत अली के समय 1763 ईस्वी में जन्मभूमि के रक्षार्थ अमेठी के राजपूत राजा गुरुदत्त सिंह और पिपरपुर के राजकुमार सिंह के नेतृत्व मे बाबरी ढांचे पर पुनः पाँच आक्रमण किये गये जिसमें हर बार हिन्दुओं की लाशें अयोध्या में गिरती रहीं। लखनऊ गजेटियर मे कर्नल हंट लिखता है कि “ लगातार हिंदुओं के हमले से ऊबकर नबाब ने हिंदुओं और मुसलमानो को एक साथ नमाज पढ़ने और भजन करने की इजाजत दे दी पर सच्चा मुसलमान होने के नाते उसने काफिरों को जमीन नहीं सौंपी। “लखनऊ गजेटियर पृष्ठ 62” नासिरुद्दीन हैदर के समय मे मकरही के राजा के नेतृत्व में जन्मभूमि को पुनः अपने रूप मे लाने के लिए हिंदुओं के तीन आक्रमण हुये जिसमें बड़ी संख्या में हिन्दू मारे गये। परन्तु तीसरे आक्रमण में डटकर
नबाबी सेना का सामना हुआ 8वें दिन हिंदुओं की शक्ति क्षीण होने लगी । रामजन्मभूमि के मैदान मे हिन्दुओं और मुसलमानो की लाशों का ढेर लग गया । इस संग्राम मे भीती, हंसवर, मकरही, खजुरहट, दीयरा, अमेठी के राजा गुरुदत्त सिंह आदि सम्मलित थे। हारती हुई हिन्दू सेना के साथ वीर चिमटाधारी साधुओं की सेना आ मिली और इस युद्ध मे शाही सेना के चिथड़े उड गये और उसे रौंदते हुए हिंदुओं ने जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया।

मगर हर बार की तरह कुछ दिनो के बाद विशाल शाही सेना ने पुनः जन्मभूमि पर अधिकार कर लिया और हजारों हिन्दुओं को मार डाला गया। जन्मभूमि में हिन्दुओं का रक्त प्रवाहित होने लगा। नवाब वाजिदअली शाह के समय के समय मे पुनः हिंदुओं ने जन्मभूमि के उद्धारार्थ आक्रमण किया । फैजाबाद गजेटियर में कनिंघम ने लिखा “इस संग्राम मे बहुत ही भयंकर खूनखराबा हुआ। दो दिन और रात होने वाले इस भयंकर युद्ध में सैकड़ों हिन्दुओं के मारे जाने के बावजूद हिन्दुओं नें राम जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया। क्रुद्ध हिंदुओं की भीड़ ने कब्रें तोड़ फोड़ कर बर्बाद कर डाली मस्जिदों को नेस्तानाबूद करने लगे और पूरी ताकत से मुसलमानों को मार-मार कर अयोध्या से खदेड़ना शुरू किया। मगर हिन्दू भीड़ ने मुसलमान स्त्रियों और बच्चों को कोई हानि नहीं पहुचाई।
अयोध्या मे प्रलय मचा हुआ था ।
इतिहासकार कनिंघम लिखता है की ये अयोध्या का सबसे बड़ा हिन्दू मुस्लिम बलवा था।
हिंदुओं ने अपना सपना पूरा किया और औरंगजेब द्वारा विध्वंस किए गए चबूतरे को फिर वापस बनाया। चबूतरे पर तीन फीट ऊँची खस की टाट से एक छोटा सा मंदिर बनवा लिया॥ जिसमे पुनः रामलला की स्थापना की गयी। कुछ जेहादी मुल्लाओं को ये बात स्वीकार नहीं हुई और कालांतर में जन्मभूमि फिर हिन्दुओं के हाथों से निकल गयी। सन 1857 की क्रांति मे बहादुर शाह जफर के समय में बाबा रामचरण दास ने एक मौलवी आमिर अली के साथ जन्मभूमि के उद्धार का प्रयास किया पर 18 मार्च सन 1858 को कुबेर टीला स्थित एक इमली के पेड़ मे दोनों को एक साथ अंग्रेज़ो ने फांसी पर लटका दिया। जब अंग्रेज़ो ने ये देखा कि ये पेड़ भी देशभक्तों एवं रामभक्तों के लिए एक स्मारक के रूप मे विकसित हो रहा है तब उन्होने इस पेड़ को कटवा कर इस आखिरी निशानी को भी मिटा दिया…
इस प्रकार अंग्रेज़ो की कुटिल नीति के कारण रामजन्मभूमि के उद्धार का यह एकमात्र प्रयास विफल हो गया …।
अन्तिम बलिदान ..
