Saturday 8 July 2017

पापा, आपसे बेहतर थे इश्क, नशा और सेक्स


an open letter from a spoiled girl to her father



हम जो आज आपको पढ़ाने जा रहे हैं, ये एक ख़त है. जो हमें हमारी एक रीडर ने भेजा है. ये ख़त उसने अपने पापा को लिखा है. जिसमें कई ऐसी बातें लिखी हैं ,जो वो आज तक उनके मुंह पर कभी उनसे नहीं कह पाई. हो सकता है ये ख़त उसके पापा तक पहुंचे, और वो अपनी बेटी को समझ पाएं. या फिर ये ख़त कभी उन तक न पहुंचे. पर इसे हर मां-बाप को पढ़ना चाहिए. और उन सबको भी, जो भविष्य में कभी मां-बाप बनना चाहते हैं. हमारी रीडर का नाम न बताना ही हमने ठीक समझा है. अगर आप उन्हें कोई संदेश देना चाहते हैं, तो कमेंट बॉक्स में लिखें. अगर पर्सनल संदेश है तो thelallantoppp@gmail.com पर मेल करें. हमारी राइटर प्रतीक्षा उन तक आपके संदेश पहुंचा देंगी.

पापा,
समझ में नहीं आ रहा कि पहले माफ़ी मांगूं या पहले अपनी बात कहूं. पता नहीं, आप माफ़ करेंगे भी या नहीं. लेकिन बताना जरूरी है. बस ये ही उम्मीद है कि बहुत देर न कर दिया हो हमने.
पापा, हमें सिविल्स नहीं करना. हमें पता है, आपको हमसे बहुत पहले से यही उम्मीद रही है कि हम सिविल्स देंगे. IPS क्लियर करेंगे. आप सबको बताके रखे हो. हमें दिल्ली भेजने के पीछे भी यही वजह थी. हम इंग्लिश का एंट्रेंस क्लियर करने के बाद भी सोशियॉलजी पढ़े, जिसे इंग्लिश से इन्फीरियर मानते थे आप. बल्कि हमारे वहां सब यही मानते थे. जैसे साइंस के सामने आर्ट्स को माना जाता है. आप हमेशा सारे चॉइस में हमारा साथ दिए, जहां-जहां सोसाइटी की नज़र में हमने बेस्ट का ऑप्शन रहते भी सेकंड बेस्ट चुना. हमने हमेशा इसलिए उन ऑप्शन्स को चुना क्योंकि वो हमें हमारे लिए बेस्ट लगे.
आपने हमेशा बेस्ट पैरेंट बनना चाहा. आपने हमें बार-बार बस यही बोला कि आपका सर नहीं झुकना चाहिए कभी हमारी वजह से. हमपे आपने मेहनत भी खूब की. बचपन से खुद पढ़ाया. दोस्तों के साथ वक़्त बिताना छोड़ दिया. जहां-जहां पैसे बचा सकते थे, बचाए. खुद के लिए चीज़ें खरीदना छोड़ दिए, मम्मी कुछ लेकर आती थीं आपके लिए, तो डांट देते थे आप. फालतू खर्च बोलकर. हमने कोशिश भी हमेशा यही की है कि आपका सर ऊंचा रहे.
घर छोड़ने के बाद, पहली बार हमारा रिजल्ट ख़राब हुआ था. 11th के थर्ड टर्म एग्जाम में. इंग्लिश लिटरेचर में. जब आप रिजल्ट लेने आये थे, तो आप बहुत ज़्यादा उदास हो गए थे. हमने कभी हमें लेकर किसी को उदास होते नहीं देखा था.
आपने हमें ये कहा था कि हम ‘सोफेस्टिकेटेड प्रॉस्टिट्यूट’ बन गए हैं. हम 17 साल के हुए ही थे बस. हमें पता नहीं था कि इसका मतलब क्या होता है. बस ‘प्रॉस्टिट्यूट’ को हम एक घिनौनी गाली ही समझते थे. अगर वो बात आप आज बोलते, तो हम उस शब्द को ओढ़ लेते. क्योंकि सारे सेकेंड बेस्ट सब्जेक्ट्स ने हमें इतना सिखा दिया कि ‘प्रॉस्टिट्यूट’ गाली तो बिलकुल भी नहीं है. खैर, छोड़िए. हम आपको क्या बताएं, आपने कभी सेकंड बेस्ट वाले सब्जेक्ट पढ़े ही नहीं हैं.
आपने एक बार भी हमें बगल में बैठाकर ये नहीं पूछा, कि बेटे कोई दिक्कत है क्या. हमें इतना बुरा कभी नहीं लगा था. हम आपको बताना चाह रहे थे कि स्कूल में हमें हर दिन बुली किया जा रहा था. क्योंकि हमारी स्पोकन इंग्लिश अच्छी नहीं थी. हम वर्नाकुलर मीडियम से पढ़े हुए थे 10वीं तक. किसी ने फैला दिया था कि हमारे बालों में जुएं हैं. कोई पास भी नहीं बैठता था. ऊपर से आपके जो दोस्त मेरे लोकल गार्डियन थे, वो हमें अब्यूज कर रहे थे. अब्यूज हमें बचपन से ही किया गया है. घर पर कुछ रिलेटिव्स आते थे, उनके हाथों. पर कभी किसी ने पास बिठाकर नहीं पूछा. आप समझते थे हम बहुत स्ट्रॉन्ग हैं. इसीलिए सबसे लड़कर हमें बाहर भेजा. हम कमजोर नहीं लगना चाहते थे. इसलिए कभी खुद से कुछ नहीं बताया.
फिर हमने नशा करना शुरू कर दिया. लोग भी मिल गए, पैसे भी नहीं लगते थे. हम आपसे झूठ बोलने लग गए. शुरू-शुरू में गिल्ट महसूस होता था. फिर आदत हो गयी. फिर ज़रूरत. झूठ ने हमें आज़ादी का एहसास दिलाया. हम रात को दोस्त के घर रुक सकते थे. फ़ोन पे बात करते-करते सिगरेट के कश ले सकते थे. और आपको पता नहीं चलता था कुछ भी. हमें शांति भी मिल रही थी. और ख़ुशी भी. किस्से-कहानियां लिखने लगे. हम नशा करते रहे, सब अच्छा होता गया.


