Dear friends, आज हम मुमकिन है का सफर तय करनेँ जा रहे हैँ। इस कड़ी मेँ मैँ आपसे Satyamev Jayte (सत्यमेव जयते) Season 3 Episode 1 A Ball Can Change The World के कुछ भागोँ को आपके सामनेँ बाँट रहा हुँ। उम्मीद है आप सबको पसंद आये।
5 October रविवार सुबह 11 बजे पुरा देश सत्यमेव जयते को देख रहा था और सुन रहा था। मुझे season 3 का यह पहला Episode बहुत ही ज्यादा पसंद आया और मुझे यकीन है आप सबको भी बहुत ज्यादा पसंद आया होगा।
Thanks to Aamir Khan sir और Satyamev Jayte की पुरी Team जो आज देश को आगे लानेँ के लिये इतना बड़ा काम कर रही है।
चलिये मुमकिन है मेँ शुरू करते हैँ Sports का ये सफर।
अखिलेश पॉल-
अखिलेश पॉल की परवरिश हुई थी, नागपुर की एक बस्ती मेँ। गुंडागर्दी, शराब, ड्रग्स जैसी बुरी लतोँ का पाला बहूत जल्दी पड़ गया।
देखते ही देखते जुर्म की दुनिया नेँ उन्हेँ अपनी चपेट मेँ ले लिया। हालात यहाँ तक पहुँच गये कि उनके बारे मेँ तरह-तरह के दर्जनोँ केसेस पुलिस थानोँ मेँ दाखिल हो चुके थे। वहीँ दुसरी तरफ क्रिमिनल गैँग्स की आपसी रँजिस के चलते विरोधी गैंग्स के बदमाश भी उनके जान के प्यासे थे। जिँदगी ऐसी मोड़ पर आ गई थी कि पुलिस से बचते तो गुंडे उन्हेँ मार देते और गुंडो से बचते तो पुलिस पकड़ने के लिये तैयार थी। अपनी जिँदगी बचानेँ का कोई रास्ता अखिलेश को नहीँ सुझ रहा था।
अखिलेश पॉल
हर आदमी का एक सपना होता है, मेरा सपना था कि मैँ बड़ा होकर भाई बनुं.. किसी को भी मारना, झगड़ा करना, डराना-धमकाना मेरे लिये Normal था।
जिँदगी मेँ बदलाव कैसे आया-
जिस Area मेँ मैँ रहता था उस area मेँ एक College था, उस College मेँ एक प्रोफेसर थे. प्रोफेसर विजय बारसे। College के सामनेँ हमारा सब कार्यक्रम चलता था, एक अड्डा Type था। वो प्रोफेसर हमको रोज देखते थे। एक दिन उन्होँने किसी Peon के हाथ से हमेँ बुलाया।
हम गये, क्या हुआ Sir..?
उन्होँने कहा- Ball खेलेँगे क्या? Football खेलेँगे क्या!
मेरा एक फ्रेँड बोला- अरे ! ये पागल है क्या?
पर मैनेँ कहा कितनेँ पैसे मिलेँगे। उन्होँने कहा- 5 रूपये Per day..
