Thursday, 6 July 2017

स्वामी विवेकानन्द के 12 अग्निमन्त्र

स्वामी विवेकानन्द ने सत्य की खोज में जो बातें कहीं है, वे हर व्यक्ति के जीवन में अब भी महत्व रखती हैं. हालात से डरकर भागना स्वामी विवेकानन्द जी ने कभी  नहीं सीखा.. वे हमेशा ही हालात का मुकाबला करने की प्रेरणा देते थे.. विषम से विषम और दुरूह से दुरूह परिस्थिति में भी व्यक्ति को अपना सम्मान नहीं खोना चाहिए… उनका मानना था कि हर व्यक्ति जो ब्रम्हा का प्रतीक है, अद्भुत, अलौकीक शक्तियों का स्वामी है…
अगर कोई व्यक्ति ठान ले तो कितने भी ख़राब हालात क्यों न हो, उनपर नियन्त्रण रख सकता है और हालात को अपने पक्ष में ढाल सकता है… अलग-अलग मौके पर स्वामी विवेकानन्द ने अपने शिष्यों को  भी ऐसे मंत्र दिए जो उन्हें पराजय के भय से दूर होकर आगे बढ़ने की सतत प्रेरणा देते रहे…
अग्निमन्त्र – १.
“हे सखे! तुम क्यों रो रहे हो? विश्व की हर एक शक्ति तो तुम्हीं में है.. भगवन, आप खुद अपने स्वयं को विकसित तो करो. देखो, तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे हैं. तुम्हारे पास आत्मा की प्रबल शक्ति है, इसलिए  डरो मत… तुम्हारा नाश नहीं हो सकता, तुम्हें कोई भी नष्ट नहीं कर सकता इसलिए बिलकुल भी डरो मत… इस संसार से, इस भवसागर से पार उतरने का एक ही उपाय है और वह उपाय यही है कि जिस पर तुम चल रहे हो, उसी पथ पर चलकर संसार की सभी लोग भवसागर को पार करते हैं… यही श्रेष्टतम पथ है… यही श्रेष्ठ पथ में तुम्हें दिखाता हूँ…”
अग्निमन्त्र- २.

“यदि तुम लोग कमर कसकर अपने लक्ष्य को पाने के लिए जुड़ जाओ तो छोटे-मोटे की तो बात ही क्या, बड़े से बड़े दिग्गज बह जायेंगे.. तुम केवल एक हुंकार मात्र से इस दुनिया को पलटने का सामर्थ्य रखते हो.. आप जो भी कर रहे हो, यह तो उसका केवल प्रारब्ध है इसलिए किसी के साथ विवाद नहीं करो… हिल-मिलकर रहना सर्वोत्तम है .. यह दुनिया भयावह है और किसी पर भी विश्वास नहीं है, ऐसा सोचना उचित नहीं… डरने का भी कोई कारण नहीं है.. आप जिस दिशा में जा रहे हो, इस दृढ संकल्प के साथ जाओ कि माँ काली मेरे साथ है.. इस संकल्प मात्र से ऐसे कार्य होंगे कि तुम खुद चकित हो जाओगे.. फिर भी किस बात का? किसका भी? वज्र जैसा ह्रदय बनाओ और अपने कार्य में जुट जाओ…”

