भारत के स्वाधीनता के इतिहास के विद्यार्थियों को मालूम है कि पंडित नेहरु और नेता जी के बीच कोई बहुत मधुर संबंध तो नहीं थे। पर पंडित नेहरु इस तरह की हरकत करेंगे, यह भी किसी ने नहीं सोचा था.....
सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए इंडियन नेशनल आर्मी(आईएनए) का गठन किया था। इस सेना में बोस ने उन भारतीय कैदियों को शामिल किया था जो युद्ध के समय जापान की जेलों में कैद हुए थे। बोस की हिंद सेना ने ही पहली बार अंग्रेजों के खिलाफ 1943 में भारत की सरजमीं पर तिरंगे को फहराया था। लेकिन 1944 में जापानी सेना के ढह जाने के बाद बोस की सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया था। बोस की मौत के बाद जापान ने किया आत्मसमर्पण साथ ही ऐसा माना जाता है कि कि इसी दौरान 48 वर्षीय बोस की ताइवान के एक विमाने हादसे में 18 अगस्त 1945 में मृत्यु हो गयी थी। ठीक 3 दिन बाद जापान की सेना ने भी आत्मसमर्पण कर दिया था। लेकिन जिस तरह से बोस से जुड़ी खुफिया फाइलों से यह खुलासा हुआ है कि बोस के परिवार की 20 सालों तक जासूसी हुई थी। ब्रिटिश काल से हो रही है बोस की जासूसी कोलकाता में नेताजी के दो घर है एक वुडेन पार्क के पास जबकि दूसरा एल्जिन रोड पर था जिसपर 1930 से ब्रिटिश सरकार की सीआईडी की हमेशा नजर में रहता था। बंगाल में सुभाष चंद्र बोस के दो भाई सरत चंद्र और उनके छोटे भाई स्वतंत्रता आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे। इस दौरान बोस परिवार को पुलिस की जासूसी के बीच रहने की आदत पड़ गयी थी। एक बार सीआईडी का एक अधिकारी जब सरत चंद्र के घर एक पत्र को लेकर पहुंचा जोकि सुभाषचंद्र बोस के नाम पर था। लेकिन जब यह अधिकारी अपनी गलती को स्वीकार कर मांफी मांगते हुए उस पत्र को वापस लेने पहुंचा तो सरत चंद्र बोस ने उन्हें कुछ दिन बाद आने को कहा। इस घटना के बाद सुभाषचंद्र बोस जोकि अपने घर के भीतर नजरबंद थे, भारत से भागने में सफल हुए और वह जर्मनी पहुंच गये।
लेकिन नेताजी के दोनों भतीजों का राजनैतिक स्तर और पहुंच बेहद कम थी। जिस समय इन दोनों की जासूसी हुई थी उस वक्त अमिया नाथ आरमबाग से सांसद थे और जबकि सिसिर बोस कांग्रेस के टिकट पर विधायक थे। आईबी को जो बोस परिवार के द्वारा लिखे जो पत्र प्राप्त हुए उनमें परिवार से जुड़े ही विषय थे। बोस की पत्नी पत्रों में घर की स्थिति सहित अपने बेटियों के लालन-पालन को लेकर चिंता व्यक्त किया करती थी। बोस घर चलाने के लिए भेजते थे आर्थिक मदद बोस कोलकाता में अपने परिवार को भरण-पोषण के लिए पैसा भेजा करते थे। आईबी ने अपनी रिपोर्ट में जिन बिंदुओँ को महत्ता दी थी उसे वह पत्र में चिन्हित कर देती थी। हाल के खुलासे में यह पता चला है कि1953 में बोस की पत्नी के बारे में आईबी जानकारी जानना चाहती थी कि क्या बोस उनके संपर्क में थे। सिसिर बोस की पत्नी कृष्णा बोस (85) के का कहना है कि मुझे यह नहीं समझ आता कि सरकार हमारे घर की जासूसी क्यों कर रही थी। उन्होंने कहा कि मेरे पति कहते थे कि मेरा कोई पीछा करता है लेकिन यह ब्रिटिश काल के दौरान था। देश के लिए सिर्फ गांधी और नेहरू ही सबकुछ हैं सिसिर बोस ने 1955 में अपनी पुस्तक अगर आप आज भारत में होते में लिखा है कि आपको यह बात महसूस होती कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सिर्फ महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू ही शामिल थे, जबकि बाकी के लोग सिर्फ सामान्य लोग थे। बोस का हर पत्र आईबी पहुंचाती थी सरकार को बोस के सभी पत्रों को आईबी ने कॉपी करके दिल्ली के हेडक्वार्टर में पहुंचाया था। 