हम लोग एक- डेढ़ घंटे खेले और बिना हाथ-मुँह धोये उनके पास जाकर बोले Sir ये लीजिये Football और 5 रूपये दीजिये। उन्होँने भी पैसे निकालकर दिया।
उन्होँने कहा- कल भी आईयेगा कल भी पैसे दुँगा।
हम Second दिन भी आये और एक-डेढ़ घंटा फिर खेले। यही सिलसिला 10-15 दिन तक चलता रहा।
10-15 दिन बाद हम उनके पास गये लेकिन उन्होँने कहा- आज नहीँ खेलना! मेरे पास पैसे नहीँ है। एक Friend नेँ कहा चलो यार फुटबाल खेलते हैँ। हमनेँ Sir से कहा कि आप हमेँ बस फुटबाल दे दीजिये। उन्होँने कहा, ठीक है। ये लो खेलने के बाद वापिस कर देना। अब कुछ दिन बिना पैसे के ऐसे ही खेलते थे। दो-तीन दिन बाद जब हम Football लेने गये तो उन्होँने वो फुटबाल देना भी बंद कर दिया।
अब जैसे एक लत लगी थी लोगोँ को धमकाना, डराना, शराब पीना. ये सब वैसे ही अब एक लत लग गई थी फुटबाल खेलनेँ की।
हम कहीँ भी जाते रास्ते मेँ पड़ी चीजोँ को पैर से फुटबाल की तरह Kick करते थे।
धीरे- धीरे मेरा जुर्म बढ़ता जा रहा था। बहुत लोग मेरे दुश्मन बन गये थे। इसलिये मैनेँ सरेंडर कर दिया। और यही शायद आखिरी रास्ता था।
कोर्ट ने मुझे जमानत दी।
एक बार कुछ बच्चे फुटबाल लिये लिये साईकिल से जा रहे थे। मैनेँ उन्हेँ देखा और अपनी पुरानी यादेँ ताजा हो गई। मैँ उन बच्चोँ के पीछे गया। और दुर से उनको खेलते हुए देखनेँ लगा। एक आदमी वहाँ आया, सब बच्चे उन्हेँ Sir कहकर पुकार रहे थे
मैनेँ जब उनका चेहरा देखा तो चौक गया, वो बारसे Sir थे। उन्होँने मुझे बुलाया और पुछा क्या हाल है?
मैनेँ कहा- Sir, मैँ पहले जैसा था, आज भी वैसा ही हुँ। बल्कि आज उससे भी ज्यादा बुरी Condition मेँ हुँ। उन्होँने कहा- अखिलेश कुछ समय ऐसा निकाला करो कि बच्चोँ के साथ तुम्हारी Practice हो जायेँगी। तुमको पुरानेँ दिन याद रहेँगे।
वो जब हमको पैसे देते थे उस समय हमको एक चीज बोले थे। अखिलेश जितनेँ Time तुम फुटबाल ग्राऊंड मेँ रहे तुमनेँ एक भी वो सब काम किया जो तुम रोज किया करते थे. गांजा पिया या कोई भी ऐसा हादसा किया जिससे पुलिस तुम्हेँ ढुंढ रही थी। मैनेँ कहा नहीँ Sir..
मैँ तुमको यही बताना चाहता था-
“खेल एक ऐसा माध्यम है जब तुम खेलते रहो तो दुनिया कहाँ है, दुनिया कौन है, हम किसी को नहीँ पहचानते।” यही चीज तो मैँ तुमको Realize कराना चाहता था।
उन्होँने कहा- तुम Time निकालकर खेलते रहो।
वे District level का Tournament करवाते थे। तो उन्होँनेँ एक Tournament organise किया। उसमेँ मैनेँ भी भाग लिया। उन्हेँ मेरा Performance अच्छा लगा तो फिर मुझे State level के लिये चुना गया। State level के लिये मैँ पहले से ज्यादा मेहनत करनेँ लगा। उनको मेरा Performance और थोड़ा अच्छा लगा फिर मुझे National का Chance मिला।
Friends, Akhilesh जी न सिर्फ हिन्दुस्तान टीम के लिये Select हुए, साथ ही बड़ी बात वो टीम के कैप्टन भी थे और फिर वो टीम जो ब्राजील गई स्लम साकर की वर्ल्ड कप खेलनेँ के लिये।
इस वक्त अखिलेश जी Red light area के बच्चोँ को Sport सिखाते हैँ। पहले सब लोग उन्हेँ भाऊ बोलते थे लेकिन आज वो पढ़े लिखे नहीँ हैँ पर Sport मेँ अपनेँ Talent के बदौलत उन्हेँ Sir से सम्मान के साथ पुकारा जाता है।