अग्निमन्त्र- ३.
अपने लक्ष्य की ओर हमेशा बढ़ते चलो… तुमने बहादुरी का काम किया है.. शाबाश! आगे बढ़ते ही चलो, हिचकने वाले पीछे रह जायेंगे… और अगर तुम बिना हिचके आगे बढ़ते तो एक ही छलांग में सबके आगे पहुँच जाओगे.. जो केवल अपने हित में लगे हुए हैं, वे न तो अपना हित कर पायेंगे और न ही दुसरे का… इसलिए ऐसा शोरगुल मचाओ कि आपकी आवाज दुनिया के कोने-कोने में फ़ैल जाए.. कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्हें अपना काम करने के लिए तो समय का अभाव रहता है.. लेकिन दूसरों की त्रुटियाँ खोजने में इनके पास समय की कोई कमी नहीं होती… ऐसे लोगों की परवाह किये बिना अपने लक्ष्य को पाने में जुट जाओ… अपनी शक्ति के अनुसार आगे बढ़ो.. ‘नहीं है, नहीं है’ कहने से तो सांप का विष भी नहीं रहता… नहीं, नहीं कहने से तो नहीं हो जाना पड़ेगा, इसलिए मैं कहता हूँ कि आगे बढ़ो और तूफान मचा दो…
अग्निमन्त्र- ४.
यदि तुम अपनी अंतिम सांस भी ले रहे हो तो भी किसी से न डरना.. जब तक ईश्वर की कृपा हम पर है, इस धरती पर हमारी अपेक्षा कौन कर सकता है? इसलिए किसी भी बात से तुम उत्साहहीन नहीं होना… इसलिए लोग तुम्हारी स्तुति करें या निंदा, जय-जयकार के नारे लगाये या हाहाकार के, तुम पर लक्ष्मी की कृपा बनी हो या नहीं बने, तुम्हारा देहांत आज होने वाला हो या एक युग के बाद, कभी भी किसी अवस्था में अपने न्याय के पथ से विचलित नहीं होना…
अग्निमन्त्र-५.
क्या इस तरह का दिन कभी आएगा कि परोपकार के लिए जान चली जायेगी? यह दुनिया कोई बच्चों का खिलवाड़ नहीं. बड़े आदमी वे हैं जो अपने ह्रदय से दूसरों का रास्ता तैयार करते हैं यही हमेशा-हमेशा से होता आया है. अपना पूरा जीवन समर्पित करके कोई व्यक्ति सेतु का निर्माण करता है और हजारों आदमी उस सेतु के ऊपर से नदी पार करते हैं….
अग्निमन्त्र-६.
प्रेम की ही विजय होती है… अधीर होने से काम नहीं चलेगा… ठहरो, धीरज रखो, विजय अवश्यम्भावी है… हो सकता है कि आपको सार्वजनिक हित की रक्षा के लिए अपना सब कुछ छोड़ना पड़े… बड़े से बड़े जहाज भी छोटी-छोटी त्रुटियाँ करने पर डूब जाते हैं, इसलिए सावधान रहना… कभी भी दूसरों के अत्यंत छोटे अधिकारों में भी हस्तक्षेप नहीं करना… दूसरों के धर्म से भी भी द्वेष नहीं करना… हम सब लोग, सब धर्मों को सत्य समझते हैं और उन धर्मों का सत्य भी समझते हैं इसलिए पूरी शक्ति से और धीरज से अपने लक्ष्य की ओर बढे चलो…
अग्निमन्त्र-७.
तुम्हारे लिए नीतिपरायणता और साहस को छोड़कर और कोई धर्म नहीं है.. कोई भी धार्मिक मत-मतान्तर तुम्हारे लिए नहीं है… पूर्ण  नीतिपरायण और साहसी बनो… प्राणों के लिए भी कभी न डरो… कायर लोग ही पापाचरण करते हैं, वीर पुरूष कभी भी पापानुष्ठान नहीं करते… वीर पुरूष तो कभी अपने मन में भी पाप का विचार नहीं लाते, इसलिए प्राणीमात्र से प्रेम करने का प्रयास करो… तुममे कभी भी कायरता, पाप, और कमजोरी नहीं आनी चाहिए…
कभी पीछे मुड़कर मत देखो.. भाग्य बहादूर लोगों का ही साथ देता है… हमेशा अपार शक्ति, अपरिमित उत्साह, अमिट साहस और असीम धैर्य से आगे बढ़ो… तुम सभी महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न कर सकते हो…
अग्निमन्त्र-८.
बिना पाखंडी और कायर बने सबको प्रसन्न रखो… पवित्रता और शक्ति के साथ अपने आदर्श पर दृढ रहो… चाहे तुम्हारे सामने कैसी भी बाधाएँ क्यों न हो, कुछ समय बाद संसार तुमको मानेगा ही…
अग्निमन्त्र-९.
धीरज रखो और मृत्युपर्यन्त विश्वास पात्र रहो.. आपस में न लड़ो.. रूपये-पैसे का व्यवहार शुद्ध भाव से करो… बिना ईमानदारी, भक्ति और विश्वास के महान कार्य नहीं किये जा सकते, इसलिए प्रत्येक कार्य में सफलता के लिए ईमानदारी, शक्ति और विश्वास का पथ चुनो…
अग्निमन्त्र-१०.
किसी काम को न टालो… कोई भी चुनौती आने पर उसे टालने की कोशिश न करो क्योंकि अगर आपने उस काम को टाला तो उससे आप किसी बड़ी उपलब्धी से वंचित रह सकते हैं.. इसीलिए टालने की प्रवृत्ति छोड़ो और प्रत्येक कार्य में ईश्वर को खोजने की कोशिश करो… वह आपके ईर्द-गिर्द ही कहीं नजर आएगा…
अग्निमन्त्र-११.
परावलम्बी न रहो, दूसरों पर निर्भर रहना कभी भी बुद्धिमानी नहीं होती… बुद्धिमान व्यक्ति को अपने ही ऊपर दृढ़ता से खड़े रहकर कार्य करना चाहिए… यही लक्ष्य-प्राप्ति का एक प्रमुख मन्त्र है…
अग्निमन्त्र-१२.
सभी के लिए सहयोगी बनो.. किसी को उसकी योजनाओं में हतोत्साहित नहीं करो… आलोचना की प्रवृत्ति को पूरी तरह छोड़ दो… यदि कोई सही मार्ग पर अग्रसर हो रहा है तो उसकी आलोचना नहीं करो बल्कि सहायता करो यदि उस मार्ग में या उस कार्य में कोई गलती नजर आये तो नम्रतापूर्वक उस गलती के प्रति उसे सजग करो… दूसरों की आलोचना ही सब दोषों की जड़ है…
Source: https://www.hamarisafalta.com

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