Saturday, 27 June 2015

बंगलादेश के निर्माण की दुखद कहानी....- अदिति गुप्ता (MAKING OF BANGLADESH)


मेरी इच्छा भारत के साथ हजार बरसों तक युद्ध करने की है-जुल्फिकार अली भुट्टो, पूर्व प्रधानमंत्री पाकिस्तान.....
शेख मुजीबुर्रहमान ने बांग्ला भाषा और संस्कृति की लड़ाई लड़ी थी बंगलादेश की नहीं. बंगलादेश के निर्माण का श्रेय सच कहें तो जुल्फिकार अली भुट्टो को ही दिया जाना चाहिए क्योंकि इसके अत्याचार और षड्यंत्र की परिणिति ही बंगलादेश के निर्माण के रूप में हुई थी. 1928 में सिंध के लरकाना में जन्मे मुस्लिम बाप और हिंदू माँ (लखीबाई) का बेटा मुंबई में अपनी शिक्षा पूर्ण की थी परन्तु इसी बात पर अयूब खान और जिया उल हक के द्वारा राजनितिक दुष्प्रचार के कारण भुट्टो को पाकिस्तान में बार बार परेशान होना पड़ा था. शायद हिंदुओं और हिन्दुस्तान की प्रति उनकी हिंसा और नफरत में वृद्धि का कारण इतिहास के उस कड़वे सच की भांति ही था की धर्मान्तरित हिंदू, हिंदू माँ या धर्मान्तरित बाप या दादा के मुस्लिम औलादों ने खुद को सच्चा मुसलमान साबित करने के लिए मालिक अम्बर, फिरोज शाह तुगलक, रिनचिन, फारुक अब्दुल्ला, जिन्ना आदि की भांति हिंदुओं और हिन्दुस्तान पर जघन्य अत्याचार और नुकसान किये. इसी घृणा के परिणाम स्वरुप १९६५ में जेनरल अयूब खान को भुट्टो ने भारत पर आक्रमण के लिए उकसाया था. 1965 में पाकिस्तान की करारी हार के साथ ही अयूब खान का सितारा डूब गया और जुल्फिकार अली भुट्टो का सितारा आसमान में उभरने लगा और फिर जेनरल याहया खान के साथ मिलकर इसने जेनरल अयूब खान को राजनितिक परिदृश्य से समाप्त कर दिया. अयूब खान की तरह याह्या खान को भी धर्मनिरपेक्षता शब्द से घृणा था और उससे भी आगे बढ़कर इन्होने हिंदुओं और हिन्दुस्तान के प्रति घृणा को प्रमुख राजनितिक हथकंडा बनाया...
अस्तु, अयूब खान के समय से ही पूर्वी पाकिस्तान पर उनके निरंकुश दखलंदाजी विशेषकर बांग्ला भाषा और बांग्ला संस्कृति के विरुद्ध उनकी घृणा के कारण पूर्वी पाकिस्तान में सत्ता के केंद्र में बैठे पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं के प्रति आवाज उठने लगी थी. १९५८-१९७१ के पूर्वी पाकिस्तान के शाशन को शोषण, अत्यचार और निरंकुशता का शासन कहा गया है. पाकिस्तना के नेता बंगालियों को हेय दृष्टि से देखते थे और उन्हें सत्ता में भागीदारी देने के पक्ष में नहीं थे. यही कारण था की मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व ने पूर्वी बंगाल ने छः सूत्रीय कार्यक्रम के तहत पूर्वी पाकिस्तान को अधिक स्वायत्तता देने की मांग की जिसने पाकिस्तानी सत्ता की जड़ें हिला दी. (साभार: पाकिस्तान जिन्ना से जिहाद तक)
सन १९७१ के बंगलादेश युद्ध में भुट्टो की धूर्ततापूर्ण हरकतों ने जनरल याह्या खान के दृष्टिकोण को और मजबूत किया, जिनका एकमात्र हित भुट्टो की मदद से सत्ता में बने रहना था. जनरल याहिया ने पूछ की “वह पूर्वी पाकिस्तान का क्या करना चाहते हैं?” भुट्टो ने जवाब दिया, “पूर्वी पाकिस्तान कोई समस्या नहीं है. हमें वहाँ बीस हजार लोगों को मारना होगा, फिर सबकुछ ठीक हो जायेगा” (एडमिरल एस.एन. कोहली).
