Friday 17 April 2015

कश्मीर ⇄ गद्दारों और अलगाववादियों की सरकारी सेवा का क्या कारण है ? - Dr. Sudhir Vyas


1947 में ब्रिटिश संसद के “इंडियन इंडीपेनडेंस इ एक्ट” के अनुसार ब्रिटेन ने तय किया की मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को पाकिस्तान बनाया जायेगा। 150 राजाओं ने पाकिस्तान चुना और बाकी 450 राजाओ ने भारत। केवल एक जम्मू और कश्मीर के राजा बच गए थे जो फैसला नहीं कर पा रहे थे। लेकिन जब पाकिस्तान ने फौज भेजकर कश्मीर पर आक्रमण किया तो कश्मीर के राजा ने भी हिंदुस्तान में कश्मीर के विलय के लिए दस्तख़त कर दिए। ब्रिटिशो ने यह कहा था की राजा अगर एक बार दस्तखत कर दिया तो वो बदल नहीं सकता और जनता की आम राय पूछने की जरुरत नहीं है। तो जिन कानूनों के आधार पर भारत और पाकिस्तान बने थे उन नियमो के अनुसार कश्मीर पूरी तरह से भारत का अंग बन गया था। इसलिए कोई भी कहता है की कश्मीर पर भारत ने जबरदस्ती कब्ज़ा कर रहे है वो बिलकुल झूठ है।
कश्मीर घाटी की आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी पाकिस्तान परस्त अलगावादियों के साथ खड़ा होता है। आज इस लेख के सहारे ऐसे सभी लोगों की आंखें खुल जानी चाहिए जो पाकिस्तान परस्त अलगाववादी नेताओं को अपना मसीहा मानकर चलते हैं और आतंकवादियों को क्रांतिदूत / मुजाहिद / मिलिटेंट यानि आजादी का सिपाही क्योंकि सच को उन तक पहुंचने ही नहीं दिया जाता फिर भले ही वह सैयद अली शाह गिलानी जैसे नेताओं को हवाला के जरिए मिलने वाले अकूत धन के बारे में हो, कश्मीरी नेताओं को खुद कश्मीरियों के हाथों गोली मारे जाने के संबंध में हो या फिर विरोध प्रदर्शनों के दौरान छिप कर गोली चलाने वाले आतंकवादियों के बारे में… कौन नहीं जानता कि कश्मीरी अलगाववादियों, खासकर उग्रपंथियों द्वारा उठाए जाने वाले हर कदम की स्क्रिप्ट सीमा पार पाकिस्तान – इस्लामाबाद से ही लिखी जाती है…!!

कश्मीरी अलगाववाद का पिछले बीस पच्चीस साल का इतिहास यह दिखाने के लिए काफी है कि किस तरह पाकिस्तानियों ने धीरे धीरे वहां के जन असंतोष को ‘हाईजैक’ कर लिया है कश्मीरी अलगाववादी ‘आंदोलन’ में मूल रूप से जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) की प्रधानता थी (जिसका हालिया चीफ कुख्यात पाकिस्तानी आतंकवादी हाफिज़ सईद और ISI का पालतू कुकुर यासीन मलिक है) जिसका लक्ष्य राज्य को भारत और पाकिस्तान दोनों से अलग कर स्वतंत्र राष्ट्र में तब्दील करना था, जनरल जिया के शासनकाल के बाद पाकिस्तान ने आर्थिक, राजनैतिक और आतंकी दबावों के जरिए इस आंदोलन की दिशा बदल दी और वहां हुर्रियत कांफ्रेंस को खड़ा किया गया जिसका रुझान जम्मू व कश्मीर का पाकिस्तान में विलय कराने की ओर है। राज्य में जेकेएलएफ निरंतर कमजोर होता चला गया और सभी किस्मों के (आतंकवादी, उग्रपंथी और नरमपंथी) पाकिस्तान समर्थक तत्व मजबूत होते चले गए। आज कश्मीरी आंदोलन की प्रधान प्रवृत्ति पाकिस्तान समर्थक है। यह यात्रा बहुत सुगम और स्वाभाविक नहीं रही,, हालात को अपने हक़ में मोड़ने की प्रक्रिया में कई शीर्ष नेता, दर्जनों मझौले दर्जे के नेता और हजारों नागरिक मारे गए आज वहां ‘अलगाववादी’ शब्द से तात्पर्य ‘पाकिस्तान समर्थक’ से बन चुका है उसके सभी नेता चाहे वे सैयद अली शाह गिलानी के उग्रपंथी धड़े से जुड़े हों, मीरवाइज उमर फारूक के धड़े से , जे.के.एल.एफ. चीफ यासीन मलिक के धड़े से या फिर सैयद सलाहुद्दीन और हाफिज सईद जैसे आतंकवादी से, कमोबेश सभी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों के प्रभाव में और उनके हवाला से मिलते पैसे पर पलते हैं..!!
