बंटवारे के बाद जब हिन्दू इस देश को एक हिन्दू देश समझ के अपना सारा कुछ पाकिस्तान में छोड़ कर वापिस लौटे तो महात्मा गाँधी कि वजह से भूखे मरने लगे ... यहाँ तक कि मस्जिद में शरण लेने पर उनको वहां से निकाल कर सड़क पर बिठा दिया गया....
1947 के बाद दिल्ली में 400000 हिन्दू निर्वासित आये.और इन हिन्दुओं को जिस हाल में यहाँ आना पड़ा था,,उसके बावजूद पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपये देने ही चाहिए ऐसा महात्मा जी का आग्रह था...क्योकि एक तिहाई भारत के तुकडे हुए हैं तो भारत के खजाने का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान को मिलना चाहिए था.
विधि मंडल ने विरोध किया,,पैसा नहीं देगे....और फिर बिरला भवन के पटांगन में महात्मा जी अनशन पर बैठ गए.....पैसे दो,,नहीं तो मैं मर जाउगा....एक तरफ अपने मुहँ से ये कहने वाले महात्मा जी , की हिंसा उनको पसंद नहीं हैं,, दूसरी तरफ जो हिंसा कर रहे थे उनके लिए अनशन पर बैठ गए. दिल्ली में हिन्दू निर्वासितों के रहने की कोई व्यवस्था नहीं थी.
इससे ज्यादा बुरी बात ये थी की दिल्ली में खाली पड़ी मस्जिदों में हिन्दुओं ने शरण ली तब बिरला भवन से महात्मा जी ने भाषण में कहा की दिल्ली पुलिस को मेरा आदेश हैं मस्जिद जैसी चीजों पर हिन्दुओं का कोई ताबा नहीं रहना चाहिए.
निर्वासितों को बाहर निकालकर मस्जिदे खाली करे..क्यों कि महात्मा जी की दृष्टी में जान सिर्फ मुसलमानों में थी हिन्दुओं में नहीं...जनवरी की कडकडाती ठंडी में हिन्दू
महिलाओं और छोटे छोटे बच्चों को हाथ पकड़कर पुलिस ने मस्जिद के बाहर निकाला. गटर के किनारे रहो लेकिन छत के निचे नहीं.क्योकि,,तुम हिन्दू हो.....]
महिलाओं और छोटे छोटे बच्चों को हाथ पकड़कर पुलिस ने मस्जिद के बाहर निकाला. गटर के किनारे रहो लेकिन छत के निचे नहीं.क्योकि,,तुम हिन्दू हो.....]
4000000 हिन्दू भारत में आये थे,,ये सोचकर की ये भारत हमारा हैं....
ये सब निर्वासित गांधीजी से मिलाने बिरला भवन जाते थे तब गांधीजी माइक पर से कहते थे,,,क्यों आये यहाँ अपने घरदार बेचकर,,वहीँ पर अहिंसात्मक प्रतिकार करके
क्यों नहीं रहे ??
क्यों नहीं रहे ??
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