30 अक्टूबर 1990 को हजारों रामभक्तों ने वोट-बैंक के लालची मुलायम सिंह यादव के द्वारा खड़ी की गईं अनेक बाधाओं को पार कर अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया। लेकिन 2 नवम्बर 1990 को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें सैकड़ों रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं। सरकार ने मृतकों की असली संख्या छिपायी परन्तु प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार सरयू तट रामभक्तों की लाशों से पट गया था। 4 अप्रैल 1991 को कारसेवकों के हत्यारे, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस्तीफा दिया।
लाखों राम भक्त 6 दिसम्बर को कारसेवा हेतु अयोध्या पहुंचे और राम जन्मस्थान पर बाबर के सेनापति द्वार बनाए गए अपमान के प्रतीक मस्जिदनुमा ढांचे को ध्वस्त कर दिया। परन्तु हिन्दू समाज के अन्दर व्याप्त घोर संगठनहीनता एवं नपुंसकता के कारण आज भी हिन्दुओं के सबसे बड़े आराध्य भगवान श्रीराम एक फटे हुए तम्बू में विराजमान हैं। जिस जन्मभूमि के उद्धार के लिए हमारे पूर्वजों ने अपना रक्त पानी की तरह बहाया। आज वही हिन्दू बेशर्मी से इसे “एक विवादित स्थल” कहता है।
सदियों से हिन्दुओं के साथ रहने वाले मुसलमानों ने आज भी जन्मभूमि पर अपना दावा नहीं छोड़ा है। वो यहाँ किसी भी हाल में मन्दिर नहीं बनने देना चाहते हैं ताकि हिन्दू हमेशा कुढ़ता रहे और उन्हें नीचा दिखाया जा सके।
जिस कौम ने अपने ही भाईयों की भावना को नहीं समझा वो सोचते हैं हिन्दू उनकी भावनाओं को समझे। आज तक किसी भी मुस्लिम संगठन ने जन्मभूमि के उद्धार के लिए आवाज नहीं उठायी, प्रदर्शन नहीं किया और सरकार पर दबाव नहीं बनाया आज भी वे बाबरी-विध्वंस की तारीख 6 दिसम्बर को काला दिन मानते हैं। और मूर्ख हिन्दू समझता है कि राम जन्मभूमि राजनीतिज्ञों और मुकदमों के कारण उलझा हुआ है।
ये लेख पढ़कर जिन हिन्दुओं को शर्म नहीं आयी वो कृपया अपने घरों में राम का नाम ना लें…अपने रिश्तेदारों से कह दें कि उनके मरने के बाद कोई “राम नाम” का नारा भी नहीं लगाएं।

बंगलादेश के निर्माण की दुखद कहानी....- अदिति गुप्ता (MAKING OF BANGLADESH)


मेरी इच्छा भारत के साथ हजार बरसों तक युद्ध करने की है-जुल्फिकार अली भुट्टो, पूर्व प्रधानमंत्री पाकिस्तान.....
शेख मुजीबुर्रहमान ने बांग्ला भाषा और संस्कृति की लड़ाई लड़ी थी बंगलादेश की नहीं. बंगलादेश के निर्माण का श्रेय सच कहें तो जुल्फिकार अली भुट्टो को ही दिया जाना चाहिए क्योंकि इसके अत्याचार और षड्यंत्र की परिणिति ही बंगलादेश के निर्माण के रूप में हुई थी. 1928 में सिंध के लरकाना में जन्मे मुस्लिम बाप और हिंदू माँ (लखीबाई) का बेटा मुंबई में अपनी शिक्षा पूर्ण की थी परन्तु इसी बात पर अयूब खान और जिया उल हक के द्वारा राजनितिक दुष्प्रचार के कारण भुट्टो को पाकिस्तान में बार बार परेशान होना पड़ा था. शायद हिंदुओं और हिन्दुस्तान की प्रति उनकी हिंसा और नफरत में वृद्धि का कारण इतिहास के उस कड़वे सच की भांति ही था की धर्मान्तरित हिंदू, हिंदू माँ या धर्मान्तरित बाप या दादा के मुस्लिम औलादों ने खुद को सच्चा मुसलमान साबित करने के लिए मालिक अम्बर, फिरोज शाह तुगलक, रिनचिन, फारुक अब्दुल्ला, जिन्ना आदि की भांति हिंदुओं और हिन्दुस्तान पर जघन्य अत्याचार और नुकसान किये. इसी घृणा के परिणाम स्वरुप १९६५ में जेनरल अयूब खान को भुट्टो ने भारत पर आक्रमण के लिए उकसाया था. 1965 में पाकिस्तान की करारी हार के साथ ही अयूब खान का सितारा डूब गया और जुल्फिकार अली भुट्टो का सितारा आसमान में उभरने लगा और फिर जेनरल याहया खान के साथ मिलकर इसने जेनरल अयूब खान को राजनितिक परिदृश्य से समाप्त कर दिया. अयूब खान की तरह याह्या खान को भी धर्मनिरपेक्षता शब्द से घृणा था और उससे भी आगे बढ़कर इन्होने हिंदुओं और हिन्दुस्तान के प्रति घृणा को प्रमुख राजनितिक हथकंडा बनाया...