आतंकवादग्रस्त कश्मीर में कई अजीब दास्तानें हैं। इनमें सबसे अहम और चौंकाने वाली कथा उन हिन्दू विस्थापितों की है जिन्होंने पेट की आग को बुझाने और घर में चूल्हा जलता रहे इसके लिए अपने बच्चों को या तो गिरवी रख दिया या फिर बेच डाला था, जबकि दूसरी ओर सरकार अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा तथा जेलों में बंद आतंकवादियों के राशन पर करोड़ों रुपया खर्च कर रही है ,, इसे आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया गया है कि कश्मीरी अलगाववादी नेताओं को दिए जाने वाली सुरक्षा पर प्रतिवर्ष पचास करोड़ की राशि खर्च हो रही है इसमें उन सुरक्षाकर्मियों के वेतन को शामिल नहीं किया गया है, जो उनकी सुरक्षा में तैनात किए गए हैं।
यह कैसा न्याय, अलगाववादियों को जेड प्लस सुरक्षा…???
रोचक और चौंकाने वाला तथ्य यह है कि ऐसे 50 के करीब कश्मीरी अलगाववादी नेता हैं, जिन्हें राज्य सरकार ने केंद्रीय सरकार के आदेशों पर सरकारी सुरक्षा मुहैया करवा रखी है,, सर्वदलीय हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मीरवायज मौलवी उमर फारुक को तो बाकायदा ‘जेड प्लस’ की श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की गई है,, तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने विधानसभा में इसके प्रति आंकड़े प्रस्तुत करते हुए स्वीकार किया था कि अलगाववादी नेताओं को जेड प्लस, जेड तथा वाई श्रेणी की सुरक्षा मुहैया करवाई गई है,, सबसे मजेदार बात उनके प्रति यह कही जा सकती है कि वे भारतीय सरकार की सुरक्षा के बीच रहते हुए भी भारत के विरुद्ध दुष्प्रचार से बाज नहीं आते और उन्हें कोई नुकसान भी इसलिए नहीं पहुंच सकता, क्योंकि वे भारतीय सुरक्षाबलों की सुरक्षा में हैं ,, 50 के करीब अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा, जिनमें मीरवायज मौलवी उमर फारुक, सईद अली शाह गिलानी, मौलवी अब्बास अंसारी, शब्बीर अहमद शाह, जावेद मीर, अब्दुल गनी बट, सज्जाद लोन, बिलाल लोन तथा यासिन मलिक जैसे नेता भी शामिल हैं, पर प्रतिवर्ष पचास करोड़ रुपया खर्च हो रहा है, पर गैरसरकारी अनुमान इससे दोगुना है।

यह तो कुछ भी नहीं, तलवाड़ा के विस्थापितों द्वारा जब अपने बच्चे बेचकर अपना पेट भरने की खबरें बाहर आई थीं तो उसी समय तत्कालीन मुख्यमंत्री आजाद विधानसभा में यह जानकारी दे रहे थे कि राज्य के बाहर की जेलों में बंद 77 के करीब विदेशी आतंकियों की खुराक आदि के मामले पर प्रतिवर्ष 21 लाख रुपया खर्च हो रहा है जिसका भुगतान राज्य सरकार कर रही है ,, कड़वी सच्चाई यह है कि ऐसे आतंकियों के भोजन इत्यादि पर पिछले कई सालों से लाखों रुपया खर्च किया जा रहा है, मगर सरकार ने उन विस्थापितों को एक फूटी कौड़ी भी नहीं दी, जो आज अपने जिगर के टुकड़ों को बेचने पर मजबूर हो गए , ऐसा कतई नहीं है कि तलवाड़ा समेत अन्य स्थानों पर रहने वाले विस्थापितों को राहत के नाम पर कुछ दिया भी जा रहा हो बल्कि उन्हें तो वैसी ही स्थिति में रहने दिया जा रहा है जबकि जेल में बंद आतंकियों के खर्च में इजाफा ठीक उसी प्रकार जरूर किया गया है जिस प्रकार अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा में बढ़ोतरी इसलिए की गई है, क्योंकि अब उन्हें पाक समर्थक आतंकियों से ही जान का खतरा पैदा हो गया है, हालांकि अलगाववादी नेताओं को सरकारी सुरक्षा मुहैया करवाने का मुद्दा कई बार गर्मा भी चुका है ,विशेषकर राष्ट्रवादी ताकतों का कहना है कि अलगाववादियों को सुरक्षा मुहैया करवाकर भारत सरकार भारतीय सुरक्षाबलों के मनोबल को कम कर रही है ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि जिन सुरक्षाकर्मियों की बदौलत आज ये अलगाववादी नेता जीवित हैं वे उन्हीं पर आए दिन झूठे मानवाधिकारों के हनन के आरोप मढ़ते रहते हैं…!!
