एक कप चाय, मौसम के अनुरूप गर्म या ठंडा कमरा, आरामदेह बिस्तर और कानों में धीमा संगीत। क्या इससे बेहतर जिन्दगी हो सकती है। यकीनन आप का उत्तर होगा, “नहीं”।
अब एक मिनट ठहरिये और सोचिये… अगर हेमशा ऐसा ही रहे तो क्या इससे बद्तर जिंदगी हो सकती है। यकीनन इस बार भी आप का उत्तर होगा, “नहीं” । थोड़ी देर के लिए तो यह सब अच्छा लगता है। पर अगर ऐसे ही रहना पड़े तो यह बहुत दर्दनाक है। क्यों है ना ? हाँ, क्योंकि इस जिंदगी में कोई विकास नहीं है, कोई संभावना नहीं है, कोई ऐडवेंचर नहीं है।
याद है जब हम लोग बचपन में अपने मम्मी – पापा की अँगुली पकड़ कर मेला देखने जाते थे तो रोलर कोस्टर में चढने में बहुत मजा आता था। कभी ऊपर, बहुत ऊपर तो कभी नीचे बहुत नीचे। वो मजा जमीन पर एकसमान चलने में कहाँ। पर बड़े होते ही हम अपने को कटघरे में बंद करना शुरू कर देते हैं-
याद है जब हम लोग बचपन में अपने मम्मी – पापा की अँगुली पकड़ कर मेला देखने जाते थे तो रोलर कोस्टर में चढने में बहुत मजा आता था। कभी ऊपर, बहुत ऊपर तो कभी नीचे बहुत नीचे। वो मजा जमीन पर एकसमान चलने में कहाँ। पर बड़े होते ही हम अपने को कटघरे में बंद करना शुरू कर देते हैं-
हमसे ये नहीं हो सकता, हमसे वो नहीं हो सकता। फिर मोनोटोनस जिन्दगी से ऊब कर खामखाँ में ईश्वर को दोष देते रहते हैं। उसने पड़ोसी को सब कुछ दिया है पर हमारे भाग्य में… ?
आपने ये कहावत सुनी होगी, “ऊपर वाला जब भी देता है छप्पर फाड़ कर देता है। ” लेकिन जरा सोचिये कि अगर आप का छप्पर ही छोटा हो तो बेचारे ईश्वर भी क्या कर पायेंगे। यहाँ छप्पर से मेरा तात्पर्य झोपड़ी या महल की छत से नहीं है बल्कि सोच से है। कहने का तात्पर्य यह है कि अगर आप छोटा सोचते हैं या किसी भी बदलाव से इंकार करते हैं तो आप जीवन में तरक्की नहीं कर पायेंगे।
कहा भी गया है कि “change is the only constant.. केवल परिवर्तन ही अपरिवर्तनशील है “।
फिर भी कई लोग बातें तो बड़ी -बड़ी करेंगें पर अपने जीवन में परिवर्तन जरा सा भी स्वीकार नहीं करेंगे। ऐसे लोग नयी परिस्तिथियों को स्वीकार न कर पाने की वजह से आने वाले हर मौके को गँवा देते हैं। फिर निराशा और अवसाद से घिर जाते हैं। कभी सोचा है, क्यों होता हैं ऐसा ? इसके पीछे बस एक ही कारण है उनका कम्फर्ट जोन।
क्या है ये कम्फर्ट जोन?