अस्तु, अयूब खान के समय से ही पूर्वी पाकिस्तान पर उनके निरंकुश दखलंदाजी विशेषकर बांग्ला भाषा और बांग्ला संस्कृति के विरुद्ध उनकी घृणा के कारण पूर्वी पाकिस्तान में सत्ता के केंद्र में बैठे पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं के प्रति आवाज उठने लगी थी. १९५८-१९७१ के पूर्वी पाकिस्तान के शाशन को शोषण, अत्यचार और निरंकुशता का शासन कहा गया है. पाकिस्तना के नेता बंगालियों को हेय दृष्टि से देखते थे और उन्हें सत्ता में भागीदारी देने के पक्ष में नहीं थे. यही कारण था की मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व ने पूर्वी बंगाल ने छः सूत्रीय कार्यक्रम के तहत पूर्वी पाकिस्तान को अधिक स्वायत्तता देने की मांग की जिसने पाकिस्तानी सत्ता की जड़ें हिला दी. (साभार: पाकिस्तान जिन्ना से जिहाद तक)
सन १९७१ के बंगलादेश युद्ध में भुट्टो की धूर्ततापूर्ण हरकतों ने जनरल याह्या खान के दृष्टिकोण को और मजबूत किया, जिनका एकमात्र हित भुट्टो की मदद से सत्ता में बने रहना था. जनरल याहिया ने पूछ की “वह पूर्वी पाकिस्तान का क्या करना चाहते हैं?” भुट्टो ने जवाब दिया, “पूर्वी पाकिस्तान कोई समस्या नहीं है. हमें वहाँ बीस हजार लोगों को मारना होगा, फिर सबकुछ ठीक हो जायेगा” (एडमिरल एस.एन. कोहली).
जब मुजीबुर्रहमान को नेशनल असेम्बली के चुनाव में बहुमत प्राप्त हुआ (पूर्वी पाकिस्तान में १६९ सीटों में से १६७ सीटें) तो भुट्टो याह्या खान को यह समझाने में सफल हो गए की मुजीबुर्रहमान को प्रधानमंत्री बनने का न्योता नहीं देना चाहिए, क्योंकि पूर्वी पाकिस्तान का शासन पश्चिम पाकिस्तान पर नहीं होना चाहिए. उस समय बंगालियों को असैनिक जाती समझा जाता था. अतः जनरल याह्या खान भुट्टो के जाल में फंस गए. बंगालियों को विद्रोह की स्थिति में दबाने के लिए उन्होंने याह्या खान को विशाल और क्रूर जन-संहार के लिए २५ मार्च, १९७१ को तैयार कर लिया. उन्होंने ढाका के अपने होटल के खिडकी से पाकिस्तनी सेना द्वारा बंगालियों का रक्तपात होते देखा और जनरल टिक्का खान को इस काम के लिए शाबाशी दी (पाकिस्तान जिन्ना से जिहाद तक).