‘कश्मीर कभी भारत का अंग रहा ही नहीं।’ ‘हमें मुकम्मल आजादी चाहिए।’ ‘जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान का भाग है।’ ‘जम्मू-कश्मीर का भारत में हुआ विलय अधूरा है।’ ‘हमें स्वशासन दो’। ‘हमें स्वायत्तता चाहिए।’ ‘आत्मनिर्णय वाले सुरक्षा परिषद् के प्रस्ताव पर अमल हो।’ ‘कश्मीर मसले पर वार्ता में पाकिस्तान को भी शामिल करो’। ‘बंदूक के जोर पर लेकर रहेंगे निजामे मुस्तफा की हकूमत।’ इस सारी पाकिस्तान समर्थक भयावह आतिशबाजी के बीच भारत सरकार द्वारा यदा-कदा होने वाली यह बयानबाजी नकारखाने में तूती साबित हो रही है कि ‘जम्मू- कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है।’ कश्मीर घाटी में पूरी शक्ति के साथ सक्रिय अलगाववादी संगठनों, आतंकी गुटों, कट्टरपंथी मजहबी जमातों, कश्मीर केन्द्रित राजनीतिक दलों और इन सबके आका पाकिस्तान की आवाज के पीछे संगीनों वाले जिहादी आतंकियों की ताकत है, जबकि भारत सरकार की घोषणाएं इच्छा-शक्ति और शक्ति-प्रदर्शन के अभाव में कोरी गीदड़ भभकियां साबित हो रही हैं,सच्चाई तो यह है कि हमारी सभी सरकारों ने ‘जम्मू-कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय’ इस विषय को कभी भी प्रभावशाली ढंग से पाकिस्तान और कश्मीर में सक्रिय उसके वफादार संगठनों और राजनीतिक दलों के साथ उठाया ही नहीं है।
2013 में पूर्ववर्ती कांग्रेसनीत यूपीऐ की केन्द्र सरकार द्वारा भेजे गए तीनों वार्ताकारों ने भी अलगाववादियों और एन.सी., पी.डी.पी. की हां में हां मिलाते हुए 27 अक्तूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर के भारत में हुए पूर्ण विलय पर ही प्रश्न चिह्न लगा दिया पाकिस्तान और कश्मीरी अलगाववादियों के एजेंडे पर आधारित रपट तैयार करने वाले इन वार्ताकारों और इनकी रपट के खतरनाक तथ्यों पर कांग्रेसनीत यूपीऐ की ही तरह वर्तमान मोदीराज की भारत सरकार ने भी चुप्पी क्यों साधी हुई है.?
भारत के संविधान और संसद की खुली अवज्ञा करके ‘संवैधानिक विलय’ को चुनौती देने वाले मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की सरकार का समर्थन कांग्रेस क्यों कर रही थी ?
यदि चीन की मदद से पूर्वोत्तर में उठने वाले सशस्त विद्रोह और अस्सी के दशक में पाकिस्तान के बल पर पंजाब में पनपे हिंसक खालिस्तानी आन्दोलन को देशद्रोह कह कर सख्ती से कुचला जा सकता है तो जम्मू-कश्मीर में भारत की अखण्डता, संविधान और संसद की अवज्ञा करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री व एन.सी.नेता उमर अब्दुल्ला, राजनीतिक दलों और अलगाववादियों के आगे हमेशा ही घुटने क्यों टेके जा रहे हैं ?
भारतीय स्वाधीनता अधिनियम 1947 के अनुसार विलय की स्वीकृति पर आपत्ति करने का अधिकार भारत के प्रधानमंत्री, गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन, इंग्लैण्ड की महारानी, इंग्लैण्ड की संसद, पाकिस्तान के जनक मुहम्मद अली जिन्ना और सम्बंधित राज्य के महाराजा या जनता को भी नहीं था। महाराजा हरिसिंह द्वारा 26 अक्तूबर, 1947 को भारत सरकार के पास भेजे गए विलय पत्र पर लार्ड माउंटबेटन ने अपनी मोहर लगाकर हस्ताक्षर कर दिए- ‘मैं एतद् द्वारा इस विलय पत्र को स्वीकार करता हूं।’ 1954 में जम्मू-कश्मीर के नागरिकों द्वारा चुनी गई संविधान सभा ने भी 6 फरवरी 1956 को इस पर अपनी मोहर लगा दी। इसी संविधान सभा द्वारा बनाए गए जम्मू-कश्मीर के अपने संविधान के अनुच्छेद (1) के अनुसार जम्मू-कश्मीर भारत का स्थाई भाग है। इसी संविधान के अनुच्छेद (4) में कहा गया कि जम्मू-कश्मीर में वह सारा क्षेत्र शामिल है जो 15 अगस्त, 1947 को महाराजा के आधिपत्य में था। इसी संविधान के अनुच्छेद 149 में यह स्वीकार किया गया है कि जम्मू-कश्मीर के इस संवैधानिक स्वरूप को कभी बदला नहीं जा सकता अर्थात् जम्मू-कश्मीर भारतीय संघ का स्थाई अखंडित भाग बना रहेगा।
