पिछले बीस-पच्चीस वर्षों में, जब से भारत ने मुक्त अर्थव्यवस्था को अपनाया है भारत के लाखों युवा विदेशों में नौकरी-धंधा कर रहे हैं. अमेरिका-कनाडा-ऑस्ट्रेलिया-अरब देशों सहित यूरोप के तमाम देशों में भारतीयों ने सफलतापूर्वक अपनी मेहनत एवं प्रतिभा का लोहा मनवाया है.
इन देशों में जाकर नौकरी अथवा बिजनेस करने वाले भारतीयों ने विदेशों से कमाई करके लाखों डॉलर अपने घर-परिवार-कम्पनी को यानी भारत में भेजे हैं, और आज भी लगातार भेज रहे हैं.
हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार 2015 में भारत दुनिया में सबसे अधिक पैसा “प्राप्त करने वाला” देश बन गया है. अर्थात विदेशों से अपने घर पर पैसा भेजने के मामले में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है. विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 2015 में भारतवंशियों ने लगभग 4.67 लाख करोड़ रूपए भारत भेजे हैं. चार लाख सड़सठ हजार करोड़ रूपए का यह आँकड़ा स्वाभाविक रूप से हमें प्रसन्न करता है कि चलो यहाँ से जाने वाले युवा एवं बिजनेसमैन लोग अपनी कमाई को अपने देश में भेज रहे हैं, ना कि उसी देश में निवेश कर रहे हैं. भारत भेजी जाने वाली इस विराट धनराशि का आँकड़ा भले ही खुश करने वाला हो, परन्तु वास्तव में देखा जाए तो हम जितना ज्यादा पैसा भारत भेजते हैं, उतना ही हम कुछ चुनिन्दा कंपनियों, एजेंसियों, हवाला रैकेट को मजबूत करते जाते हैं. आखिर यह कैसे होता है, क्यों हो रहा है और इसका इलाज क्या है??
(विदेशों से भारत भेजे जाने वाले धन का अनुमानित हिसाब)
इस गोरखधंधे और भारतीयों की खून-पसीने की मोटी कमाई को दूसरी कम्पनियों की जेब में जाते देखना आपको कष्ट देगा, परन्तु वास्तविकता यही है कि बड़ी-बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों ने अपनी मनमानी और तकनीकी दादागिरी के चलते एक ऐसा सिस्टम तैयार कर लिया है कि चाहे-अनचाहे आपको उन्हें “हफ्ता” चुकाना ही पड़ेगा. इस लूट को समझने के लिए सबसे पहले आप उस भारतीय व्यक्ति की तरह सोचना कीजिए, जो विदेश में बैठा मेहनत से पैसा कमा रहा है. उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि आप विदेश में अपनी कमाई से 1000 डॉलर बचाकर उसे अपने माता-पिता को भारत में भेजना चाहते हैं, तो आप क्या करेंगे? आपके पास दो-चार विकल्प हैं, जिसमें से पहला विकल्प होगा बैंक खाते से बैंक खाते में पैसा ट्रांसफर करना... यानी विदेश में आपकी बैंक शाखा से माता-पिता की भारत स्थित बैंक शाखा को पैसा भेजना... दूसरा तरीका है PayPal, Western Union जैसी कई नामीगिरामी कंपनियों के माध्यम से भारत की बैंक शाखा में पैसा भेजना... तीसरा तरीका है, भारत जाने वाले किसी परिचित के साथ नकद राशि भेजना... और चौथा तरीका है अवैध चैनल यानी हवाला रैकेट के माध्यम से पैसा भेजना. इन चार तरीकों के अलावा अमूमन कोई और तरीका नहीं है. विदेश से भारत में पैसा भेजने की इन चारों पद्धतियों में सबसे लोकप्रिय है PayPal, Western Union जैसी कई कंपनियों के माध्यम से पैसा भेजना... ऐसा इसलिए क्योंकि इस चैनल से पैसा भेजने पर सबसे सुरक्षित एवं त्वरित होता है. यदि कोई अमेरिका स्थित किसी बैंक से भारत स्थित किसी बैंक में सीधे पैसा भेजता है, तो वह wire transfer के जरिये आता है, जिसमें बैंक मोटा कमीशन वसूल करती हैं, इसलिए वह महंगा पड़ता है, जबकि निजी कंपनियों के माध्यम से पैसा भेजने पर कमीशन कम लगता है. यदि हवाला रैकेट के जरिए भेजा जाए तो बहुत सारे अन्य खतरे हैं.