एक रिपोर्ट के मुताबिक १९७१ में लगभग २०-३० लाख बंगाली पाकिस्तानी सेना के द्वारा मारे गए और लगभर दो लाख बंगाली युवतियों को हवस का शिकार बनया गया. हालाँकि कई अन्य स्रोतों से हिंसा और बलात्कार की संख्या और भी अधिक जान पड़ती है. पाकिस्तान ने बंगालियों के साथ वही किया जो आज आईएसआईएस इराक में शिया मुसलमानों और हिंदू यजदियों के साथ किया और कर रहा है. द चिल्ड्रेन ऑफ वार फिल्म में पाकिस्तानी सेना के कुकृत्यों को दर्शाने की अच्छी कोशिश हुई है. पाकिस्तानी सेना ने गैर सुन्नी मुसलमानों और बंगाली हिंदुओं पर सबसे अधिक कहर ढहाए. कहा जाता है की बंगाली औरतों का बलात्कार अरब की धरती से उत्पन्न उसी जिहादी मानसिकता का प्रदर्शन था जिसके तहत यह माना जाता है की बलत्कृत औरतों से उत्पन्न सन्तान बलात्कारी के डिएनए/खून होने के कारण उन्ही की मानसिकता और अनुयायी के होंगे. इन्ही का परिणाम आज बंगलादेश के आतंकवादी संगठन जेएमबी हैं जो पाकिस्तान समर्थक है, तथा हुजी, सिमी, इंडियन मुजाहिद्दीन आदि इसी का परिणाम हैं. अरबी जिहाद में यह मानसिकता सैकड़ो सालों से चला आ रहा है. ईसायत ने अपना प्रसार में इस मानसिकता का खूब प्रदर्शन किया था. इस मानसिकता का सबसे घिनौना प्रदर्शन जर्मनी के प्रोटेस्टेन्टो के विरुद्ध फ़्रांस के कैथोलिकों ने किया था जब लाखों प्रोटेस्टेन्ट जर्मन औरतों पर कैथोलिकों ने इसी उद्देश्य से बलात्कार को अंजाम दिया. यही कारण था की जर्मनी में शुद्ध आर्य रक्त वाले लोगों का एक अलग संगठन और सोच बन गया था जिसका एक परिणाम हिटलर भी था. भारत में इस विचारधारा का पुर्तगालियों द्वारा सबसे अधिक घृणित प्रदर्शन गोवा में किया गया जहाँ पुर्तगालिओं ने भारतीय स्त्रियों से बलात्कार करने और संभोग कर बच्चे पैदा करने की खुली छूट दे दी थी और विरोध करनेवालों को Inquisition तहत भयंकर यातना देकर मारने के लिए विस्तृत व्यवस्था की गयी थी जिसके परिणाम स्वरूप आज आधा गोवा ईसाई के रूप में हैं. भारत में इस्लामिक आक्रमणकारियों द्वारा आक्रमितों के स्त्रियों का बलात्कार और अपने हरम में ठूंसने का एक घृणित इतिहास है जिसका परिणाम आज पाकिस्तान, बंगलादेश कश्मीर और केरल आदि है.
अस्तु, भुट्टो जानते थे की पूर्वी पाकिस्तान में विवश होकर भारत को हस्तक्षेप करना पड़ेगा; क्योंकि लगभग एक करोड हिंदू और मुसलमान शरणार्थियों ने पूर्वी पाकिस्तान से भागकर भारत में शरण ली थी. मुजीब से समझौता करने के लिए याहया के पास पर्याप्त समय था, परन्तु भुट्टो ने ऐसा होने नहीं दिया बल्कि पूर्वी पाकिस्तान के अलगाव के लिए देश को तैयार करते हुए खतरनाक सिद्धांत दिया-इधर हम उधर तुम. ....
१९७१ की लड़ाई में पाकिस्तान के हार के साथ याह्या खान का भी सूर्यास्त हो गया और भुट्टो इसका फायदा उठाकर राष्ट्रपति (दिसम्बर, १९७१-अगस्त, १९७३) और प्रधानमंत्री (अगस्त १९७३-जुलाई, १९७७) बनने में सफल रहे परन्तु जेनेरल जिया उल हक ने उसके बाद षड्यंत्र कर उनकी जिंदगी नरक से भी बदतर बना दिया और उन्हें येन-केन-प्रकारेण फांसी पर लटकाकर कुत्ते की मौत मार दिया. पाकिस्तान: जिन्ना से जिहाद तक का लेखक लिखते हैं “रावलपिंडी जेल की संकरी कोठरी में जुल्फिकार अली भुट्टो का आखिरी दिन एक कुलीन सिंधी परिवार में जन्मे राजनीतिज्ञ की अमानवीय यंत्रणाओं का दिन था. भुट्टो को एक कुत्ते की मौत नहीं देनी चाहिए थी क्योंकि वह पाकिस्तान के प्रथम निर्वाचित प्रधानमंत्री थे.”