किसी भी देश की सुरक्षा और सैनिक रणनीति की दृष्टि से इससे बड़ी भयंकर भूल और भला क्या हो सकती है कि सेना के कदम आगे बढ़ रहे हों और राजनीतिक नेतृत्व पीठ दिखाकर अपने ही भूभाग को दुश्मन के हवाले कर रहा हो। जम्मू-कश्मीर का जो भाग पाकिस्तान के कब्जे में चला गया वही पाक अधिकृत कश्मीर (पी.ओ.के.) कहलाया जिसे हम आज तक मुक्त नहीं करवा सके। आज इसी ‘पी.ओ.के.’ में पाकिस्तान सरकार और सेना आतंकवादी तैयार करने वाले प्रशिक्षण शिविर चला रही है। पाकिस्तान के सैन्याधिकारियों की देख-रेख में कश्मीरी युवकों को हिंसक जिहाद सिखाया जा रहा है। वास्तव में यही क्षेत्र सारे फसाद की जड़ है। भारतीय कश्मीर कोई समस्या नहीं है। भारत सरकार की अस्पष्ट और कमजोर कश्मीर नीति ही समस्या है। यही वजह है कि पाकिस्तान द्वारा थोपे गए चार युद्धों में विजय होने के बाद भी हमने अपने ही क्षेत्र ‘पी.ओ.के.’ को मुक्त नहीं करवाया जबकि पाकिस्तान ने चारों युद्ध भारतीय कश्मीर पर कब्जा करने के उद्देश्य से ही किए थे। हमारी रणनीति मात्र बचाव की ही रही। यही हमारी कूटनीतिक पराजय साबित हो रही है।
जम्मू-कश्मीर के भारत में हुए पूर्ण संवैधानिक विलय पर आज जो सवालिया निशान लगाए जा रहे हैं और कश्मीर को भारत के संवैधानिक वर्चस्व से आजाद करवाने के लिए जो भी हिंसक अथवा अहिंसक अभियान चलाए जा रहे हैं, उन सबके लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं। 1947 में पाकिस्तान के साथ एकतरफा युद्ध विराम हमने किया। ‘यू.एन.ओ.’ को बिचौलिया हमने बनाया। कश्मीर का दो-तिहाई क्षेत्र हमने पाकिस्तान को सौंपा। देशभक्त महाराजा हरिसिंह को देश निकाला देकर देशद्रोही शेख अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर की सत्ता सौंप दी। धारा 370 के कवच में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा, अलग संविधान और अलग झण्डा दे दिया। देशद्रोह की सजा भुगत रहे शेख अब्दुल्ला को जेल से निकाल कर फिर सत्ता पर बिठा दिया। पाकिस्तान के एजेंट अलगाववादी संगठनों के नेताओं को हम जेड सुरक्षा दे रहे हैं। चार लाख कश्मीरी हिन्दुओं को बेघर करने के जिम्मेदार इन संगठनों से वार्तालाप की भीख मांगी जाती है। हिंसक आतंकवादियों से लोहा ले रहे भारतीय सुरक्षा जवानों का मनोबल तोड़ने की राजनीति की जा रही है।
इस तरह की घुटना टेक कश्मीर नीति भारत की उस संसद का अपमान है जिसने 1994 में सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित करके निश्चय किया था कि पूरा जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न भाग है। इसमें पूरे जम्मू-कश्मीर में मुजफ्फराबाद, मीरपुर, कोटली, भिम्बर, गिलगित, बाल्टिस्तान और सियाचीन का सारा क्षेत्र शामिल है। इस पूरी रियासत का महाराजा हरिसिंह ने भारत में विलय किया था। कांग्रेस ने पूर्ण विलय के इस आधार को छोड़कर मजहबी तुष्टीकरण को आधार बनाकर कश्मीर को समस्या बना दिया। कांग्रेस और कांग्रेसी सरकारों द्वारा की गई भयंकर भूलों का नतीजा है कश्मीर में व्याप्त अलगाववाद और हिंसक जिहाद। अब तो एक ही रास्ता है कि देश की समस्त राष्ट्रवादी शक्तियां एकत्रित होकर अलगावादी मनोवृत्ति और तुष्टीकरण की राजनीति का प्रतिकार करें और पूर्ण विलय को अधूरा बताकर कश्मीर को ‘आजाद मुल्क’ बनाने के प्रयासों पर प्रत्येक प्रकार का सैनिक अथवा गैर-सैनिक प्रहार करें। यह कार्य दलगत राजनीति की तंग लकीरों से परे हटकर ही होगा।
जम्मू-कश्मीर से संचालित हो रहे विभिन्न आतंकी संगठनों को खाड़ी व अन्य देशों से हवाला के जरिए फंड मिल रहा है जम्मू कश्मीर राज्य में आतंकी संगठनों को खाड़ी व अन्य देशों से हवाला के जरिए पैसे मिल रहे हैं जिससे इन संगठनों के प्रमुख आतंकी गतिविधियां फैला रहे हैं,, हवाला पैसा ट्रांसफर करने का ऐसा तरीका है जिसमें कारोबारी और फंड देने वाले बिजनेसमैन अवैध तरीकों से अपने ब्लैक मनी को व्हाइटमनी में बदलते हैं, लेन-देन में अनाधिकृत रूप से एक देश से दूसरे देश में विदेशी विनिमय किया जाता है अर्थात हवाला विदेशी मुद्रा का एक स्थान से दूसरे स्थान