1950 में एमएल हुजा जो कि बाद में आईबी के मुखिया बने और रामेश्वर नाथ राव जिन्होंने रॉ की स्थापना की थि के पास ये सारे पत्र थे। इस सारी जासूसी के पीछ नेहरू के करीबी भोला नाथ मलिक थे जोकि नेहरु कि सुरक्षा दल के मुख्य थे और 1948 से 1964 तक रहे। नेता जी ने खुद कहा नेहरू ने मुझे सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया नेताजी ने अपने भतीजे अमिया नाथ बोस को लिखे पत्र में कहा था कि नेहरू से ज्यादा नुकसान मुझे किसी ने नहीं पहुंचाया है।
26 नवंबर 1957 को नेहरू ने विदेश सचिव सुबिमल दत्त को एक पत्र लिखकर पूछा था कि जब मैं जापान रवाना होने वाला था तब मैंने सुना था कि सरत चंद्र बोस के बेटे अमिया बोस टोक्यो पहुंचे थे। उन्होंने मुझे इस बात की जानकारी दी थी कि वह वहां जा रहे हैं। मैं चाहता हूं कि आप पता करें कि अमिया बोस टोक्यों क्या करने गये हैं। क्या अमिया भारतीय दूतावास गये थे। क्या उन्होंने रेंकोजी मंदिर के दर्शन किये थे। नेहरू के इस पत्र का जवाब दत्त ने नकारात्मक दिया था।वहीं भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी का दावा है कि श्याम लाल जैन जोकि नेहरू का स्टेनोग्राफर था उसने खोसला कमीशन के सामने 1970 में खुद इस बात का खुलासा किया है था कि उसने नेहरू के कहने पर 1945 में स्टालिन को एक पत्र लिखा था और उसमें उन्होंने खुद इस बात को स्वीकार किया था कि सुभाष चंद्र बोस स्टालिन की कैद में हैं। स्वामी का दावा है कि विमान हादसा कांग्रेस का फैलाया झूठ है। नेताजी की सोवियत यूनियन में कैद के दौरान स्टालिन ने हत्या करायी थी। भाजपा नेता एमजे अकबर का कहना है कि 20 साल की जासूसी के दौरान 16 साल नेहरू प्रधानमंत्री थे। नेहरू इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं थे कि बोस की मृत्यु हो गयी है। इसीलिए सरकार ने बोस के परिवार की जासूसी करायी। पं जवाहरलाल नेहरू के पुराने मित्र रहे भारत के पूर्व राजदूत एसीएन नांबियार तत्कालीन सोवियत संघ के जासूस थे। यह दावा किया गया है ब्रिटिश दस्तावेजों में। इन दस्तावेजों में बताया गया है कि नांबियार 1924 में बर्लिन में एक पत्रकार के रूप में गए थे और उन्होंने वहां पर भारतीय कम्युनिस्ट ग्रुप के साथ काम किया था। यही नहीं 1929 में उन्होंने सोवियत मेहमान के रूप में मॉस्को की भी यात्रा की थी।राष्ट्रीय अभिलेखागार में 30 साल के शासन काल के अधीन गैर वर्गीकृत दस्तावेजों के मुताबिक दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ जाने के बाद नांबियार को जर्मनी से निष्कासित कर दिया गया था।
ऐसा भी कहा जाता है बोस चीन के बाद सोवियत संघ चले गये थे। वहीं बाद में वह यूपी के फैजाबाद में बाबा की तरह जीवन व्यतीत कर रहे थे। लेकिन बोस से जुड़ी इन खुफिया बातों को इसलिए नकारा नहीं जा सकता है क्योंकि सरकार ने उनसे जुड़ी खुफिया फाइलों को आजतक सार्वजनिक नहीं किया है। 1970 में उठी थी पहली बार मांग देश के मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने पहली बार सरकार से बोस से जुड़े कागजात को सार्वजनिक किये जाने की मांग की थी लेकिन उनकी इन मांगों को दरकिनार कर दिया गया था। 150 फाइलों में छिपा है बोस का रहस्य केंद्र की हर सरकार ने बोस से जुड़ी 150 फाइलों को खुफिया फाइलें बताकर इन्हें सार्वजनिक करने से इनकार किया है। सरकार का मत है कि इन कागजों के सार्वजनिक होने से तनाव का माहौल हो सकता है। हाल ही में एक आरटीआई में यह भी खुलासा हुआ है कि नेताजी से जुड़ी 5 ऐसी भी फाइलें हैं जिनकी गोपनीयता के चलते उनका नाम तक नहीं बताया गया है आजतक।