भारत के नजरिये से अगर देखे तो १९७१ में बंगलादेश की आजादी में भारत के बृहत् पैमाने पर जन-धन लगाने के बाबजूद भारत को कुछ नहीं मिला. मिला तो दो करोड के लगभग बंगलादेशी आबादी का बोझ जिसमे से अधिकांश आज भारत विरोधी कार्यों में लगे हैं. बंगलादेश भारत विरोधी गतिविधियों का मुख्या अड्डा बन गया है. सच कहें तो आज का बंगलादेश जल्द ही पाकिस्तानी अत्याचार को भूलकर फिर से पाकिस्तान के गोद में जा बैठा है और भारत के बर्बादी के ताने-बाने बनाने में लगा है. शेख हसीना की सरकार आने पर भारत विरोधी गतिविधियों में थोड़ी कमी आई है परन्तु हम यह नहीं भूल सकते की सरकारें अस्थायी होती है. खैर, इससे भी दुखद बात तो यह रहा की १९७१ की लड़ाई में भारत ने लगभग ९२००० से उपर पाक सैनिकों को बंदी बनाया था. भारत चाहता तो इसका सौदा भारत के हित में कर सकता था और पाकिस्तान इन सैनिकों के बदले खुशी खुशी पाक अधिकृत कश्मीर देने को तैयार हो जाता, परन्तु इंदिरा सरकार ने ऐसा कुछ भी होने नहीं दिया. यहाँ तक की पाकिस्तान के हजारों सेना लौटाने के बदले पाकिस्तान द्वारा अपने सैनिकों को बनाये गए युद्धबंदियों को भी वापस लेने की जरुरत महसूस नहीं की जो आजादी की उम्मीद में घुट घुट कर मरने को विवश हो गए...!!

डियर Ravish Kumar आजकल बड़ा शोर है NDTV और चिदंबरम के 1100 करोड़ के घोटालो का आपने अब तक उस पर कोई बहस क्यों नहीं - अदिति गुप्ता


 डियर Ravish Kumar आजकल बड़ा शोर है NDTV और चिदंबरम के 1100 करोड़ के घोटालो का आपने अब तक उस पर कोई बहस क्यों नहीं की अपने चैनल पर ? आपके‪#‎रNDTv‬ ने 1100 करोड़ के इस घोटाले पर कोई प्राइम टाइम नही बनाया ?? जवाव जरूर दीजियेगा नही तो यह जनता जनार्दन फिर आपको दलाल कहेगी...
‪#‎लश्कर_ए_मीडिया‬ की ओर से यह खबर ना Breaking News में है ना ही अखबारों में ...जो यह दर्शाने को काफी है कि ‪#‎Presstitutes‬ लोग नैतिकता, भ्रष्टाचार और "ऩिष्पक्ष पत्रकारिता" को ले कर "कितने गंभीर" और नैतिक ही हैं...
NDTV पर मनी लांड्रिंग समेत कई किस्म की आर्थिक गड़बड़ियों के आरोप लगे थे जिसकी सुनवाई सेबी में चल रही थी सेबी ने इन मामलों को लेकर सूचनाएं और तथ्य छिपाने समेत कई आरोपों को सही मानते हुए एनडीटीवी को दोषी करार दिया है.


सेबी ने इस कंपनी पर दो करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. न्यू देल्ही टेलीविजन लिमिटेड नामक कंपनी के बैनर तले NDTV 24x7 , NDTV India समेत कई न्यूज चैनलों का संचालन किया जाता है. कंपनी के कर्ताधर्ता प्रणय राय और राधिका राय हैं. इन पर कई किस्म की आर्थिक अनियमितताओं के आरोप लगे. एनडीटीवी की तरफ से आरोपों से इनकार किया जाता रहा है. पर अब सेबी द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद से एनडीटीवी की नैतिक स्थिति काफी कमजोर हो गई है....इस अत्यंत सरकारी, न्यायियक और मीडियाई भ्रष्टाचारी सांठगांठ के ज्वलंत प्रकरण में कुछ नई जानकारियां आई हैं -
पहली तो ये कि कोर्ट की तरफ से उस आईआरएस आफिसर के बयान / कथन आदि को प्रकाशित करने पर रोक है जिन्होंने इस कथित करप्शन का खुलासा किया है. कोर्ट ने ऐसा आदेश आईआरएस अधिकारी के मानसिक रूप से गड़बड़ यानि पागल होने के अस्पताल के सर्टिफिकेट के आधार पर दिया है. दूसरी बात, नेता और चैनल पर आरोप को लेकर सीबीआई की विशेष अदालत ने वर्ष 2011 में इस आईआरएस अधिकारी पर जुर्माना लगाया था क्योंकि अदालत ने इन आरोपों को निराधार पाया और आरोपों के समर्थन में कोई दस्तावेज न होने की बात कही है. विशेष सीबीआई अदालत के फैसले के बारे में उस वक्त स्टेट्समैन में जो खबर प्रकाशित हुई थी,, जिसे पूरी तरह से जानने और पढने हेतु नीचे दिये गये लिंक को क्लिक करके पढें - http://bhadas4media.com/…/pr…/14190-2013-09-01-13-49-55.html