पर गैर कानूनी रूप से हस्तांतरण का ही नाम है इसमें सबसे अहम् भूमिका एजेंट की ही होती है , या यूँ कह सकते है की एजेंटों के ही हवाले से यह कारोबार संचालित होता है इसीलिए इसका नाम हवाला पड़ा,, ये पैसा लेन-देन का अवैध तरीका है जिसे हुंडी भी कहते हैं ,,आज की तारीख में हवाला राजनीतिक दलों और आंतकी संगठनों तक पैसा पहुंचाने का सबसे सरल तरीका है इसके माध्यम से अवैध तरीकों से धन राजनीतिक पार्टियों और आंतकी संगठन तक पहुंचाया जाता है,, हवाला का इतिहास जानने से पहले आप प्रबुद्ध पाठकों व मित्रों को जैन हवाला स्कैम को नहीं भूलना चाहिए, 18 मिलियन डॉलर के इस घोटाले को अब तक सबसे बड़ा स्कैम माना जाता है इस हवाला घोटाले में दिखया गया कि कैसे राजनेता और कारोबारी पैसों के ट्रांसफर का अवैध कारोबार करते हैं इस घोटाले में इस बात का खुलासा हुआ कि विदेश से जिस फंड के द्वारा राजनीतिक दल को पैसा ट्रांसफर किया गया उसी चैनल के जरिए आंतकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन को भी फंड दिए गए थे। तब इस घोटाले में 115 राजनेता और कारोबारी के साथ कई ब्यूरोक्रेट्स इस घोटाले में शामिल थे हालांकि जैसा कि भारतीय न्याय व्यवस्था का प्रोटोकॉल है सबूत के अभाव में 1997-98 में सब राजनेते व ब्यूरोक्रेट्स बचकर निकल गए…हालांकि केस हमेशा की तरह अदालतों में धूल फाँक रहा है।
इन दिनों भी जम्मू-कश्मीर में एलओसी से हो रहे हवाला रैकेट का पर्दाफाश हुआ है हवाला के जरिए पैसों की हेराफेरी में पंजाब और जम्मू के व्यापारी शामिल हैं इन पर इल्जाम है कि ये लश्कर को हवाला के जरिए पैसा पहुंचाने में शामिल हैं ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब हवाला कारोबार के तार जम्मू-कश्मीर से बाहर जुड़े हैं पुलिस के मुताबिक ये मामला तब सामने आया जब पुलिस ने एक शख्स को श्रीनगर जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग के बनिहाल इलाके में आतंकियों के लिए काम करने वाले आदमी को पैसे देते गिरफ्तार किया उसके बाद उसकी निशानदेही पर चार व्यापारियों के ठिकानों पर रेड की गई पुलिस ने कुल सोलह लाख रुपए बरामद किए हैं, जिनमें दो लाख रुपए का एक चेक लश्कर के लिए था पुलिस ने जम्मू और अमृतसर के तीन हवाला कारोबारियों को हिरासत में ले लिया है जबकि कुलगाम का चौथा हवाला कारोबारी अभी फरार है। एलओसी के आर-पार व्यापार की आड़ में हवाला कारोबार के खुलासे ने सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है और इसमें जम्मू-कश्मीर से बाहर के व्यापारियों के शामिल होने से साफ हो गया है कि हवाला कारोबार के तार पूरे देश में जुड़े हुए हैं।
पिछले लगभग एक दशक से, खासतौर पर 26/11 के मुंबई हमलों के बाद से कश्मीरी अलगाववादी खुद को अप्रासंगिक महसूस कर रहे थे। यूपीए सरकार ने अनेक कारणों से पाकिस्तान के साथ वार्ता प्रक्रिया की उपेक्षा की थी और इसका असर कश्मीर में नजर आ रहा था। इतिहास गवाह है कि अलगाववादियों को केवल तभी महत्व दिया जाता है, जब भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत का दौर जारी हो। भारत द्वारा वार्ता रद्द करने का निर्णय अप्रत्याशित था। प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही नरेंद्र मोदी पाकिस्तान समेत सभी दक्षिण एशियाई देशों से रिश्ते सुधारने की कोशिश कर रहे थे। अपने स्वतंत्रता दिवस उद्बोधन में भी उन्होंने पाकिस्तान या कश्मीर का कोई उल्लेख नहीं किया। लेह में भी उन्होंने पाकिस्तान के ‘छद्म युद्ध” पर तभी टिप्पणी की, जब पाकिस्तान की ओर से नियंत्रण रेखा, अंतरराष्ट्रीय सीमा तथा संघर्ष विराम के उल्लंघन की बार-बार कोशिश की जा रही थी। लेकिन मोदी ने जो कहा, वह तो 1980 के दशक से ही भारतीय नेतृत्व का रुख रहा है ,,पाकिस्तान से वार्ता रद्द करने के भारत के निर्णय से हुर्रियत के नेताओं को जो महत्व मिला, उससे यकीनन ही वे खुश हुए होंगे। लेकिन यदि भारत सरकार को लगता था कि अलगाववादियों और