symbolic image

बस शरीर बर्बाद हो गया. हम ज़रा सा भी स्ट्रेस झेल नहीं पाते थे. हमें कुछ न कुछ चाहिए होता था. नहीं मिलता था, तो बहुत तकलीफ होती थी.
फिर हम सोशियॉलजी लेकर दिल्ली आ गए. आपने भर्ती करवा दिया अपर्णा हॉस्टल में. जो नरक जैसा था. और रोक-टोक के मामले में सबसे ऊपर. पुरुषवादी सोच को ऐसे ‘इन एक्शन’ हमने पहली बार देखा. हम इस हॉस्टल की महिलाओं के बीच हमेशा ख़राब ही माने गए. बिगड़ैल, नशा करने वाली, कइयों के साथ सोने वाली (किसी के साथ सोने के पहले से ही). चौथे सेमेस्टर के अंत में हमारी पॉकेट से सिगरेट गिर गया सोफे पे. हमारी चेकिंग हुई, तो कॉन्डम का पैकेट मिला. और हमें निकाल दिया गया.
हम आपसे दूर ही खुश थे. हम इसीलिए घर भी नहीं आना चाहते थे. भाई और मम्मी की याद आती थी. थोड़ा रो लेते थे. घटिया खाना खा लेते थे. पर घर जाने से हमें डर लगता था. कि आपसे बात करनी पड़ेगी. आप कुछ सवाल पूछेंगे, और मेरा जवाब आपको पसंद नहीं होगा. और आप फिर मुझे कुछ बुरा बोल देंगे. हम और दूर हो जाएंगे आपसे. हमें आपको करीब रखने का मन था, जितना हो सके उतना. हर बार ये सुनना अच्छा नहीं लगता था कि कितनी ख़राब बेटी हूं मैं.
मैं इस दौरान मिरांडा हाउस से फर्स्ट क्लास लेकर अपना ग्रेजुएशन ख़त्म करने वाली थी. Women’s Development Cell के साथ काम कर रही थी. इस साल वाइस प्रेजिडेंट रही थी. मैं कुछ-कुछ पोर्टल्स पर औरतों के मुद्दों पर लिख रही थी. लोग जानते थे मुझे DU में. प्रोफेसर्सपसंद करते थे.
जब-जब मैं टीवी या न्यूज़पेपर में आयी, तब-तब आपको अच्छी लगी. बाकी टाइम आपने इन्हीं चीज़ों पर मेरी पढ़ाई ख़राब करने का इल्जाम लगा दिया. आपको सोशल वर्कर बेटी नहीं, सिविल सर्वेंट चाहिए था.
पर आपको मेरा JNU या DSE में MA में एडमिशन भी चाहिए था. मुझे भी चाहिए था, बस वजह अलग थी.
आप को पता है, इतना कुछ हम कैसे झेल गए? हम आपको बताना चाहते थे काफी दिन से. कि हमारा एक दोस्त है. मतलब वो जो हमारे लिए है, दोस्ती बस उसका एक हिस्सा है. प्यार उसका दूसरा हिस्सा है, शरीर तीसरा, और कॉमरेडशिप आखिरी.
बॉयफ्रेंड कभी नहीं बुलाते हैं हम उसे. बॉयफ़्रेंड हमारे इसके पहले रहे हैं. ये साथी है हमारा. साथी इसलिए है, क्योंकि बाकी जो रिश्ते होते हैं, उनमें उम्मीदों के बोझ ढोने पड़ते हैं. हम दोनों के बीच, जब एक की हिम्मत जवाब देने लगती है, तब दूसरा हाथ थाम लेता है.
इसीलिए हम आपसे ज़्यादा उससे बात करते हैं. ज़िन्दगी शेयर करते हैं. वो हमें एक एडल्ट और मैच्योर इंसान के तौर पर देखता है. आप नहीं देखते. आपको हमारे फैसलों पर भरोसा नहीं है. पर हमें है. आपने MA के पहले सेमेस्टर हमें हर फ़ोन कॉल पे रुलाया. ताने मार-मार के दुख पहुँचाया. हमें पता है आपको भी JNU में एडमिशन न होने से दुख हुआ होगा. पर आप ये भूल गए कि दुख का पहला झटका हम झेल रहे थे. फिर आपने पैसों की बात उठानी शुरू कर दी. कि JNU में सेलेक्ट न होने की वजह से आपको कितना ज़्यादा खर्च करना पड़ रहा है.