अब आप समझिये कि समूचे मामले में विदेशों में रहने वाले भारतीयों की जेब कैसे कट रही है. ये निजी कम्पनियाँ जो पैसा ट्रांसफर करने की सुविधा दे रही हैं वे खासा कमीशन वसूलती हैं जो कि सारे चार्जेस एवं एक्सचेंज रेट में किए गए घालमेल की वजह से 6% से लेकर 10% तक भी पहुँच जाता है. अर्थात यदि कोई व्यक्ति अपने घर 1000 डॉलर भेजे, और उसे भेजने वाली सही कम्पनी (अर्थात माध्यम) के बारे जानकारी नहीं हो, तो उसकी अच्छी खासी जेब कटने की आशंका होती है. अब आप सोचिये 2015 में भारतवंशियों ने 4.67 लाख करोड़ रूपए भारत भेजे, तो इन कंपनियों ने कितने करोड़ रूपए घर बैठे कमा लिए होंगे? यह केवल इसलिए क्योंकि ये कम्पनियाँ न सिर्फ मुद्राओं के एक्सचेंज रेट मनमाने लगाती हैं, बल्कि इनका कमीशन भी तगड़ा होता है. इस दादागिरी और लूट के दो कारण हैं... पहला तो यह कि इन कंपनियों को वहाँ की सरकारों का संरक्षण प्राप्त होता है, इन्होने उन सरकारों के जरिये ऐसे बांह मरोड़ने वाले क़ानून और नियम बनवा रखे हैं कि इस क्षेत्र में किसी नई कम्पनी का आना और कम कमीशन पर काम करके सस्ते में पैसा भारत पहुँचाना मुश्किल है... और दूसरा यह कि इन कंपनियों ने अपनी सॉफ्टवेयर तकनीक एवं “कार्टेल” बनाकर इस विशाल बाज़ार पर कब्ज़ा किया हुआ है.
ये तो हुई विदेशों की बात... यदि भारत के अन्दर ही ही बात करें तो आज की तारीख में लाखों लोग भारत के अन्दर ही अन्दर “आप्रवासी” हैं, अर्थात हजारों लोग यूपी-बिहार से मुम्बई काम के लिए गया है, तो इसी प्रकार हजारों केरलवासी नर्सेस भारत के कोने-कोने में सेवाएँ दे रही हैं. ये लोग अपने घर पर पैसा भेजने के लिए क्या करते हैं? अधिकांशतः तो बैंक से बैंक के बीच ट्रांजेक्शन होता है... लेकिन जैसे-जैसे “क्रेडिट-डेबिट कार्ड संस्कृति” बढ़ रही है, समय बचाने और बैंक से बचने के लिए लोग उसका भी उपयोग करने लगे हैं. आपको ये तो पता ही होगा कि कार्ड के “धंधे” में दो कंपनियों ने बाजार पर लगभग कब्ज़ा किया हुआ है, VISA और MasterCard. यह भी जान लीजिए कि ये दोनों ही कम्पनियाँ विदेशी हैं और भारत में प्रतिदिन होने वाले लाखों लेनदेन पर ये दोनों कम्पनियाँ भी कमीशन वसूल करती हैं. यदि प्रत्येक ट्रांजेक्शन पर हम 25 पैसा कमीशन भी मान लें और उसमें से कुछ हिस्सा बैंक का भी मान लें तो हिसाब लगाएं कि प्रतिदिन क्रेडिट-डेबिट कार्ड से होने वाले करोड़ों-अरबों रूपए के ट्रांजेक्शन में ये कम्पनियां कितना कमाती होंगी?? यही असली खेल है... चूंकि भारत के अन्दर पैसा भेजना सरल है, इसलिए कमीशन कम है, लेकिन जब यही मामला विदेश से भारत पैसा भेजने का हो तो इन विदेशी कंपनियों का कमीशन लगभग “लूट” के स्तर तक पहुँच जाता है.