दूसरी इस धोखाधड़ी में अकेले NDTV के पत्रकार शामिल नही हैं बल्कि पूर्व की कांग्रेस सरकार के कई वरिष्ठ मंत्री शामिल हैं " सत्य ही कहा गया है कि काँग्रेस के अधिनायकवाद राज्य की सबसे बड़ी शक्ति यह है कि जो लोग उसका अनुसरण करने से डरते हैं या विरोध करते हैं वो उस पर अनैतिक बल प्रयोग करता रहा है ..!! "

शासन, सत्ता, सिस्टम से प्रताड़ित आईआरएस अधिकारी एसके श्रीवास्तव ने एनडीटीवी के हजारों करोड़ रुपये की ब्लैकमनी की जांच क्या की, उन्हें भांति भांति तरीके से प्रताड़ित उत्पीड़ित किया गया है. तरह तरह के आरोप लगाए गए और कई तरह से दंडित किया गया. न्याय की लड़ाई लड़ रहे आईआरएस अधिकारी एसके श्रीवास्तव को पागल तक घोषित कर दिया गया, साथ ही सेक्सुअल हैरेसमेंट के चार्जेज भी इन पर लगाए गए. एनडीटीवी, चिदंबरम और आईआरएस अफसरों से जुड़ा मसला होने के कारण देश का मीडिया भी इस पर मौन साधे रहता है. जो कभी कोई इस पर लिखने पढ़ने की कोशिश करता है तो उसे तरह-तरह के आदेशों, फैसलों, निर्देशों का हवाला देते हुए चुप कराने की कोशिश की जाती है.. लेकिन जाने माने वकील और पूर्व राज्यसभा सांसद राम जेठमलानी ने इनकम टैक्स अधिकारी एसके श्रीवास्तव का केस अपने हाथ में ले लिया था...
राम जेठमलानी के पी.चिदंबरम को लिखे पत्र पढने हेतु नीचे दिये गये लिंक को क्लिक करके पूरा मामला व आरोप जानें- http://bhadas4media.com/…/pr…/17029-2014-01-06-14-21-12.html
नोट - प्रनॉव रॉय, बरखा दत्त आदि समेत एनडीटीवी समूह के हजारों करोड की मनी लॉन्ड्रिन्ग केस में पी.चिदंबरम के साथ शामिल रहने के सबूत साथ दिए हैं स्क्रीन शॉट के रूप मैं उन्हें भी देखे..और साथ में यह लिंक भी..!!
लिंक - http://www.sebi.gov.in/

Narendra Modi जी मेरे 15 लाख कब दोगे ? का सच..... सबूतो के साथ....- अदिति गुप्ता


आपियो और कांग्रेसियों के द्वारा फैलाये गए झूठ Narendra Modi जी मेरे 15 लाख कब दोगे ? का सच..... सबूतो के साथ....
पिछले दिनों मैंने जंतर-मंतर पर कांग्रेस के कुछ नौजवान मित्रो द्वारा भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक प्रदर्शन होते हुए देखा।मै भी वहां से गुजर रही थी तो कुछ 15 लाख-15 लाख की आवाजे आई। मैं सच में इतनी खुश थी कि मुझे लगा की मेरे कांग्रेस के भाई जो पिछले 10 सालो से 17,000,0000000 करोड़ रूपये CWG घोटाले में , 1,76,000,0000000 2G घोटाले में और 1,86,000,0000000 करोड़ रूपये जो कोयला घोटाले में लूटा है उसमे से 15 -15 लाख जनता को बाँट रहे हैं , लेकिन यहाँ तो मामला कुछ और ही नजर आया की वो देने की बजाय मांग रहे थे , मुझे लगा कही वो मुझे न पकड़ ले इसलिए जल्दी से वहां से चल दि। घर आई सोशल मीडिया चालू किया तो हैरानी भी और ख़ुशी भी , हैरानी इसलिए की ट्विटर पर आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 15 लाख रूपये उसी तर्ज पर मांग रहे थे , और ख़ुशी इसलिए की आज जहां सभी राजनैतिक पार्टिया एक दूसरे से लड़ रही है आप और कांग्रेस कितनी एकता के साथ इस लड़ाई को लड़ रही हैं।