जानकार दावा करते हैं कि नेता जी की मौत से जुड़ी गुप्त जानकारियों वाली फाइल को सार्वजनिक करने से भारत के ब्रिटेन तथा रूस से संबंध खराब हो सकते हैं। जानकार दावा करते हैं कि नेता जी की मौत की गुत्थी सुलझाने के लिए गठित मुखर्जी आयोग ने कहा था कि इस तरह के विमान हादसे के कोई रिकॉर्ड नहीं मिलते जिससे पता चल सके कि वे विमान हादसे में मारे गए थे। यही नहीं, ताइवान के किसी अस्पताल में भी जले हुए शव का कोई रिकॉर्ड नहीं है। अस्थियां जापान में महत्वपूर्ण है कि नेताजी की अस्थियां जापान के एनकोजी मंदिर में संभाल कर रखी गई हैं। यह दावा जापान में रहने वाले भारतीय मूल के नागरिक बीएस देशमुख ने अहमदाबाद में एक बार किया था।वे अपने संगठन ‘नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेमोरियल इंडो-जापान फाउन्डेशन' के बैनर तले नेताजी की अस्थियां स्वदेश लाने के लिए प्रयासरत हैं। हालांकि कहने वाले कहते हैं कि उन अस्थियों का डीएनए टेस्ट होना चाहिए।
महात्मा गांधी ने बोस की जगह नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में तरजीह दी। दरअसल बोस भारत को पूरी तरह से अंग्रेजों से आजाद कराना चाहते थे। जबकि 1939 तक गांधी जी इसके पक्षधर नहीं थे। इतिहासकार रुद्रांशु मुखर्जी ने अपनी पुस्तक नेहरू और बोस में लिखा है कि बोस को लगता था कि वह और नेहरू इतिहास बना सकते हैं। लेकिन नेहरू को गांधी के बिना अपना भाग्य म अंधकारमय लगता था, जिस वजह से उन्होंने बोस के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी।
नोट - नेहरु के कुकर्मो को छुपाने के लिए इंदिरा ने नेताजी से जुडी दो महत्वपूर्ण फाइलें नष्ट करने के आदेश दिए थे ( साथ में फोटो दे रही हु खुद देखे ) और सम्बंधित दस्तावेजो के फोटो
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जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु के समय नेता जी संत के भेष में नेहरु को श्रधांजलि देने आये थे ? श्रधांजलि समारोह की कई तस्वीरों में से ये दो तस्वीरे ऐसी हैं जिसमे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस स्पष्ट देखे जा सकते हैं ? इसका आज तक सरकार ने कोई खंडन या पुष्टि नहीं की।
आखिर जब नेता जी मृत्यु ताइवान में आजादी से पूर्व हुई थी, तो लगभग 3 दशक बाद नेहरु के अंतिम संस्कार में दिख रहा ये व्यक्ति कौन है? क्यों आज तक कांग्रेस की और अब वर्तमान में भाजपा की सरकार नेता जी से सम्बंधित दस्तावेज सार्वजनिक करने से भयभीत है? कुछ तो ऐसा बहुत बड़ा है, जो सरकारें छिपा रही हैं। संभव है, तथ्य ये हो कि,नेताजी हिंदुस्तान में सरकार की जानकारी के बाद भी थे और नेहरु ने उन्हें ब्रिटेन को नहीं सौपा और इससे ब्रिटेन से रिश्ते बिगड़ने का खतरा हो या कोई और जापान जर्मनी की गद्दारी जैसा तथ्य! जो भी हो इसे सार्वजनिक होना चाहिए, जिससे आजादी के बाद से चली आ रही ये अनुत्तरित पहेली सुलझाई जा सके!
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