दोस्तोँ यही वो आदमी थे जिनका जिक्र आमीर Sir नेँ किया था कि जिँदगी बदल गई।
Crime से निकलकर उनकी जिँदगी Totaly बदल गई सिर्फ और सिर्फ Sport की वजह से।
हमारे दादा पहलवान थे, हमारे पापा भी पहलवान रहे हैँ, तो वही हमारे Ideal हैँ, उनकी वजह से हम
रेस्लिन्ग मेँ आये हैँ। पापा का भी क्या Attitude था, बोलते थे तुम क्या उनसे कम खाते हो जो उनसे कम मेहनत करते हो।
खेल के दौरान तो कान भी टुट जाते थे, Body लड़कोँ जैसे हो गई है कौन शादी करेगा, कौन सी शास्त्रोँ मेँ लिखा है कि लड़कियाँ कुस्ती खेलेँ।
लेकिन पापा की सोँच थी कि यदि हम मेहनत करेँगे तो सामनेँ वाले के मुँह Automatic बंद हो जायेँगी।
जब हम मेडल जीतकर वापिस घर आये तो ऐसा ही हुआ, सबनेँ कहा कि आपनेँ गाँव का नाम रौशन किया है। मेरी दादी जो लड़के अपनेँ घर मेँ चाहती थीँ, उन्होँने भी कहा कि अब भगवान ऐसे सौ बेटियाँ हमेँ दे।
गीता कुमारी और बबीता कुमारी जी के पिता महाबीर फोगट जी-
Training के दौरान समाज का रवैया कैसा था, गाँव का क्या Reaction था-
गाँव वालोँ ने मेरा विरोध किया। लड़कियोँ से कुस्ती लड़वा रहा है, इनसे शादी कौन करेगा. लड़कियोँ का ये Game नहीँ होता। फिर मेरा तो एक ही जवाब था जब लड़की प्रधानमंत्री बन सकती है तो पहलवान क्योँ नहीँ बन सकती।
दोस्तोँ ऐसे जज्बे को सलाम है।
शुभम् जगलान (अपनी Age group मेँ गोल्फ के World champion)
दुनिया के सबसे महंगे खेलोँ मेँ से एक गोल्फ। एकड़ोँ
मेँ फैले हुए बड़े मैदानोँ की जरूरत, साजोँ सामान की जरूरत लाखोँ मेँ, इसीलिये इस खेल को रईसोँ का खेल माना जाता है।
एक साधारण इंसान इस खेल को अपनानेँ का ख्वाब भी नहीँ देख सकता है।
लेकिन जब हरियाणा के ईशराना मेँ एक गोल्फ अकादमी शुरू हूई तो उसी गाँव मेँ रहनेँ वाले शुभम् जगलान की दिलचस्पी इस खेल मेँ जागी। घर-घर जाकर भैँसोँ का दुध बेचनेँ वाले परिवार से ताल्लुक रखनेँ वाले शुभम् के परिवार के लिये गोल्फ जैसा महंगा खेल, खेल पाना और उसकी बुलंदियोँ को छुना सपनोँ जैसी बात थी पर मन मेँ अगर चाह हो और काबिलियत को पहचाननेँ वाले किसी इंसान का साथ तो सपनोँ को सच होनेँ पर मजबुर किया जा सकता है।
दोस्तोँ Shubham अभी सिर्फ 9 साल के हैँ और अपनेँ Age group मेँ World champion हैँ।
मैँ कुछ Tournament जीतनेँ लगा, फिर अमित जी से मिला। उन्होँने कहा आप Delhi आ जाओ क्योँकि वो एक Golf foundation चलाते हैँ, और मैँ उनका एक हिस्सा हुँ।
मैँ अब तक 110 Tournament जीत चुका हूँ। गैरी Sir के साथ मैँ दो बार खेल चुका हूँ, जो International golf के बहूत बड़े Player हैँ।
मेरा सपना है कि मैँ दुनिया का Best Golfer बनुँ और भारत के लिये मेडल्स लाऊँ।
Dear friends, इनको देखने, सुनने और पढ़नेँ के बाद आप तो जरूर कहेँगे सच मेँ मुमकिन है।
मेरी यह एक छोटी सी कोशिश थी कि हिँदी मेँ सत्यमेव जयते Season 3 के पहले Episode का कुछ अंश आप तक पहचाऊँ।
आमिर Sir जी नेँ अपनेँ देश मेँ Sport law के लिये एक
एक मुहिम छेड़ दी है। और मुझे यकीन है कि आप भी देश मेँ खिलाड़ियोँ का राज देखना चाहते हैँ और इसे वही लोग चलायेँगे जो खुद उस खेल मेँ माहिर हैँ यानि Sport person..