अब 15 लाख तो मुझे भी चाहिए थे तो मैंने सोचा चलो कुछ रीसर्च कर लेते है की आखिर 15 लाख का मामला हैं क्या ? लेकिन रिसर्च करने पर जो पता चला उसे मुझे लगता है आप सब से शेयर करना चाहिए ताकि कोई केजरीवाल और कोई राहुल गांधी अगर आपके सामने 15 लाख की बात करे तो कम से कम आप भी उसे जवाब दे सके। सबसे पहले तो मै प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को बधाई देना चाहती हूँ की मोदी सरकार के 10 महीने बीत जाने के बाद भी अगर सरकार के खिलाफ कोई प्रदर्शन हो रहा है तो वो राहुल गांधी और केजरीवाल द्वारा रचे हुए झूठ और पाखंड के ऊपर हो रहा है , सरकार के किसी भ्रष्टाचार ,किसी घोटाले को लेकर नही हो रहा। 1 साल पहले जिस देश में हम आँख खोलते ही ,टीवी न्यूज़ लगाते ही, अख़बार खोलते ही और हमारी सुबह की नींद ही हजारो-लाखो करोड़ के घोटालो की खबर की से होती थी उस देश में हमने पिछले 10 महीनो में किसी घोटाले का नाम नही सुना और उसके लिए वाकई सरकार बधाई की पात्र हैं।
अब बात करते हैं 15 लाख रूपये की तो ये ठीक उसी तरह का झूठ हैं जिस तरह का झूठ कांग्रेस ने पिछले 13 साल तक अटल जी के राजधर्म वाले वाक्य को लेकर फैलाया और 13 महीनो में केजरीवाल ने गैस के दामो को लेकर फैलाया। मुझे लगता है जब बात खुली है तो इन सब पर भी चर्चा हो ही जानी चाहिए जो झूठ कांग्रेस और आप द्वारा पूर्व में नरेंदर मोदी के खिलाफ फैलाये गए। 2002 के गुजरात दंगो के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के एक बयान को आज तक इस तरीके से पेश किया जाता है की गुजरात दंगो में वाजपेयी जी ने मोदी जी को राजधर्म निभाने की नसीहत दी थी। जबकि अगर आप अटल जी का पूरा बयान सुने https://www.youtube.com/watch?v=x5W3RCpOGbQ ) तो वो यह था की इस तरह के हालात में किसी भी राजा के लिए शासक के लिए पहला नियम है की वो राजधर्म का पालन करे और मुझे विश्वास है की नरेंद्र भाई भी वही कर रहे हैं। लेकिन कांग्रेस के मित्रो द्वारा पिछली पंक्ति जिसमे अटल जी ने कहा था की मुझे विश्वास है की नरेंद्र भाई भी वही कर रहे हैं को काट के बाकी बयान को 13 साल तक नरेंद्र मोदी के खिलाफ इस्तमाल किया गया (https://www.youtube.com/watch?v=BmiRiguRPxQ ) , उनपर कीचड़ उछाला गया।

ठीक इसी तरीके का झूठ अरविन्द केजरीवाल द्वारा लोकसभा चुनावो के दौरान नरेंद्र मोदी के खिलाफ फैलाया गया की नरेंद्र मोदी अम्बानी के दलाल हैं और नरेंद्र मोदी अगर प्रधानमंत्री बन गए तो गैस के कुए जो अम्बानी के पास है जिसने सरकार गैस खरीदती हैं ,जिसकी कीमत कांग्रेस ने 4.2 डॉलर प्रति यूनिट से बड़ा कर 8 डॉलर प्रति यूनिट कर दी है कर दी हैं अगर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए तो गैस के दाम को 16 डॉलर प्रति यूनिट कर दिया जायेगा ( https://www.youtube.com/watch?v=9jhqbq30kOo ) और देश में महंगाई कई गुना बड़ जाएगी। खैर वो झूठ केजरीवाल का चला नही और नरेंद्र मोदी की पूर्ण बहुमत से सरकार बनी। और सरकार बनने के 10 महीने बाद नरेंद्र मोदी उन दामो को 8 डॉलर प्रति यूनिट से फिर से पुराने दामो के लगभग करीब 4.66 डॉलर प्रति यूनिट ले आये ( http://economictimes.indiatimes.com/…/articles…/46764852.cms )
अब चुनावो के बाद विपक्ष का काम होता है की सरकार के काम में अगर कोई भ्रष्टाचार हो रहा है , घोटाला हो रहा है, कोई गलत काम हो रहा है तो उसे उजागर कर के जनता के सामने लाना , लेकिन जब कुछ न मिले तो कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा ताकि जिस से जनता को लगे विपक्ष कुछ कर रहा है तो इसलिए कांग्रेस (https://www.youtube.com/watch?v=_dGdZam8870 ) और आम आदमी पार्टी (http://indiatoday.intoday.in/…/prime-minister…/1/398045.html ,http://aamaadmiparty.org/mann-ki-baat ) द्वारा मिलकर एक झूठ फैलाया गया की नरेंद्र मोदी ने चुनाव जितने पर काला धन वापिस लाकर हर भारतीय के बैंक कहते में 15-15 लाख रूपये जमा कराने की बात कहीं थी और वो पैसा सब एकाउंट्स में कब जमा होगा।