पापा, हमने कभी लक्ज़री के नाम पर कुछ नहीं देखा. हमारे घर पे ढंग की टीवी नहीं थी, अभी भी नहीं है. वॉशिंग मशीन, माइक्रोवेव, कुछ नहीं है. फ्रिज पिछले साल ख़रीदा. AC नहीं है. हमारे सारे दोस्तों के घर में है ये सब. यहां तक आपने घर की दीवारों को चूने से पुतवा रखा है. आज 10 साल हो गए घर बने, हमने कभी ज़िद की तो आपने कहा कि ये सब तो बाद की बात है, एजुकेशन और मेडिकेशन में कभी पैसों की कमी नहीं होनी चाहिए. अब जब एजुकेशन पर खर्च करना हुआ, तो आपने हमें ताने मारने शुरू कर दिए. आपने हमें सुसाइडल बना दिया. हम डिप्रेस रहने लगे. हर रात सोचते थे कि बस कल की सुबह न देखनी पड़े, आज ख़तम करते हैं.
पता है आपको हम क्यों ज़िंदा हैं? हमारे साथी के वजह से. उसे मेरी कोशिशें दिख रही थीं. और वो मुझे हारते देखना नहीं चाहता था. हमने आपसे बात करना छोड़ दिया. आपने भी कोशिश नहीं की दूरी घटाने की. करते कैसे, तब आप भाई पे बिजी हो गए. उसे डॉक्टर बनाना था.
और भाई पर उसकी बीमारी की वजह से इतना खर्च कर दिया था आपने. कि उस बेचारे के पास तो शायद न बोलने का सोचने का भी ऑप्शन नहीं था. उसे जो OCD हुआ है न पापा, वो भी आप की वजह से हुआ है. आपको उसे बताना चाहिए था कि अगर वो डॉक्टर नहीं बन पाए, तो ठीक है, कुछ और बन जाएगा. पर नहीं, आप ने मुझसे उम्मीद छोड़ दी और उस पर लग गए. वो घर से कभी दूर, अकेले, इंडिपेंडेंट रहा नहीं है. उसके पास मेरी तरह आपसे दूर चले जाने का ऑप्शन भी नहीं था. तरस आता है मुझे उस पर.
हमें एंग्जायटी डिसऑर्डर है पापा. जी बेचैन होता है. डॉक्टर को दिखा रहे हैं. और पता इसकी वजह क्या है? आप हो. आपसे बात करने की नौबत आती है या आपसे मिलने की, तो रोना आ जाता है. सबको देखती हूँ उनके पापा से बात करते, तो याद आता है कि हम पहले कैसे हुआ करते थे. फिर याद आ जाता है कि अब हम कैसे हैं. जी घबराता है.
चिट्ठी के शुरू में हमने सोचा था कि आपसे माफ़ी मांगेंगे कि हम आपके सपनों को सच नहीं कर पाए. पर अब हम सोच रहे हैं कि नहीं मांगेंगे. क्योंकि हम अपना सपना साकार कर रहे हैं. और आपको इस बात की ख़ुशी होनी चाहिए. आपके सपनों से आगे अपना सपना चुनने के लिए हमें माफ़ी नहीं मांगनी चाहिए.
और हाँ, एक और बात. हम भगवान में भी विश्वास नहीं रखते हैं. घर पे ढोंग करते हैं. हम आपसे झूठ बोलकर 3 ट्रिप पर गए हैं. तीनों ट्रिप में लड़का था साथ में. और हमने आपसे और भी कई सारे अनगिनत झूठ बोले हैं. जिनमें से एक के लिए भी हम शर्मिंदा नहीं है. आपने सच बोलने की जगह नहीं छोड़ी थी. हमारे सामने दो रास्ते थे. या तो हम सच बोलकर आपके गुस्से की आग में खुद को झोंक ‘पवित्र’ हो जाते. या तो झूठ बोलकर अपनी ज़िन्दगी जी लेते. पिछली बार की गलती नहीं दोहराई हमने. इस बार इमेज के आगे हमने अपने आपको चुना.
आपकी,
बिगड़ी हुई, असमर्थ बेटी
Source: http://www.thelallantop.com/tehkhana/an-open-letter-from-a-spoiled-girl-to-her-father/

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