आपनेँ मिस कॉल कर ही दिया होगा लेकिन यदि आप भुल गये हैँ तो 18008334001 इस नं. पर मिस काल करके Sport law को Support करेँ।
सभी Readers से मैँ यही कहना चाहुँगा कि हप्ते मेँ एक दिन टाईम निकालकर अपनी कोई मनपसंद गेम जरूर खेलेँ। चाहे वो कबड्डी हो, क्रिकेट हो, बेडमिंटन हो या गिल्डी डंडा… जो भी हो पर खेलेँ जरूर।यदि आपके लिये यह आर्टिकल लाभप्रद रहा और आप भी अपनेँ Talent के बुते पर अपनीँ एक अलग पहचान बनाना चाहते हैँ और एक अच्छा Player बनना चाहते हैँ तो अपनेँ सुझाव हम तक जरूर पहुँचायेँ।
5 October रविवार सुबह 11 बजे पुरा देश सत्यमेव जयते को देख रहा था और सुन रहा था। मुझे season 3 का यह पहला Episode बहुत ही ज्यादा पसंद आया और मुझे यकीन है आप सबको भी बहुत ज्यादा पसंद आया होगा।
Thanks to Aamir Khan sir और Satyamev Jayte की पुरी Team जो आज देश को आगे लानेँ के लिये इतना बड़ा काम कर रही है।
चलिये मुमकिन है मेँ शुरू करते हैँ Sports का ये सफर।
अखिलेश पॉल-
अखिलेश पॉल की परवरिश हुई थी, नागपुर की एक बस्ती मेँ। गुंडागर्दी, शराब, ड्रग्स जैसी बुरी लतोँ का पाला बहूत जल्दी पड़ गया।
देखते ही देखते जुर्म की दुनिया नेँ उन्हेँ अपनी चपेट मेँ ले लिया। हालात यहाँ तक पहुँच गये कि उनके बारे मेँ तरह-तरह के दर्जनोँ केसेस पुलिस थानोँ मेँ दाखिल हो चुके थे। वहीँ दुसरी तरफ क्रिमिनल गैँग्स की आपसी रँजिस के चलते विरोधी गैंग्स के बदमाश भी उनके जान के प्यासे थे। जिँदगी ऐसी मोड़ पर आ गई थी कि पुलिस से बचते तो गुंडे उन्हेँ मार देते और गुंडो से बचते तो पुलिस पकड़ने के लिये तैयार थी। अपनी जिँदगी बचानेँ का कोई रास्ता अखिलेश को नहीँ सुझ रहा था।
अखिलेश पॉल
हर आदमी का एक सपना होता है, मेरा सपना था कि मैँ बड़ा होकर भाई बनुं.. किसी को भी मारना, झगड़ा करना, डराना-धमकाना मेरे लिये Normal था।
जिँदगी मेँ बदलाव कैसे आया-
जिस Area मेँ मैँ रहता था उस area मेँ एक College था, उस College मेँ एक प्रोफेसर थे. प्रोफेसर विजय बारसे। College के सामनेँ हमारा सब कार्यक्रम चलता था, एक अड्डा Type था। वो प्रोफेसर हमको रोज देखते थे। एक दिन उन्होँने किसी Peon के हाथ से हमेँ बुलाया।
हम गये, क्या हुआ Sir..?
उन्होँने कहा- Ball खेलेँगे क्या? Football खेलेँगे क्या!
मेरा एक फ्रेँड बोला- अरे ! ये पागल है क्या?
पर मैनेँ कहा कितनेँ पैसे मिलेँगे। उन्होँने कहा- 5 रूपये Per day..
