Monday 31 July 2017

चाणक्य नीति- इन तीन चीजों से बना कर रखें उचित दूरी Chanakya niti




चाणक्य की कई बातें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी हज़ारों साल पहले थीं। उन्ही में से एक है चौदहवें अध्याय में बतायी गयी ये बात –


ये अच्छा होगा यदि आप राजा, अग्नि और स्त्री से उचित दूरी बना कर रखें। और भी ध्यान रखें कि आप इनसे कुछ ज्यादा ही दूर न हो जाएं अन्यथा आप इनसे मिलने वाले लाभ से वंचित रह जायेंगे।
It will be good if you remain at a safe distance from the king, fire, and women. Also, don’t stay too far from them otherwise, you will get deprived of the rewards.
आइये इस बात को थोड़ी गहराई से समझते हैं और इसे आज के परिपेक्ष्य में fit करने की कोशिश करते हैं।

Chanakya Niti Interpretation in Hindi

पहले हम राजा, अग्नि और स्त्री का अर्थ समझते हैं:

Chanakya Niti Interpretation in Hindi
इन तीन चीजों से बना कर रखें उचित दूरी!
राजा का अर्थ है किसी बड़े पद का व्यक्ति, कोई ऐसा इंसान जिसके पास कुछ करने की authority हो, जैसे कि आपका manager या boss, कोई नेता, मंत्री etc.
अग्नि का आशय किसी risk से है, और स्त्री से मतलब है भोग-विलास या सुख-सुविधा भरी चीजों से।

तो पहला question ये है कि “राजा” से उचित दूरी क्यों बनायीं जाए?

इस बात को कई तरह से interpret किया जा सकता है, ध्यान रहे कि ये एक general interpretation है और सभी जगह सही बैठे ये ज़रूरी नहीं –
  • जो अथॉरिटी वाले व्यक्ति होते हैं उन्हें कहीं न कहीं अपने राज खुल जाने और सत्ता छिन जाने का डर रहता है। यदि आप उनके बहुत करीब हो जाते हैं तो obviously आप उनके बारे में कई ऐसी बातें जान जाते हैं जो यदि सभी लोग जान जाएं तो ये उनके लिए ठीक नहीं रहता। इसलिए बहुत बार ऐसे लोग अपने सबसे करीबी लोगों के लिए ही घातक हो जाते हैं। चाणक्य का ऐसे लोगों से दूर रहने की सलाह देने का ये एक बड़ा कारण हो सकता है।
  • इसके आलावा, अधिकार या सत्ता की position तक पहुँचते-पहुँचते कहीं न कहीं दुश्मन भी बढ़ जाते हैं और अगर आप ऐसे किसी व्यक्ति के बहुत करीब हैं तो आपको भी नुक्सान पहुँच सकता है।
  • ऐसे लोगों का बहुत करीबी होने पर आपके ऊपर बेकार के काम का बोझ भी पड़ सकता है। शायद आपने ऑफिस में देखा होगा कि जो बॉस की बहुत जी हजुरी करता है उसे उनके बहुत से पर्सनल काम भी करने पड़ते हैं। और फिर वे अपने बच्चों, अपने परिवार को सही समय नही दे पाते।
यानि कुल मिला जुलाकर चाणक्य नीति पे चलें तो हमें ऐसे लोगों से मधुर सम्बन्ध बना कर रखने चाहिएं क्योंकि समय पर ये लोग हमारे बहुत काम आ सकते हैं पर इनसे बहुत अधिक घनिष्टता नहीं बनानी चाहिए नहीं तो वो हमें लाभ से कही अधिक हानि पहुंचा सकते हैं।

अब आते हैं दूसरी बात पर- अग्नि यानि risk या खतरे से उचित दूरी क्यों बनायीं जाए?

यहाँ, ये बात ध्यान देने कि है कि चाणक्य एकदम से रिस्क लेने से मना नहीं कर रहे, बस वो बेकार का रिस्क या अत्यधिक जोखिम ना उठाने की सलाह दे रहे हैं। क्योंकि ऐसा करके आप अपना जीवन या अपनी पूरी जमां पूजी खतरे में डाल सकते हैं।
अगर आज कल की बात करें तो हमे कई ऐसे लोग मिल जायेंगे जो अपनी सारी सेविंग्स शेयर बाज़ार या जुएँ में गँवा बैठते हैं। हमें calculated risk ज़रूर लेने चाहिएं पर उसकी सीमा और उसके impact को समझना चाहिए और बिना किसी लॉजिक के बहुत बड़ा रिस्क नहीं उठाना चाहिए।
For example: Business start करना एक रिस्क है पर हम इसे किस तरह स्टार्ट करते करते हैं बताता है कि ये कितना बड़ा रिस्क है। यदि आप एक ही बार इधर-उधर से पैसा जुटा कर बिना किसी experience के बहुत बड़ा बिजनेस शुरू करते हैं तो ये बहुत जोखिम भरा काम है और चाणक्य इसकी इजाज़त नहीं देंगे, लेकिन आप अपने पैसे बचा कर, अनभव लेकर कोई काम शुरू करते हैं तो निश्चित ही चाणक्य से इसकी अनुमति मिल जायेगी।

तीसरी और आखिरी बात – “स्त्री” यानि भोग विलास और अत्यधिक सुख सुविधा से दूरी क्यों बनाएं?

“स्त्री” को भोग-विलास की वस्तु से compare करना offending लगता है, पर यहाँ हमें चाणक्य के समय को ध्यान में रखना चाहिए, जब सचमुच स्त्रियों की स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी और उन्हें इस तरह से भी देखा जाता था। खैर, अगर हम आज-कल की बात करें तो बहुत से लोग चादर से अधिक पैर फैला कर जीते हैं, वे एक luxurious life की चाह में अपनी कमाई से अधिक खर्च करने की आदत डाल लेते हैं। Credit Card से शौपिंग करना, EMI पे चीजें खरीदना उनकी ज़रूरत बन जाती है।

चाणक्य सलाह देते हैं कि हमें ज़रूरत भर की सुख-सुविधाओं में जीना चाहिए, बेकार का दिखावा and just to keep up with the Joneses* फ़ालतू के खर्चे नहीं करना चाहिए। Again, इस बात को समझना भी ज़रूरी है कि ये एक balanced approach होना चाहिए, ये नहीं कि आप ऐसा करने में कंजूसी की हदें पार कर दें। सुख-सुविधा की चीजें भी ज़रूरी हैं बस उनकी अति नहीं करनी चाहिए!

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