चलिए हम मानते है की कांग्रेस ने तो इस देश को 60 साल से लूटा हैं उनकी सारी राजनीती ही झूठ और फरेब से चालू होती हैं लेकिन क्या उन अरविन्द केजरीवाल को जो अपने को ईमानदारी की राजनीती का प्रतीक बताते है को सरकार की तारीफ नही करनी चाहिए थी की जिस SIT को कांग्रेस की केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश और फटकार के बावजूद पिछले 3 साल से रोककर रखा था मोदी सरकार ने आते कैबिनेट बैठक में SIT का घटन किया , लेकिन केजरीवाल जी ने इस ईमानदार प्रयास की तारीफ करने के बजाय कांग्रेस के झूठ के साथ मिलकर राजनीती करना ज्यादा बेहतर समझा। नरेंद्र मोदी के उस बयान को कांट-छांट के आधा अधूरा दिखाया।

जबकि नरेंद्र मोदी का पूरा बयान ये था की आज विदेशो में जितना भी काला धन हैं अगर वो वापिस आ जाये तो हर भारतीय के 15 लाख बनते है , उन पैसो पर देश के लोगो का अधिकार हैं अगर वो पैसा वापिस आता है तो उन पैसो को देश के विकास के लिए इस्तमाल किया जाएगा ( https://www.youtube.com/watch?v=rHPcapJqbQk ) लेकिन नरेंद्र मोदी के इस बयान को आधा अधूरा काटा गया और काटा ही नहीं गया बल्कि ये पंक्ति अपने आप जोड़ दी गयी की नरेंद्र मोदी ने कहां था की आपके बैंक खाते में 15 लाख रूपये जमा कराएँगे , ये विडिओ आपके सामने है क्या इसमें कही नरेंद्र मोदी ने यहाँ किसी बैंक खाते में 15 लाख रूपये जमा करने की बात कही हैं और अगर कही और हो तो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी वो विडिओ लेकर आए मैं सभी कांग्रेसियों और आप कार्यकर्ताओ के खाते में 15 लाख रूपये जमा कराने की जिम्मेदारी लेती हूँ। और ये बहाना मै नही चलने दूँगी की विडिओ उनके पास उपलब्ध नही है अगर विडिओ उनके पास नही है तो मै उन्हें बताना चाहती हूँ की हर राजनेनिक रैली की रिकॉर्डिंग इलेक्शन कमीशन कराता है , जाइये और इलेक्शन कमीशन से वो विडिओ निकलवाइये और जारी कीजिये और अगर जारी न कर पाये तो माफ़ी मांगिये।
मोदी जी द्वारा उदहारण के तौर पर ये बताने के प्रयास को की जितना काला धन विदेशो में है वो कितना बड़ा है के अर्थ को अनर्थ कर दिया गया। बार-बार झूठ फैलाया गया। जैसे पहले हम आम बात चित की भाषा में कहते थे की आज भारत पर इतना कर्ज है की पैदा होते हर बच्चे पर 20,000-25,000 कर्ज चड़ जाता है तो क्या पैदा होते हर भारतीय को 20 हजार 25 हजार कर्ज चुकाना पड़ता था क्या ? और आम बातचीत ही क्यों मिडिया में इसे आम भाषा में समझाने के लिए इस तरह की भाषा का प्रयोग करती रही है।
उद्धारण के तौर पर ये लेख देखिये “पैदा होते ही 33 हजार का कर्जदार बन जाता है भारतीय बच्चा”-IBN7 http://khabar.ibnlive.in.com/news/73298/7/ ये लेख 2012 का हैं और उस न्यूज़ चैनल से हैं जहां आज के आम आदमी पार्टी के नेता श्री आशुतोष उस न्यूज़ चैनल के संपादक थे, जब ये लेख प्रकाशित किया गया था ।
खैर ये राजनीति हैं इस तरह के झूठ आगे भी फैलाये जायेंगे और मुझे पूरी उम्मीद है नरेंद्र मोदी उतनी ही ताकत से इन झूठे आरोपों को परास्त करते हुए आगे बढ़ेंगे जितनी ताकत से वो पिछले 13 सालो में बड़े हैं।
और आज के बाद मोदी समर्थक चुप न बैठे ये सवाल सुन कर..