हम लोग एक- डेढ़ घंटे खेले और बिना हाथ-मुँह धोये उनके पास जाकर बोले Sir ये लीजिये Football और 5 रूपये दीजिये। उन्होँने भी पैसे निकालकर दिया।
उन्होँने कहा- कल भी आईयेगा कल भी पैसे दुँगा।
हम Second दिन भी आये और एक-डेढ़ घंटा फिर खेले। यही सिलसिला 10-15 दिन तक चलता रहा।
10-15 दिन बाद हम उनके पास गये लेकिन उन्होँने कहा- आज नहीँ खेलना! मेरे पास पैसे नहीँ है। एक Friend नेँ कहा चलो यार फुटबाल खेलते हैँ। हमनेँ Sir से कहा कि आप हमेँ बस फुटबाल दे दीजिये। उन्होँने कहा, ठीक है। ये लो खेलने के बाद वापिस कर देना। अब कुछ दिन बिना पैसे के ऐसे ही खेलते थे। दो-तीन दिन बाद जब हम Football लेने गये तो उन्होँने वो फुटबाल देना भी बंद कर दिया।
अब जैसे एक लत लगी थी लोगोँ को धमकाना, डराना, शराब पीना. ये सब वैसे ही अब एक लत लग गई थी फुटबाल खेलनेँ की।
हम कहीँ भी जाते रास्ते मेँ पड़ी चीजोँ को पैर से फुटबाल की तरह Kick करते थे।
धीरे- धीरे मेरा जुर्म बढ़ता जा रहा था। बहुत लोग मेरे दुश्मन बन गये थे। इसलिये मैनेँ सरेंडर कर दिया। और यही शायद आखिरी रास्ता था।
कोर्ट ने मुझे जमानत दी।
एक बार कुछ बच्चे फुटबाल लिये लिये साईकिल से जा रहे थे। मैनेँ उन्हेँ देखा और अपनी पुरानी यादेँ ताजा हो गई। मैँ उन बच्चोँ के पीछे गया। और दुर से उनको खेलते हुए देखनेँ लगा। एक आदमी वहाँ आया, सब बच्चे उन्हेँ Sir कहकर पुकार रहे थे
मैनेँ जब उनका चेहरा देखा तो चौक गया, वो बारसे Sir थे। उन्होँने मुझे बुलाया और पुछा क्या हाल है?
मैनेँ कहा- Sir, मैँ पहले जैसा था, आज भी वैसा ही हुँ। बल्कि आज उससे भी ज्यादा बुरी Condition मेँ हुँ। उन्होँने कहा- अखिलेश कुछ समय ऐसा निकाला करो कि बच्चोँ के साथ तुम्हारी Practice हो जायेँगी। तुमको पुरानेँ दिन याद रहेँगे।
वो जब हमको पैसे देते थे उस समय हमको एक चीज बोले थे। अखिलेश जितनेँ Time तुम फुटबाल ग्राऊंड मेँ रहे तुमनेँ एक भी वो सब काम किया जो तुम रोज किया करते थे. गांजा पिया या कोई भी ऐसा हादसा किया जिससे पुलिस तुम्हेँ ढुंढ रही थी। मैनेँ कहा नहीँ Sir..
मैँ तुमको यही बताना चाहता था-
“खेल एक ऐसा माध्यम है जब तुम खेलते रहो तो दुनिया कहाँ है, दुनिया कौन है, हम किसी को नहीँ पहचानते।” यही चीज तो मैँ तुमको Realize कराना चाहता था।
उन्होँने कहा- तुम Time निकालकर खेलते रहो।
वे District level का Tournament करवाते थे। तो उन्होँनेँ एक Tournament organise किया। उसमेँ मैनेँ भी भाग लिया। उन्हेँ मेरा Performance अच्छा लगा तो फिर मुझे State level के लिये चुना गया। State level के लिये मैँ पहले से ज्यादा मेहनत करनेँ लगा। उनको मेरा Performance और थोड़ा अच्छा लगा फिर मुझे National का Chance मिला।
Friends, Akhilesh जी न सिर्फ हिन्दुस्तान टीम के लिये Select हुए, साथ ही बड़ी बात वो टीम के कैप्टन भी थे और फिर वो टीम जो ब्राजील गई स्लम साकर की वर्ल्ड कप खेलनेँ के लिये।