किसी भी इंसान का बदलाव को अस्वीकार करने का सीधा सा अर्थ है कि वो बने –बनाये ढर्रे में चलना चाहता है जिसे हम सामान्यत : कम्फर्ट जोन कहते हैं। हम इसमें जीने की इतनी आदत डाल लेते हैं कि उसके इतर कुछ सोचते ही नहीं। ये कम्फर्ट जोन, सीमित सोच का एक छोटा सा दायरा है जिसे हमने अपने चारों और खींचा हुआ है। इतने संकरे दायरे से हमारा यह लगाव, हमारे संकल्पों में डर की मिलावट कर देता है। हम इस दायरे से बाहर कुछ भी स्वीकार करने से डरते हैं।
वास्तव में देखा जाए तो कम्फर्ट जोन एक ख़ास मानसिक अवस्था है।हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इसमें इतनी बुरी तरह से जकड़े हुए होते हैं कि जब हम इसके अंदर रहते हैं तो हमें किसी एक्साइटमेंट का गहरा अनुभव नहीं होता ….न उत्साह, न जोश, न् जूनून, न ही प्रेम,न ही लगाव,न ही डर, न घबराहट,न दुःख, न सुख। सब कुछ यंत्रवत।
सुबह उठे ब्रश किया,नाश्ता किया ऑफिस गए,रुटीनल काम किया, घर आये खाना खाते हुए टी.वी देखा और सो गए। या यूं कहे जिंदगी एक ढर्रे में कटती है। इसलिए स्ट्रेस लेवल बहुत कम रहता है। क्योंकि जब भी हम कुछ नया सोचते हैं करना चाहते हैं या किसी उपरोक्त भावों में से किसी भाव को गहराई से फील करते हैं तो हमारा स्ट्रेस लेवल बढ़ जाता है।
कैसे बनती है ये कम्फर्ट जोन?
एक नन्हा सा बच्चा हमेशा कुछ नया करना चाहता है, हर काम अलग –अलग तरीके से करना चाहता है। तुरंत, माता –पिता टोकते हैं नहीं ऐसे नहीं करते। स्कूल जाता हैं टीचर टोकती हैं नहीं ऐसे नहीं करते। बड़े भाई-बहन बताते है उसकी क्या बात सही है क्या गलत है, यह सिलसिला पूरी जिंदगी चलता रहता है। बच्चा वही करने लगता है जो दूसरे कहते हैं क्योंकि उसके अन्दर से डर जाता है कि अगर वो, वो सब नहीं करेगा जो कहा जा रहा है तो समाज में सबसे अलग –थलग, अटपटा सा लगेगा, लोग उसका नकारात्मक मूल्याङ्कन करेंगे। उसे समा द्वारा अस्वीकार किये जाने का भय बैठ जाता है।
कभी –कभी पेरेंट्स और टीचर्स अपनी बात मनवाने के लिए बच्चे को मार कर, सजा देकर उस पर दवाब डालते हैं। धीरे –धीरे बच्चा सोसाइटी के बनाये हुए कानून पर चलने लगता है। कुछ हद तक यह सही भी है कि इस तरह वो एक समाज द्वारा स्वीकृत नागरिक बन जाता है। पर वही बच्चा बड़ा होकर समाज द्वारा अस्वीकृत होने के भय से कुछ भी नया करने से डरता है।
पापा ने कहा है डॉक्टर बनना है…. सो बनना है। भले ही मन आर्टिस्ट बनने का कर रहा हो। शादी मम्मी की पसंद से करनी है।भले ही अपने द्वारा पसंद की गयी लड़की/ लड़के को सारी उम्र के लिए भूलना पड़े।
पापा ने कहा है डॉक्टर बनना है…. सो बनना है। भले ही मन आर्टिस्ट बनने का कर रहा हो। शादी मम्मी की पसंद से करनी है।भले ही अपने द्वारा पसंद की गयी लड़की/ लड़के को सारी उम्र के लिए भूलना पड़े।
बड़ी बेरहमी से दबा दी जाती है भावनाएं कुछ नया या अपनी इच्छा से कुछ करने की क्योंकि लोग क्या कहेंगे का भय मन पर हावी रहता है।
क्यों तोडें कम्फर्ट जोन?