आप हमेशा सोचते होंगे कि आखिर दुनिया भर में “हवाला” का कारोबार कभी मंदा क्यों नहीं पड़ता, हवाला कारोबारी हमेशा फलते-फूलते हैं और इस अवैध धंधे पर हमेशा अंडरवर्ल्ड और माफिया का कब्ज़ा होता है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि इन बैंक-टू-बैंक पैसा ट्रांसफर अत्यधिक महंगा है, साथ ही उपरोक्त कंपनियों का कमीशन भी अधिक है... तो ऐसे में वह “ग्राहक” का करे, जिसे बड़ी मात्रा में पैसा भारत भेजना है. तब वह हवाला ऑपरेटरों के पास जाता है. जो काम ये आधिकारिक कम्पनियाँ पाँच से आठ प्रतिशत में करती हैं, वही काम यानी पैसा एक देश से दूसरे देश पहुँचाना, हवाला माफिया 3-4% में कर देता है. स्वाभाविक सी बात है कि जहाँ “फायदा” होगा, ग्राहक वहीं जाएगा. इसलिए विदेशों से आने वाला पैसा जितना बैंकों और इन कमीशनबाज कंपनियों के माध्यम से आता है, लगभग उतना ही ब्लैक मनी के रूप में हवाला के माध्यम से भारत आता है. जिस प्रकार कम्पनियाँ सीधे बैंक खाते में पैसा पहुँचाती हैं, उसी प्रकार हवाला ऑपरेटर भी अतिरिक्त कमीशन लेकर “कैश की होम डिलीवरी” भी करते हैं. इसके अलावा एक समस्या यह भी है कि काले धन की रोकथाम को लेकर सभी देशों में इतने सख्त क़ानून हैं कि कई बार ईमानदारी से कमाई गयी लेकिन एक बड़ी रकम भारत भेजते समय भेजने वाले तथा पाने वाले इतनी पूछताछ होती है, इतने तरह के फॉर्म भरवाए जाते हैं कि व्यक्ति त्रस्त हो जाता है. वह सीधे किसी हवाला ऑपरेटर को पकड़ता है, उसे वहाँ पर नगद डॉलर भुगतान करता है, और उस माफिया के गुर्गे अपना कमीशन काटकर उतना पैसा भारतीय मुद्रा में “घर पहुँच सेवा” कर देते हैं... क्योंकि हो सकता है कि पैसा पाने वाले व्यक्ति के माता-पिता किसी दूरस्थ गाँव में रहते हों, और उनका बैंक खाता भी न हो.
कहने का तात्पर्य यह कि विदेशों से भारत में पैसा भेजने वाला अक्सर खुद को ठगा हुआ महसूस करता है. उसकी मेहनत की कमाई को भारत भेजने में लगने वाला यह “आधिकारिक शुल्क” उसका मुँह चिढ़ाता है. तो आखिर इस समस्या का उपाय क्या है?? इस लूट से बचने के लिए (यानी केवल भारतीयों को ही नहीं, बल्कि विदेशों में जाकर काम करने वाले सभी देशों के नागरिकों की भलाई के लिए) सभी सरकारों को मिलकर आगे आना होगा. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत वर्ष बीस बड़े देशों के पिछले सम्मेलन अर्थात G-20 में इस मुद्दे को उठाया था, और कनाडा-अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया आदि देशों से अनुरोध किया था कि वे सरकारें इन “मनी ट्रांसफर कंपनियों” पर थोड़ी लगाम कसें तथा इनकी दरों में कमी करें. वर्तमान में पैसा भारत भेजने के लिए जो 6%-10% का शुल्क (कमीशन) लगता है, उसे घटाकर 3%-5% तक लाया जाए, ताकि हजारों करोड़ रुपए जो यह कम्पनियाँ लूट रही हैं उसमें से बड़ा हिस्सा भारत आए. एक मोटा अनुमान लगाते हैं... यदि भारतवंशियों ने 4.67 लाख करोड़ रूपए भारत भेजे तो उसका लगभग 6% (कम से कम) यानी 30,000 करोड़ रूपए इन कंपनियों ने कमाया... यदि यही रेट 3% ही होता तो ये कम्पनियाँ 15,000 करोड़ रूपए तो कमातीं लेकिन बचा हुआ 15,000 करोड़ रुपया भारत की बैंकों में अधिक पहुँचता... जो कि देश में ही खर्च होता और GDP में कुछ नहीं तो 0.05% की वृद्धि तो