Saturday, 27 June 2015

भारतीय प्रधानमंत्री इजरायल की यात्रा पर ....उम्मीद है कि राष्ट्रवाद को नये आयाम मिलेंगे. - अदिति गुप्ता


पहली बार कोई भारतीय प्रधानमंत्री इजरायल की यात्रा पर जा रहा है. उम्मीद है कि राष्ट्रवाद को नये आयाम मिलेंगे. हिंदुस्तान और इजरायल दोनों एक असभ्य पड़ोसी देश के आतंकवाद के विरूद्ध खड़े एक एक बहादुर लोकतंत्र हैं... ये दोनों देश इस्लामी आतंकवाद का सामना कर रहे हैं.. 1999 के कारगिल संघर्ष के दौरान इज़राइल ने हिंदुस्तान को तोप के गोलों की आपूर्ति की थी तब से, इज़राइल रूस के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा शस्त्र आपूर्तिकर्ता बनकर उभरा है।
भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक समय वो भी था कि इजराइल के दुश्मन फिलिस्तीन से यूँ गलबहियां की जाती थी...कांग्रेस के लगभग सभी प्रधानमंत्री फिलिस्तीन के मुस्लिमों के समर्थक थे मगर इजराइल के राष्ट्रवादियों के नहीं....यही मुल्ला तुष्टिकरण कांग्रेस की सत्ता प्राप्ति का सबसे बड़ा फार्मूला था....उस समय का मशहूर आतंकवादी यासिर अराफ़ात इंदिरा गांधी का मुह बोला भाई था.."जब भी अराफ़ात भारत आता इंदिरा गांधी अराफ़ात को हमेशा रिसीव करने हवाई अड्डे पर जाती थीं. वह हमेशा इंदिरा गांधी को 'माई सिस्टर' कह कर पुकारता...राजीव गांधी के साथ भी अराफ़ात की बहुत घनिष्टता थी. कहा जाता है कि एक बार उन्होंने भारत में राजीव गांधी के लिए चुनाव प्रचार करने की पेशकश की थी.
फिलिस्तीन के पहले प्रमुख यासिर अराफ़ात ने इंदिरा गांधी को अपनी बहन कहा था और उसके ठीक बाद 1983 में भारत में जब गुटनिरपेक्ष देशों का शिखर सम्मेलन हुआ तो अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में खुलेआम यह भी कहा था कि भारत कश्मीर का सबसे बड़ा दुश्मन है और पाकिस्तान सबसे बड़ा दोस्त....इन हरामज़ादे फिलीस्तीनियों ने आज तक कभी भी कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा पे और पाकिस्तान के बलोचिस्तान और सिंध में शिया, हज़ारा और अहमदिया मुसलामानों के दुर्दशा पे भी एक शब्द नहीं बोला है...कांग्रेस का फ़िलिस्तीन के प्रति झुकाव महज़ घरेलू राजनीति के लिये था...

यासिर अराफात को छींक भी आती थी तब वो भागकर दिल्ली आता था .. इंदिरा और राजीव उसके लिए पलके बिछाए रहते थे ...जब आतंकवादी यासिर अराफात ने फिलिस्तीन राष्ट्र की घोषणा की तो फिलिस्तीन को सबसे पहले मान्यता देने वाला देश कौन था??.....
सउदी अरब --- नहीं
पाकिस्तान ---- नहीं
अफगानिस्तान --- नहीं
हिंदुस्तान ------ जी हा.....
इंदिरा गाँधी ने मुस्लिम तुस्टीकरण के लिए सबसे पहले फिलिस्तीन को मान्यता दिया और यासिर अराफात जैसे आतंकवादी को नेहरु शांति पुरस्कार [5 करोड़ रूपये ] दिया और राजीव गाँधी ने उसको इंदिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार दिया. राजीव गाँधी ने तो उसको पुरे विश्व में घुमने के लिए बोईंग 747 गिफ्ट में दिया था....
जिस व्यक्ति को दुनिया के 103 देश आतंकवादी घोषित किये हो और जिसने 8 विमानों का अपहरण किया हो और जिसने दो हज़ार निर्दोष लोगो को मारा हो. ऐसे आतंकवादी यासिर अराफात को सबसे पहले भारत ने किसी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार ने नवाजा.....जी हाँ, इंदिरा गाँधी ने इसे नेहरु शांति पुरस्कार दिया. जिसमे एक करोड रूपये नगद और दो सौ ग्राम सोने से बना एक शील्ड होता है......आप सोचिये, 1983 मे मतलब आज से करीब 32 साल पहले एक करोड रूपये की क्या वैल्यू होगी??.....फिर राजीव गाँधी ने इसे इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय शांति पुरस्कार से नवाजा......
फिर बाद मे यही यासिर अराफात कश्मीर के मामले पर खुलकर पाकिस्तान के साथ हो गया और इसने घूम घूमकर पूरे इस्लामीक देशो मे कहा की फिलिस्तीन और कश्मीर दोनों जगहों के मुसलमान गैर मुसलमानों के हाथो मारे जा रहे है. इसलिए पूरे मुस्लिम जगत को इन दोनों मामलो पर एकजुट होना चाहिए......
भारत जब थोड़े सालो के लिए इन नीच गांधियो के चंगुल से मुक्त हुआ और पीवी नरसिम्हाराव प्रधानमंत्री बने थे तब 1992 में भारत में इजरायल के साथ राजनयिक समबन्ध स्थापित किये और दिल्ली मुंबई में इजरायल के दूतावास खोलने की मंजूरी दी ... 2004 में, जब भाजपा से सत्ता छीनकर कांग्रेस ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सत्ता की कमान संभाली तो भारत-इज़राइल संबंध ठंडे पड़ गए दो-देश के अलगाव हेतु लंबे समय तक सिर्फ समर्थन करते रहने की बजाय, भारत ने फ़िलिस्तीन की पूर्वी येरूशलम को भविष्य के राज्य की राजधानी बनाने की मांग को अपना समर्थन दिया जिसके कारण भारत और इज़राइल के बीच उच्च स्तर की सरकारी यात्राओं ने गति खो दी..
इन नीच गांधियो ने वोट बैंक के लिए मुसलमानो को खुश करके के खातिर कभी इजरायल के साथ किसी भी तरह का कोई समबन्ध नही रखा यह इस देश का सबसे बड़ा दुर्भागय हैं...!!

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