पाकिस्तानी उच्चायुक्त की मुलाकात गैरजायज है तो वह हुर्रियत नेताओं को नई दिल्ली जाने से ही रोक सकती थी। मजे की बात है कि गिलानी, जो कि अप्रैल से ही हैदरपुरा स्थित अपने घर और कार्यालय में नजरबंद हैं, को नई दिल्ली की फ्लाइट पकड़ने की अनुमति दी गई। मीरवाइज और यासिन मलिक भी उनके साथ थे। विरोध-प्रदर्शनों के बीच वे पाकिस्तानी उच्चायुक्त से मिलने पहुंचे। फिर मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि वे यहां कश्मीरियों के प्रतिनिधि के रूप में पहुंचे हैं। साथ ही उन्होंने कश्मीरियों को नैतिक और कूटनीतिक समर्थन देने के लिए पाकिस्तान की तारीफों के पुल भी बांधे लेकिन पाकिस्तानी उच्चायोग में कश्मीरी अलगाववादियों का जाना कोई नई बात नहीं है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत करने के लिए जब नवाज शरीफ नई दिल्ली पहुंचे थे, और अलगाववादियों से उनकी मुलाकात नहीं हो सकी, तो यह अपनी तरह का एक दुर्लभ मामला था अन्यथा पाकिस्तानी हुकूमत के हर ओहदेदार की भारत-यात्रा पर अलगाववादी बिला नागा उससे मिलने जाते हैं, यह तो खैर सभी जानते हैं कि किसी भी व्यक्ति के लिए गिलानी, मीरवाइज या यासिन मलिक का सिफारिशी पत्र ही पाकिस्तान का वीजा हासिल करने के लिए काफी है पाकिस्तान डे, कश्मीर एकता दिवस, ईद मिलन जैसे समारोहों की लजीज दावतों के लिए इन अलगाववादियों को न्योता दिया जाता है।

वर्ष 2003 में जमदूदा हबीब और शब्बीर दार सरीखे हुर्रियत नेताओं की गिरफ्तारी के बावजूद यह सिलसिला जारी है इन नेताओं पर पाकिस्तानी उच्चायोग से पैसे लेकर उसे चरमपंथी समूहों में बांटने का आरोप था गिरफ्तारी के बाद दिल्ली में हुर्रियत के दफ्तर कश्मीर अवेयरनेस ब्यूरो को बंद करना पड़ा था मजे की बात है कि जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार बनी थी, तब भी पाकिस्तानी उच्चायोग द्वारा कश्मीरी अलगाववादियों से बातचीत करने का विरोध नहीं किया गया था, वास्तव में वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में ही अलगाववादी नेताओं के एक धड़े ने सबसे पहले भारत सरकार से वार्ता की थी पाकिस्तान के राजदूत अब्दुल बासित की अलगाववादियों से भेंट को लेकर मोदी सरकार को मुख्य आपत्ति यह थी कि कश्मीर भारत का अंदरूनी मसला है और वह किसी अन्य को इसमें हस्तक्षेप नहीं करने देगा लेकिन वाजपेयी सरकार ने अलगाववादियों से बातचीत करने का नया तरीका खोजा था,, 22 जनवरी 2004 को जब अब्बास अंसारी के नेतृत्व में हुर्रियत प्रतिनिधिमंडल भारत सरकार से मिला तो उसकी तत्कालीन गृह मंत्री और उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी से ढाई घंटे बात हुई थी बातचीत गृह मंत्रालय के स्तर तक ही सीमित थी, हालांकि बाद में सरकार ने हुर्रियत नेताओं को पाकिस्तान जाने की इजाजत दी ,, अलबत्ता कट्टरपंथी सैय्यद अलीशाह गिलानी वार्ताओं में शरीक नहीं हुए थे।
हाल में ही भारत की इंटेलीजेस ऐजेंसियों ने पाकिस्तान के आईएसआई पोषित कुख्यात आतंकवादी हाफिज़ सईद और उसके पालतू कुत्ते रूपी कश्मीरी अलगाववादी यासीन मलिक की फोन वार्तायें इंटरसैप्ट की हैं जिसमें से एक में वो साफ तौर पर हाफिज सईद व आईएसआई से पोषित पालतू कुत्ता रूपी गद्दार साबित होता है – यासीन मलिक जैसे लोग पाकिस्तान के मोहरे हैं जो कश्मीर में अलगाव और आतंक फैलाने के लिए उनके इशारे पर कार्य करते हैं। यासीन मलिक जैसे नेताओं के कारण ही अफजल गुरु जैसे आतंकी जन्म लेते हैं। विपक्षी दल ने मांग की है कि यासीन पर नजर रखी जाए और उसे गिरफ्तार किया जाए 1963 में कश्मीर में जन्मे यासीन मलिक के पिताजी सरकारी बस के ड्राइवर थे उसने पाकिस्तानी बाला मशाल हुसैन मलिक से निकाह किया है जो एक चित्रकार है। मशाल के पिता रहमान हुसैन पाकिस्तान की राजनीति और आईएसआई में अच्छा खासा दखल रखते हैं जब यासीन ने मशाल से ‍निकाह किया था तब यासीन 42 और मशाल 28 वर्ष की थी ,यासीन मलिक सार्वजनिक रूप से खुद स्‍वीकार कर चुका है कि उसने 1987 में 4 भारतीय सुरक्षाकर्मियों की हत्‍या कर दी थी इस दोष में उसे सजा भी काटनी पड़ी थी , यासीन मलिक 1999 और 2002 में गिरफ्तार हो चुका है 2002 में तो उसे पोटा के तहत गिरफ्तार किया गया था,,मुंबई हमले के साजिश कर्ता कहे जाने वाले लश्कर-ए-तैयबा संस्थापक एवं प्रमुख हाफिज सईद ने 18 नवंबर, 2014 को कश्मीर के अलगाववादी यासीन मलिक से बात की,, आईबी ने यह कॉल ट्रेस कर ली और उसमें जो कुछ भी बातें हुईं वह आप पढ़ रहे हैं —