क्योंकि तभी आप अपने असली मूल्य का पता लगा सकते हैं… क्योंकि तभी आप अपने अन्दर छिपी आपार सम्भावनाओं को पहचान सकते हैं। जरा सोचिये अगर एक नदी अपने आराम के लिए सिर्फ सीधी रेखा में चलती तो क्या वो कभी सागर तक पहुँच पाती? नहीं, इसीलिए वो जहाँ काट पाए पत्थर को काट देती है,जहाँ पत्थर नहीं कट सका वहाँ धारा की दिशा बदल देती है, कहीं जरूरत समझी तो थोड़ा सा उलटी दिशा में बह कर अनुकूल स्थान देख कर वापस सही दिशा ले लेती है। नदी हमें सीखाती है अपने कम्फर्ट जोन को तोड़कर हर परिस्तिथि में हर तरीके से आगे बढ़ना… अपने लक्ष्य तक पहुंचना।
कम्फर्ट जोन तोड़ने के फायदे
- आप के काम की क्षमता बढ़ जाती है।
- जीवन में जब कुछ अचानक से नया घट जाता है तो आप उस के साथ आप आसानी से अनुकूलन बिठा लेते हैं।
- अगर आप भविष्य में कुछ नया करना चाहते हैं तो आसानी से कर सकते हैं।
- आप अपनी रचनात्मकता को आसानी से बढ़ा सकते है।
- सबसे ख़ास बात, आप जिंदगी काटते नहीं जीते हैं।
क्यों मुश्किल है कम्फर्ट ज़ोन तोडना : एक महत्वपूर्ण प्रयोग
कम्फर्ट जोन को लेकर एक बड़ा ही प्रसिद्द प्रयोग हुआ। उसमें पाया गया कि जब हम कम्फर्ट जोन में रहते हुए काम करते हैं तो हमारे तनाव का लेवल सामान्य रहता है। इसे मिनिमम एंग्जायटी लेवल भी कह सकते हैं। इसमें हम आराम से जीते हैं। अगर हम इससे बाहर निकलने के लिए स्ट्रेस का लेवल थोड़ा बढ़ा ले तो हमारी परफोर्मेंस में सुधार आता है। यह स्थान हमारे कम्फर्ट जोन के जस्ट बाहर होता है जिसे मैक्सिमम एंग्जायटी लेवल कहते हैं। यानी इतने स्ट्रेस को हमारा शरीर आसानी से बर्दाश्त कर सकता है। इसमें हमारी बेस्ट परफोरमेंस रहती है। इसके बाद अगर स्ट्रेस लेवल बढती है तो परफोर्मेंस कम होती जाती है। एक लेवल के बाद एंग्जायटी बढ़ने पर परफोर्मेंस जीरो हो जाती है।यहां समझने की बात ये है कि हर मनुष्य स्वभावतः जीरो स्ट्रेस लेवल में रहना चाहता है।
अगर आप स्ट्रेस लेवल थोड़ा बढ़ाएंगे तो परफोर्मेंस सुधरेगी व् परिणाम सकारात्मक आयेंगे। लेकिन अगर आप अचानक से स्ट्रेस लेवल ज्यादा बढ़ा देंगे तो परिणाम नकारात्मक आयेंगे। ज्यादातर लोगों के साथ यह होता है कि वो बहुत ऊँचे लक्ष्य बना कर एक साथ अपनी सारी ताकत झोक देते हैं पर इतना स्ट्रेस झेल नहीं पते हैं। फिर वो काम आधा ही छोड़ कर वापस कम्फर्ट जोन में आ जाते हैं। इसीलिए कम्फर्ट जोन तोड़ना बहुत मुश्किल होता है।
कैसे तोड़े कम्फर्ट जोन?
ऊपर के प्रयोग से स्पष्ट है कि अगर आपने जिंदगी को एक ख़ास तरीके से जीने की बहुत गंभीर आदत बना ली है तो इसका सीधा सादा अर्थ हुआ कि आप अपनी कम्फर्ट जोन में कैद हो गए हैं।अगर भाग्य ने करवट बदली और अचानक से आप को जिंदगी में कुछ नया कुछ बेहतर करने का अवसर मिला तो आप कर नहीं पायेंगे। आप का एंग्जायटी लेवल इतना बढ़ जाएगा कि आप स्ट्रेस बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे और वापस अपने कम्फर्ट जोन में आ जायेंगे।
ऐसे उदाहरण आपने देखे होंगे कि कई बार दूसरे शहर में नौकरी मिलने पर घर में पूरी तरह आराम से रहे बच्चे नौकरी छोड़ कर वापस आ जाते हैं, या मायके में नाजो पाली गयी लड़कियाँ ससुराल में काम का प्रेशर बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं। जीवन से अनुकूलन करने के लिए जरूरी