जब मुजीबुर्रहमान को नेशनल असेम्बली के चुनाव में बहुमत प्राप्त हुआ (पूर्वी पाकिस्तान में १६९ सीटों में से १६७ सीटें) तो भुट्टो याह्या खान को यह समझाने में सफल हो गए की मुजीबुर्रहमान को प्रधानमंत्री बनने का न्योता नहीं देना चाहिए, क्योंकि पूर्वी पाकिस्तान का शासन पश्चिम पाकिस्तान पर नहीं होना चाहिए. उस समय बंगालियों को असैनिक जाती समझा जाता था. अतः जनरल याह्या खान भुट्टो के जाल में फंस गए. बंगालियों को विद्रोह की स्थिति में दबाने के लिए उन्होंने याह्या खान को विशाल और क्रूर जन-संहार के लिए २५ मार्च, १९७१ को तैयार कर लिया. उन्होंने ढाका के अपने होटल के खिडकी से पाकिस्तनी सेना द्वारा बंगालियों का रक्तपात होते देखा और जनरल टिक्का खान को इस काम के लिए शाबाशी दी (पाकिस्तान जिन्ना से जिहाद तक).
एक रिपोर्ट के मुताबिक १९७१ में लगभग २०-३० लाख बंगाली पाकिस्तानी सेना के द्वारा मारे गए और लगभर दो लाख बंगाली युवतियों को हवस का शिकार बनया गया. हालाँकि कई अन्य स्रोतों से हिंसा और बलात्कार की संख्या और भी अधिक जान पड़ती है. पाकिस्तान ने बंगालियों के साथ वही किया जो आज आईएसआईएस इराक में शिया मुसलमानों और हिंदू यजदियों के साथ किया और कर रहा है. द चिल्ड्रेन ऑफ वार फिल्म में पाकिस्तानी सेना के कुकृत्यों को दर्शाने की अच्छी कोशिश हुई है. पाकिस्तानी सेना ने गैर सुन्नी मुसलमानों और बंगाली हिंदुओं पर सबसे अधिक कहर ढहाए. कहा जाता है की बंगाली औरतों का बलात्कार अरब की धरती से उत्पन्न उसी जिहादी मानसिकता का प्रदर्शन था जिसके तहत यह माना जाता है की बलत्कृत औरतों से उत्पन्न सन्तान बलात्कारी के डिएनए/खून होने के कारण उन्ही की मानसिकता और अनुयायी के होंगे. इन्ही का परिणाम आज बंगलादेश के आतंकवादी संगठन जेएमबी हैं जो पाकिस्तान समर्थक है, तथा हुजी, सिमी, इंडियन मुजाहिद्दीन आदि इसी का परिणाम हैं. अरबी जिहाद में यह मानसिकता सैकड़ो सालों से चला आ रहा है. ईसायत ने अपना प्रसार में इस मानसिकता का खूब प्रदर्शन किया था. इस मानसिकता का सबसे घिनौना प्रदर्शन जर्मनी के प्रोटेस्टेन्टो के विरुद्ध फ़्रांस के कैथोलिकों ने किया था जब लाखों प्रोटेस्टेन्ट जर्मन औरतों पर कैथोलिकों ने इसी उद्देश्य से बलात्कार को अंजाम दिया. यही कारण था की जर्मनी में शुद्ध आर्य रक्त वाले लोगों का एक अलग संगठन और सोच बन गया था जिसका एक परिणाम हिटलर भी था. भारत में इस विचारधारा का पुर्तगालियों द्वारा सबसे अधिक घृणित प्रदर्शन गोवा में किया गया जहाँ पुर्तगालिओं ने भारतीय स्त्रियों से बलात्कार करने और संभोग कर बच्चे पैदा करने की खुली छूट दे दी थी और विरोध करनेवालों को Inquisition तहत भयंकर यातना देकर मारने के लिए विस्तृत व्यवस्था की गयी थी जिसके परिणाम स्वरूप आज आधा गोवा ईसाई के रूप में हैं. भारत में इस्लामिक आक्रमणकारियों द्वारा आक्रमितों के स्त्रियों का बलात्कार और अपने हरम में ठूंसने का एक घृणित इतिहास है जिसका परिणाम आज पाकिस्तान, बंगलादेश कश्मीर और केरल आदि है.