हाफिज़- हेलो यासीन भाई, सलाम वाले कूं
यासीन- वाले कूम अससलाम
हाफिज़- भाई जान कैसे हैं आप
यासीन- अल्लाह के फज़ल से सब खैरियत है, आप बताइये, वहां सब कैसा चल रहा है? कैसे कॉल किया
हाफिज़- कुछ नहीं बस कश्मीर में नई हुकूमत बनने जा रही है, जो हम नहीं चाहते हैं
यासीन- तो बताइये हमें क्या करना है
हाफिज़- बस मैं चाहता था कि पीओके (पाक अधीकृत कश्मीर) में रह रहे हमारे साथी, घाटी में रहने वाले कश्मीरियों के संपर्क में रहें।
यासीन- हां मैं जानता हूं, लेकिन चुनाव में क्या करना होगा, यह बताइये
हाफिज़- मैं चाहता हूं कि इस चुनाव में ऐसी खलल डाली जाये, कि दिल्ली तक हिल जाये।
यासीन- पर बच्चों (युवा आतंकवादी) को क्या फायदा होगा?
हाफिज़- जो कहो, वो फायदा करा दूं। पैसा चाहिये? दे दूंगा? कहो तो तनख्वाह बढ़ा दूं?
यासीन- हां तनख्वाह तो अब बढ़नी चाहिये, क्योंकि काम करना अब बेहद मुश्किल हो गया है!
हाफिज़- तो ठीक है, पक्का! आप चुनाव में खलल डालने की। तैयारी कीजिये, मैं वादा करता हूं सबकी सैलरी बढ़ा दूंगा।
यासीन- हूं…….. सोच कर बताता हूं आगे क्या करना है।
जब इतने पुख्ता पुख्ता सबूत हैं तो इतने सालों से इन तथाकथित अलगाववादी रूपी पाकिस्तान परस्त पालतू कुत्तों को भारत सरकार किस कारण सरकारी सुविधाएँ, सुरक्षा, पेंशन देती हैं…??


तेरी जान, मेरी जान ... पाकिस्तान पाकिस्तान …
तेरा मेरा क्या अरमान ,पाकिस्तान पाकिस्तान...
गिलानी साहब का क्या पैगाम, कश्मीर बनेगा पाकिस्तान , 
हाफिज़ सईद का क्या पैगाम, कश्मीर बनेगा पाकिस्तान ... " 
श्रीनगर में बुधवार को देशद्रोही खुलकर सब सामने थे पर दिल्ली से लेकर श्रीनगर की सरकारें चुप हैं,,,
वहाँ हजारों लोग मिलकर नारे लगा रहे थे.... देश की संसद और तथाकथित राष्ट्रीय, क्षेत्रीय समाजसेवक राजनैतिक पार्टियों की आंख में जरा सा, बित्ते भर का शर्म का पानी बाकी बचा है ...???

मुफ़्ती सरकार ने देशद्रोही मसरत को मौत के घाट उतारने के वजाये उसे जेल से रिहा करने की जो गलती की थी, उसका परिणाम आज सबके सामने है ! जिस कानून का हवाला देकर नरपिशाच देशद्रोही मसरत आलम को रिहा किया गया था, वह कानून देश के सामान्य नागरिकों के लिये हो सकता है-उसी कानून को देशद्रोही नरपिशाचों पर लागू करना कितना अनुचित और मूर्खतापूर्ण है, यह एक बार फिर साबित हो गया है ! ऐसा भी नही है कि मसरत आलम अकेला देशद्रोही हो-विधान सभा चुनावों मे जिस तरह से कश्मीर घाटी मे शर्मनाक चुनाव परिणाम आये हैं,उससे यह बात एकदम साफ हो चुकी है कि कश्मीर मे रहने वाले सभी लोग देशद्रोही हैं और उनके लिये सिर्फ मौत का कानून होना चाहिये ताकि इन लोगों को बिना किसी अदालती कार्यवाही के मौत के घाट उतारा जा सके ! इस बात के विरोध मे मीडिया,विपक्ष या किसी मानवाधिकार संगठन की तरफ से कोई आवाज़ उठे तो उसका भी वही हश्र होना चाहिये जो एक देशद्रोही का होता है ! देश मे जो कानून बनाये गये हैं वे उन नागरिकों के लिये हैं जिनकी भारत के संविधान मे आस्था है और जो लोग अपराधी होने के वावजूद भारत के प्रति वफादार है-जो देशद्रोही नरपिशाच खुले आम पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा रहे है और पाकिस्तान झंडा लहरा लहराकर कह रहे है कि कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा होना चाहिये, उनका एक पल भी जिंदा रहना, भारत सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार के मुंह पर करारा तमाचा ही कहा जायेगा !