इस वक्त अखिलेश जी Red light area के बच्चोँ को Sport सिखाते हैँ। पहले सब लोग उन्हेँ भाऊ बोलते थे लेकिन आज वो पढ़े लिखे नहीँ हैँ पर Sport मेँ अपनेँ Talent के बदौलत उन्हेँ Sir से सम्मान के साथ पुकारा जाता है।
दोस्तोँ यही वो आदमी थे जिनका जिक्र आमीर Sir नेँ किया था कि जिँदगी बदल गई।
Crime से निकलकर उनकी जिँदगी Totaly बदल गई सिर्फ और सिर्फ Sport की वजह से।
पिता का सपना World champion बनेँ बेटियाँ, गोल्ड मेडलिस्ट बनेँ बेटियाँ।
हरियाणा के एक छोटे से गाँव बलाड़ी की रहनेँ वालीँ गीता कुमारी और बबीता कुमारी दोनोँ ही रेस्लिन्ग (कुस्ती) मेँ गोल्ड मेडिलिस्ट हैँ।
बता देँ उनके गाँव से किसी महिला नेँ भी कुस्ती मेँ भाग नहीँ लिया था।
गीता कुमारी और बबीता कुमारी
हरियाणा के एक छोटे से गाँव बलाड़ी की रहनेँ वालीँ गीता कुमारी और बबीता कुमारी दोनोँ ही रेस्लिन्ग (कुस्ती) मेँ गोल्ड मेडिलिस्ट हैँ।
बता देँ उनके गाँव से किसी महिला नेँ भी कुस्ती मेँ भाग नहीँ लिया था।
गीता कुमारी और बबीता कुमारी
हमारे दादा पहलवान थे, हमारे पापा भी पहलवान रहे हैँ, तो वही हमारे Ideal हैँ, उनकी वजह से हम
रेस्लिन्ग मेँ आये हैँ। पापा का भी क्या Attitude था, बोलते थे तुम क्या उनसे कम खाते हो जो उनसे कम मेहनत करते हो।
खेल के दौरान तो कान भी टुट जाते थे, Body लड़कोँ जैसे हो गई है कौन शादी करेगा, कौन सी शास्त्रोँ मेँ लिखा है कि लड़कियाँ कुस्ती खेलेँ।
लेकिन पापा की सोँच थी कि यदि हम मेहनत करेँगे तो सामनेँ वाले के मुँह Automatic बंद हो जायेँगी।
जब हम मेडल जीतकर वापिस घर आये तो ऐसा ही हुआ, सबनेँ कहा कि आपनेँ गाँव का नाम रौशन किया है। मेरी दादी जो लड़के अपनेँ घर मेँ चाहती थीँ, उन्होँने भी कहा कि अब भगवान ऐसे सौ बेटियाँ हमेँ दे।
गीता कुमारी और बबीता कुमारी जी के पिता महाबीर फोगट जी-
Training के दौरान समाज का रवैया कैसा था, गाँव का क्या Reaction था-
गाँव वालोँ ने मेरा विरोध किया। लड़कियोँ से कुस्ती लड़वा रहा है, इनसे शादी कौन करेगा. लड़कियोँ का ये Game नहीँ होता। फिर मेरा तो एक ही जवाब था जब लड़की प्रधानमंत्री बन सकती है तो पहलवान क्योँ नहीँ बन सकती।
दोस्तोँ ऐसे जज्बे को सलाम है।
शुभम् जगलान (अपनी Age group मेँ गोल्फ के World champion)
दुनिया के सबसे महंगे खेलोँ मेँ से एक गोल्फ। एकड़ोँ
मेँ फैले हुए बड़े मैदानोँ की जरूरत, साजोँ सामान की जरूरत लाखोँ मेँ, इसीलिये इस खेल को रईसोँ का खेल माना जाता है।
एक साधारण इंसान इस खेल को अपनानेँ का ख्वाब भी नहीँ देख सकता है।
लेकिन जब हरियाणा के ईशराना मेँ एक गोल्फ अकादमी शुरू हूई तो उसी गाँव मेँ रहनेँ वाले शुभम् जगलान की दिलचस्पी इस खेल मेँ जागी। घर-घर जाकर भैँसोँ का दुध बेचनेँ वाले परिवार से ताल्लुक रखनेँ वाले शुभम् के परिवार के लिये गोल्फ जैसा महंगा खेल, खेल पाना और उसकी बुलंदियोँ को छुना सपनोँ जैसी बात थी पर मन मेँ अगर चाह हो और काबिलियत को पहचाननेँ वाले किसी इंसान का साथ तो सपनोँ को सच होनेँ पर मजबुर किया जा सकता है।