होती?? भारत में रहने वाले माता-पिता की जेब में थोडा अधिक पैसा पहुँचता... परन्तु फिलहाल नरेंद्र मोदी के इस प्रस्ताव पर किसी भी बड़े देश ने कोई ध्यान नहीं दिया है, क्योंकि उनके भी आर्थिक हित-सम्बन्ध उन कंपनियों से जुड़े हैं. इस समस्या का दूसरा उपाय यह है कि वे विदेशी सरकारें अपने नियम-कानूनों में थोड़ी ढील दें ताकि इस विशाल बाज़ार में छोटी और नई कम्पनियाँ भी अपने पैर जमा सकें. जब इस मार्केट में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, कम्पनियों की संख्या जो कि वर्तमान में मुश्किल से दस-बीस है, वह कम से कम सौ हो जाएगी.... स्वाभाविक है कि ग्राहक खींचने के लिए कमीशन की दरों में कमी लाई जाएगी. जब पैसा भेजने का कमीशन 3%-5% के बीच आ जाएगा तो कोई भी व्यक्ति अवैध रूप से हवाला कारोबारियों और माफिया के हाथों पैसा क्यों भेजेगा, मन की शान्ति बनाए रखने के लिए कानूनी रूप से ही इन कंपनियों के जरिये भेजेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका सहित कई यूरोपीय देशों को यही समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि हवाला की कमर तोड़े बिना आतंकवादी गतिविधियाँ कम नहीं होंगी, क्योंकि हवाला से कमाया गया पैसा सीधे आतंकियों और ड्रग कारोबारियों की मदद करता है.
(इस चित्र में दिखाए जा रहे मोबाईल एप्प को आप "इस लिंक" पर जाकर भी डाउनलोड कर सकते हैं, यह मददगार सिद्ध होगा)
जब तक विभिन्न सरकारें मिलकर इन कंपनियों के कमीशन पर लगाम नहीं लगातीं अथवा नई कम्पनियाँ मार्केट में आकर दरें कुछ कम नहीं करतीं तब तक विदेशी कंपनियों की इस “चतुर लूट” से तात्कालिक रूप से बचने का उपाय यह है कि जब भी किसी को विदेशों से पैसा भारत भेजना हो तो वह कुछ ऐसी वेबसाईट्स अथवा ऐसे मोबाईल एप्प्स का उपयोग करें, जिनमें “रियल टाईम” के अनुसार डॉलर-रूपए के भुगतान के बारे में विस्तार से दिया गया हो. कुछ एप्प्स ऐसे भी आए हैं, जिनमें एक साथ कई विदेशी कंपनियों के कमीशन एवं दरों के बारे में तुलनात्मक रूप से बताया जाता है. ऐसा करने का फायदा यह होगा कि हो सकता है आपको 1000 डॉलर भेजने पर अभी जितना पैसा कट रहा है, उससे थोडा कम कटे. यानी थोड़ी सी चतुराई से आप भी अपनी मेहनत की कमाई में से यदि हर बार 10-20-50 डॉलर बचा सकें (यानी इतने ही पैसे अधिक भारत भेज सकें) तो सोचिये कि बड़े पैमाने पर भारत भेजे जाने वाले लाखों डॉलर बचेंगे जो कि भारत में आपके माता-पिता के (यानी अंततः भारत के ही काम आएँगे). अर्थात पैसों की बचत के साथ-साथ, अपने देश की भी थोड़ी अतिरिक्त मदद... यही तो देशप्रेम है.
संक्षेप में तात्पर्य यह है कि विदेशों से भारत पैसा भेजने के कमीशन में कमी लाने और नई कम्पनियों को बढ़ावा देने में सभी देशों का फायदा है... स्वाभाविक है कि भारत और चीन जैसे देशों का फायदा ज्यादा है, क्योंकि यहीं के लोग सर्वाधिक विदेशों में मौजूद हैं. जबकि हवाला रैकेट की कमर तोड़ना सभी देशों के लिए फायदेमंद है. अब देखना यही है कि इस मामले में नरेन्द्र मोदी के प्रस्ताव पर कब कोई बड़ी पहल होती है, अन्यथा तब तक तो विदेशों में काम करने वाले हमारे युवा कमीशन के रूप में मोटी रकम अपनी जेब से लुटवाते ही रहेंगे...
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