अस्तु, भुट्टो जानते थे की पूर्वी पाकिस्तान में विवश होकर भारत को हस्तक्षेप करना पड़ेगा; क्योंकि लगभग एक करोड हिंदू और मुसलमान शरणार्थियों ने पूर्वी पाकिस्तान से भागकर भारत में शरण ली थी. मुजीब से समझौता करने के लिए याहया के पास पर्याप्त समय था, परन्तु भुट्टो ने ऐसा होने नहीं दिया बल्कि पूर्वी पाकिस्तान के अलगाव के लिए देश को तैयार करते हुए खतरनाक सिद्धांत दिया-इधर हम उधर तुम. ....
१९७१ की लड़ाई में पाकिस्तान के हार के साथ याह्या खान का भी सूर्यास्त हो गया और भुट्टो इसका फायदा उठाकर राष्ट्रपति (दिसम्बर, १९७१-अगस्त, १९७३) और प्रधानमंत्री (अगस्त १९७३-जुलाई, १९७७) बनने में सफल रहे परन्तु जेनेरल जिया उल हक ने उसके बाद षड्यंत्र कर उनकी जिंदगी नरक से भी बदतर बना दिया और उन्हें येन-केन-प्रकारेण फांसी पर लटकाकर कुत्ते की मौत मार दिया. पाकिस्तान: जिन्ना से जिहाद तक का लेखक लिखते हैं “रावलपिंडी जेल की संकरी कोठरी में जुल्फिकार अली भुट्टो का आखिरी दिन एक कुलीन सिंधी परिवार में जन्मे राजनीतिज्ञ की अमानवीय यंत्रणाओं का दिन था. भुट्टो को एक कुत्ते की मौत नहीं देनी चाहिए थी क्योंकि वह पाकिस्तान के प्रथम निर्वाचित प्रधानमंत्री थे.”
भारत के नजरिये से अगर देखे तो १९७१ में बंगलादेश की आजादी में भारत के बृहत् पैमाने पर जन-धन लगाने के बाबजूद भारत को कुछ नहीं मिला. मिला तो दो करोड के लगभग बंगलादेशी आबादी का बोझ जिसमे से अधिकांश आज भारत विरोधी कार्यों में लगे हैं. बंगलादेश भारत विरोधी गतिविधियों का मुख्या अड्डा बन गया है. सच कहें तो आज का बंगलादेश जल्द ही पाकिस्तानी अत्याचार को भूलकर फिर से पाकिस्तान के गोद में जा बैठा है और भारत के बर्बादी के ताने-बाने बनाने में लगा है. शेख हसीना की सरकार आने पर भारत विरोधी गतिविधियों में थोड़ी कमी आई है परन्तु हम यह नहीं भूल सकते की सरकारें अस्थायी होती है. खैर, इससे भी दुखद बात तो यह रहा की १९७१ की लड़ाई में भारत ने लगभग ९२००० से उपर पाक सैनिकों को बंदी बनाया था. भारत चाहता तो इसका सौदा भारत के हित में कर सकता था और पाकिस्तान इन सैनिकों के बदले खुशी खुशी पाक अधिकृत कश्मीर देने को तैयार हो जाता, परन्तु इंदिरा सरकार ने ऐसा कुछ भी होने नहीं दिया. यहाँ तक की पाकिस्तान के हजारों सेना लौटाने के बदले पाकिस्तान द्वारा अपने सैनिकों को बनाये गए युद्धबंदियों को भी वापस लेने की जरुरत महसूस नहीं की जो आजादी की उम्मीद में घुट घुट कर मरने को विवश हो गए...!!

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