है आप अपनी कम्फर्ट जोन को एक्सटेंड करते रहें । कुछ तरीके हैं जिससे आप आसानी से अपनी कम्फर्ट जोन से बाहर आ सकते हैं। आइये देखते हैं इन्हें:
बढाएं छोटे –छोटे कदम:
है आप अपनी कम्फर्ट जोन को एक्सटेंड करते रहें । कुछ तरीके हैं जिससे आप आसानी से अपनी कम्फर्ट जोन से बाहर आ सकते हैं। आइये देखते हैं इन्हें:
बढाएं छोटे –छोटे कदम:
जरूरत है बड़े काम को छोटे –छोटे टुकड़ों में बाँट कर धीरे –धीरे स्ट्रेस लेवल बढ़ाते हुए आगे बढ़ा जाए। इससे आप की कम्फर्ट जोन एक्सटेंड होती रहेगी। जैसे कि अगर आप को लोगो से बात करने में झिझक होती है तो पहली बार सिर्फ मिलने पर सिर्फ स्माइल के साथ हेलो कहे,अगली बार एक, दो लाइन की बात करे। कम्फर्ट जोन से बाहर आने के लिए जरूरी है आप अपने डर पहचाने और उन्हें दूर करने की दिशा में रोज़ एक –एक स्टेप बढ़ते जाए।
कभी-कभी चीजों को अलग ढंग से करें:
आप रोजाना के अपने कामों को अलग ढंग से करे। कई लोगो को अपनी तकिया की ही इतनी आदत हो जाती है कि उसके बिना उन्हें नींद नहीं आती है। इसलिए कभी–कभी दूसरे कमरे मे सोएं। अलग रास्ते से ऑफिस जाएं। उस दुकान से खरीदारी करिए जिससे आज तक नहीं की। एक हफ्ते कोई ख़ास चीज न खाने का प्रण कीजिये या कोई चीज अलग ढंग से बनाइये। धीरे–धीरे आप पाएंगे कि आप नयी परिस्तिथियों को अपनाने में ज्यादा दिक्कत महसूस नहीं करेंगे।
दो मिनट में निर्णय का नियम:
अगर आप परिस्तिथियों का बहुत देर तक आंकलन कर के निर्णय लेते हैं तो बहुधा आप निर्णय नहीं ले पाते। आपकी कम्फर्ट जोन आप को अनिर्णय की स्तिथि में छोड़ देती है और आप सफलता की दौड़ में पीछे रह जाते हैं। आज कौन सी सब्जी बनेगी… दो मिनट में सोचिये। दो शर्ट्स में से कौन सी ले दो मिनट में फैसला, कौन से नए रास्ते से जाए दो मिनट में निर्णय लीजिये। इससे आप 2 मिनट के अंदर सारी परिस्तिथि का आंकलन करेंगे और आपका दिमाग तेज –तेज चलेगा।
नयी–नयी जगहों का देखने जाइए:
पराया शहर,पराया देश पराये लोग जब आप किसी दूसरे शहर में घूमने जाते हैं तो आप को कई अनुकूलन करने पड़ते हैं जैसे मौसम से,आबोहवा से,खाने –पीने से। जब आप बार –बार दूसरे शहरों में जाते है तो आप की कम्फर्ट जोन पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी होती है ऊपर से लौट कर आने पर आप ढेर सारे अनुभव ले कर आते हैं। यानी एक के साथ एक फ्री। है न मजेदार।
सीखिए कुछ नया:
दुनियाँ में इतना ज्ञान है, अगर रोज़ आप ऑफिस या घर के उन्ही –उन्ही कामों में सर खपाए रहेंगे तो कम्फर्ट जोन में कैद हो जायेंगे। कुछ नया सीखिए। नए विषयों की किताबें पढ़िए, नयी भाषा सीखिए, कार चलाना, फोटो ग्राफी कुछ भी पर हमेशा कुछ नया सीखते रहिये।फिर देखिये आपकी मोनोटोनस जिन्दगी का ट्रैक कैसे बदलता है।
दोस्तों, दुनिया के जाने-माने पर्सनल डेवलपमेंट गुरु ब्रायन ट्रेसी ने कहा है –
तो क्या आप अपने कम्फर्ट जों की जंजीरें तोड़ने को तैयार हैं? क्या आप ग्रो करने और अपना पोटेंशियल रियलाइज़ करने के लिए रेडी हैं… तो क्यों न ये तोड़ – फोड़ आज ही से शुरू हो जाए!
धन्यवाद,
Source: http://www.achhikhabar.com/2017/07/23/comfort-zone-in-hindi/
Source: http://www.achhikhabar.com/2017/07/23/comfort-zone-in-hindi/
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