मधुकुंवर नामक व्यक्ति राजा समुद्रदत्त के यहाँ नौकरी किया करते था, उसका परिवार बहुत सुखी था और जितना मिलता सब संतोष से रहा करते थे.
एक दिन जब वह जंगल से गुजरकर घर जा रहा था तब मधुकुंवर को आवाज आई- क्या तुम सात घड़ा सोना
लोगे. इतना सुनते ही मधुकुंवर के मन में लोभ ने जन्म ले लिया और उसने बिना सोचे-विचारे हाँ कह दिया. मधुकुंवर जब घर पहुंचा तो उसने सातों घडों को अपनी नजरों के सामने पाया और यह देखकर वह विस्मित हो उठा. उन सात घडों में से छः घड़े सोने से भरे हुए थे, पर एक आधा खाली था. बस, अब क्या होना था, लोभ-लालच ने मधुकुंवर के संतोष का हरण कर लिया. उसके दिन की शांति और रातों की नींद, उस आधे घड़े को भरने में जाने लगी. वह हर समय परेशान रहता, बेचैन-सा रहता कि कैसे भी करके उस आधे घड़े को भर लूँ.
राजा ने उसकी हालत देखी और उससे प्रश्न किया:-“ क्यों मधुकुंवर! कहीं तुम्हें यक्ष के सात घड़े तो नहीं मिल गए?” मधुकुंवर बोला- “जी महाराज! वो सातों घड़े मुझे मिले हैं लेकिन उसमे से एक घड़ा आधा खाली है!”
महाराज हँसते हुए बोले-“ अरे! वो घड़े देने नहीं बल्कि लेने के लिए आते हैं. उन्होंने तुम्हारा सभी धन ले लिया” मधुकुंवर बोला- “लेकिन, महाराज मेरे पास कौन-सा धन था?”
राजा ने कहा-“मित्र! संतोष का धन.. जिसके पास संतोष है, वही सुखी है और जब से तुमने उसे गँवा दिया, तब से साढ़े छः घड़े भी तुम्हें सुखी नहीं रख पा रहे हैं.. संतोष ही वह अनमोल रत्न है जिसके माध्यम से सुखों की अपार सम्पदा अर्जित की जा सकती है.”
मधुकुंवर राजा की सारी बात समझ गया और उसने ठान लिया कि अब वह कभी लालच नहीं करेगा और अपने संतोष रुपी अमूल्य धन को हमेशा संभालकर रखेगा..
मित्रों, संतोष ही वह अमूल्य धन है जिसको प्राप्त करके आप हमेशा सुख की अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं लेकिन जिस दिन आपने चंद घडों की लालच में आकर इसे त्याग दिया उस दिन आपके सुख की अनुभूति क्षणिक रह जायेगी.. इसलिए इस अमूल्य धन को लालच के नीचे आने मत दीजियेगा…
धन्यवाद!
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