योग क्या है:-
योग शब्द ‘यूज’ धातु से बना है जिसका अर्थ होता है जोड़ना. जीवात्मा का परमात्मा से मिल जाना, एक हो जाना ही योग है.
योगाचार्य महर्षि पतंजलि ने सम्पूर्ण योग के रहस्य को अपने योगदर्शन में सूत्रों के रूप में उपदेश किया है.
योगासन हेतु कुछ सामान्य सावधानियां:-
- योगासन करने के पूर्व शौच, स्नान आदि से निवृत्त हो जाएँ.
- प्रातः काल योगासन करना बहुत ही लाभकारक है.
- योगासन करने के तुरंत पश्चात् ही स्नान नहीं करना चाहिए. पसीने को पंखें से न सुखाएं, शरीर का ताप सामान्य होने पर ही स्नान करना चाहिए.
- योगासन के आधा घंटा पश्चात् दूध, दलिया, फल या अंकुरित अनाज थोड़ी मात्रा में अवश्य ही लेना चाहिए.
- आसन एकांत, धुल मिट्टी एवं धुआं रहित स्थान पर किया जाना चाहिए. घर की छत, कोई पार्क, नदी/तालाब किनारे अथवा ऐसे खुले स्थान पर योग का अभ्यास किया जाना चाहिए जहाँ शुद्ध हवा आती जाती हो. अधिक ठण्ड में योगासन खुले कमरे में करना चाहिए.
- आसन करते समय शरीर पर वस्त्र कम से कम और ढीले होने चाहिए.
- समतल भूमि पर गरम कम्बल या मोटी दरी बिछाकर ही कोई आसन करें. खुली भूमि पर बिना कुछ बिछाकर आसान कभी न करें जिससे शरीर में निर्मित होने वाला विद्दुत प्रवाह नष्ट न हो जाए.
- श्वास हमेशा मुँह से न लेकर नाक से ही लेना चाहिए.
- आसन करते समय शरीर के साथ कोई भी जबरदस्ती न करें, धैर्यपूर्वक ही आसन करें.
- आसन के पूर्व थोड़ा ताजा जल पीना लाभदायक होता है. संधि स्थानों का मल निकालने में जल बहुत सहायक होता है.
- आसन की स्थिति में श्वासप्रश्वास का विशेष ध्यान रखें.
- आसन करते समय शरीर में जिस स्थान पर खिंचाव पड़ रहा हो, किसी भी प्रकार का कष्ट होने लगे या पीड़ा का अनुभव हो तो उस अभ्यास को तुरंत बंद कर देना चाहिए.
- आसन जितने समय तक सरलता से कर सकें उतने समय तक ही करें.
- आसन नियमित तथा एकाग्रचित होकर प्रसन्न मुद्रा में करना चाहिए.
- आसन में प्रतिस्पर्धा नहीं करना चाहिए.
- भोजन के चार घंटे बाद ही कोई आसन किया जा सकता है.
अष्टांग योग
योग के द्वारा विभिन्न दशाओं को पार करता हुआ व्यक्ति मन और आत्मशक्ति का विकास करता हुआ आत्मज्ञान को प्राप्त होता है.
हमारे ऋषि-मुनियों ने योग के द्वारा शरीर मन और प्राण की शुद्धि तथा परमात्मा की प्राप्ति के लिए आठ प्रकार के साधन बतलायें हैं, जो कि इस प्रकार हैं:-
- यम
- नियम
- आसन
- प्राणायाम
- प्रात्याहर
- धारणा
- ध्यान
- समाधि
- यम:- सामजिक व्यव्हार में आने वाले नियमों को यम कहते हैं, जैसे किसी को न सताना, यातना न देना, लोभ लालच न करना, चोरी डकैती न करना अर्थात कोई ऐसा कार्य न करना जिससे मानव समाज के किसी भी अंग का अहित होता हो.
- नियम:- इसका सम्बन्ध आपके अपने चरित्र से होता है. व्यक्तिगत चरित्र स्वच्छ और उत्तम होना चाहिए जब आपका अपना चरित्र ठीक होगा तो आप समाज के एक श्रेष्ठ अंग बन जायेंगे. श्रेष्ठ समाज उत्तम व्यक्तियों से ही मिलकर बनता है.
- आसन:- शरीर के विभिन्न अंगों के विकास के लिए जो यौगिक क्रियाएँ की जाती हैं उन्हें आसन कहा जाता है.
- प्राणायाम:- प्राण विज्ञान विषय बहुत ही व्यापक विषय है परन्तु इसके अनेक अंगों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:-
प्राण+आयाम अर्थात प्राणों का आयाम
® प्राण वायु को संतुलित रूप से लेना.
® नियमित रूप से गहरी और लंबी सांस लेना.
® प्राण पर सदैव अपना ध्यान रखना.
- प्रत्याहार:- किसी भी वस्तु में लिप्त न होना. ‘जल में जैसे कमल रहता है जग में वैसे रहना’ कमल जल में रहता है पर वह गीला नहीं होता उसी प्रकार रहना. संसार में आसक्ति अनासक्तभाव से रहना प्रत्याहार है.
- धारणा:- अपने मन को एकाग्र करना या एकाग्रचित होना ही धारणा है यह बहुत बड़ी बात है और जीवन में सफलता की कुंजी है.
- ध्यान:- प्रभु का चिंतन करना और उसके स्मरण में चित्त को लगाना ध्यान कहलाता है.
- समाधि:- समाधि लग जाने पर मनुष्य के अंतर में स्वतः ही प्रकाश दिखने लगता है.
आप सब भी योग को जीवन में उतारें, और स्वस्थ, खुशहाली भरा जीवन पायें!
धन्यवाद!
Source: https://www.hamarisafalta.com/2015/06/international-yoga-day-in-hindi.html
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