 मुफ़्तीऔर अब्दुल्ला जैसे लोगों को पाकिस्तान और देशद्रोहियों से कितना प्रेम है-यह किसी से छिपा नही है लेकिन मोदी सरकार ने अगर इन कश्मीरी देशद्रोहियों को तत्काल मौत के घाट नही उतारा तो दिल्ली की तरह भाजपा का बिहार और उत्तर प्रदेश मे भी सफाया होने के प़ूरे आसार नजर आ रहे हैं ! मोदी सरकार विकास के जितने मर्ज़ी वादे कर ले, लेकिन हकीकत यह है कि जब तक इन पाकिस्तानी देशद्रोहियों का हमेशा के लिये खात्मा नही किया जाता, विकास का लाभ आम जनता तक नही पहुंच सकेगा क्योंकि देश के अन्य भागों मे बैठे हुये देशभक्त लोगों से कर के नाम पर वसूली गयी मोटी रकम का एक बड़ा हिस्सा कश्मीरी देशद्रोहियों के ऊपर पिछले 67 सालों से लगातार खर्च किया जा रहा है जो खा हिन्दुस्तान का रहे हैं और जय जयकार पाकिस्तान की कर रहे हैं ! कश्मीर घाटी मे हालात इस तरह के बन चुके हैं कि मसरत और उसके जैसे लाखों देशद्रोही समर्थकों को तुरंत ही मौत के घाट उतारने की जरूरत है-कश्मीर की पुलिस से शायद यह काम नही हो सकेगा-इसलिये भारत सरकार को सेना की जिम्मेवारी तय करनी पड़ेगी कि कश्मीर मे लाखों की संख्या मे मौजूद देशद्रोहियों को आनन-फानन मे मौत के घाट उतारकर कश्मीर घाटी को इन देशद्रोही नरपिशाचों से मुक्त कराये -इस बात के विरोध मे जो भी नरपिशाची आवाजें उठें, उन्हे भी देशद्रोहियों की तर्ज़ पर ठंडा कर दिया जाये ! कुल मिलाकर इन देशद्रोहियों को ऐसी सज़ा दिये जाने की जरूरत है कि इनकी भयानक मौत को देखकर ना सिर्फ पाकिस्तान मे बैठे इनके आकाओं की, बल्कि हिन्दुस्तान मे बैठे इनके आकाओं की रूह भी कांप उठे ! इन लोगों को मौत के घाट उतारने मे अगर कोई कानूनी अडचन हो तो एक अध्यादेश लाकर इन लोगों के तुरंत खात्मे का प्रावधान किया जाना चाहिये ! अगर कश्मीर को देशद्रोहियों से पूरी तरह मुक्त करने के लिये ठोस कदम तुरंत नही उठाये गये तो भाजपा के राजनीतिक भविष्य पर सवालिया निशान लग सकते हैं और पार्टी को आने वाले बिहार और उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावों मे दिल्ली की तरह मुंह की खानी पड सकती है-2019 के लोकसभा चुनावों मे पार्टी कहाँ खड़ी होना चाहती है-इसका फैसला खुद भाजपा को करना है-जनता सही समय पर सही फैसला लेने मे पूरी तरह सक्षम है !

ऐसे जलीलों के कश्मीर और कश्मीरियत के विशेष दर्जे को कायम रखना, अलगाववादिता समेत अलगाववादियों को सरकारी दामाद बना कर Y एवं Z श्रेणियों की सुरक्षा तथा पंच सितारी सुविधाएं ,पेंशन देना तो हमारे व राष्ट्र के साथ व्यापक जनद्रोह , राष्ट्रद्रोह है ,, धारा 370 को संसद व राष्ट्रपति तुरंत सिर्फ समग्र भारत के राष्ट्रपति व भारत की जनता की संसद बन कर समाप्त करें ना कि तुष्टिकारक अपनी अपनी पार्टियों के सांसद बन कर बकैतियां ही करें। कठोर इच्छाशक्ति वाले मर्दों की तरह व्यवहार करना शुरू करे सांसद, सरकार व संसद ना कि लिजलिजे डरपोक और गैरजिम्मेदार टुकडैल की तरह ही बने रहें,, हमें व देश को कडी निंदा व कमेटी की नहीं बल्कि कमिटमेंट की ज्यादा जरूरत है।

भारत में हर अटके हुऐ, लंबित मामले जो समग्र राष्ट्रहित से ही जुडे हुऐ हैं उन सब में लॉलीपॉप राजनीति तुरंत बंद करनी होगी, बरसों हो गये इस लॉलीपॉप राजनीति को चलते अब वास्तविकता से सिर्फ नीति पर ही चल लें.. देश को 67 साल बाद अब तो बेवकूफ बनाना बंद करो, बेडरूमों के बाहर अब तो नेताई में ही मर्द बन ले ये राजनेते, कब तक छिछले खुसरों की तरह ही बोलते लजाते रहोगे...??

Source: कश्मीर ⇄ गद्दारों और अलगाववादियों की सरकारी सेवा का क्या कारण है ?

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