दोस्तोँ Shubham अभी सिर्फ 9 साल के हैँ और अपनेँ Age group मेँ World champion हैँ।
*आप हरियाणा के एक छोटे से गाँव से थे, कभी Golf का नाम भी नहीँ सुना था, Suddenly Golf आपके Life मेँ कैसे आ गया।
जब मैँ करीब 5 साल का था तो एक NRI नेँ एक Academy खोली थी, उनका नाम कपुर सिँह था। मेरे दादाजी नेँ मुझे भेजा था, कहा था कि घर मेँ बहुत रेस्लर हो गये हैँ, मैँ एक रेस्लिन्ग फैमिली से बिलोँग करता हूँ। फिर मैँने उस Academy मेँ जाना
शुरू किया। कुछ दिन बाद वो बंद हो गई। जब वो बंद हो रही थी, तो कपुर Sir नेँ कहा था आप बहुत अच्छा खेलते हैँ, इसे Continue रखिये। उन्होँने मुझे गोल्फ के कुछ सामान भी दिये थे। मैँ खेतोँ मेँ Practice करता था। मैँ कटोरी के अंदर पटिँग करता था।
मेरी मम्मी काफी गुस्सा करती थीँ। बहुत शोर भी होता था, कभी-कभी तो चीजेँ भी टुट जाती थीँ।
Style कहाँ से सीखा-
मैनेँ 60% Golf Youtube से ही सीखी है।
Career आगे कैसे गया-
जब मैँ करीब 5 साल का था तो एक NRI नेँ एक Academy खोली थी, उनका नाम कपुर सिँह था। मेरे दादाजी नेँ मुझे भेजा था, कहा था कि घर मेँ बहुत रेस्लर हो गये हैँ, मैँ एक रेस्लिन्ग फैमिली से बिलोँग करता हूँ। फिर मैँने उस Academy मेँ जाना
शुरू किया। कुछ दिन बाद वो बंद हो गई। जब वो बंद हो रही थी, तो कपुर Sir नेँ कहा था आप बहुत अच्छा खेलते हैँ, इसे Continue रखिये। उन्होँने मुझे गोल्फ के कुछ सामान भी दिये थे। मैँ खेतोँ मेँ Practice करता था। मैँ कटोरी के अंदर पटिँग करता था।
मेरी मम्मी काफी गुस्सा करती थीँ। बहुत शोर भी होता था, कभी-कभी तो चीजेँ भी टुट जाती थीँ।
Style कहाँ से सीखा-
मैनेँ 60% Golf Youtube से ही सीखी है।
Career आगे कैसे गया-
मैँ कुछ Tournament जीतनेँ लगा, फिर अमित जी से मिला। उन्होँने कहा आप Delhi आ जाओ क्योँकि वो एक Golf foundation चलाते हैँ, और मैँ उनका एक हिस्सा हुँ।
मैँ अब तक 110 Tournament जीत चुका हूँ। गैरी Sir के साथ मैँ दो बार खेल चुका हूँ, जो International golf के बहूत बड़े Player हैँ।
मेरा सपना है कि मैँ दुनिया का Best Golfer बनुँ और भारत के लिये मेडल्स लाऊँ।
Dear friends, इनको देखने, सुनने और पढ़नेँ के बाद आप तो जरूर कहेँगे सच मेँ मुमकिन है।
मेरी यह एक छोटी सी कोशिश थी कि हिँदी मेँ सत्यमेव जयते Season 3 के पहले Episode का कुछ अंश आप तक पहचाऊँ।
आमिर Sir जी नेँ अपनेँ देश मेँ Sport law के लिये एक
एक मुहिम छेड़ दी है। और मुझे यकीन है कि आप भी देश मेँ खिलाड़ियोँ का राज देखना चाहते हैँ और इसे वही लोग चलायेँगे जो खुद उस खेल मेँ माहिर हैँ यानि Sport person..
आपनेँ मिस कॉल कर ही दिया होगा लेकिन यदि आप भुल गये हैँ तो 18008334001 इस नं. पर मिस काल करके Sport law को Support करेँ।
सभी Readers से मैँ यही कहना चाहुँगा कि हप्ते मेँ एक दिन टाईम निकालकर अपनी कोई मनपसंद गेम जरूर खेलेँ। चाहे वो कबड्डी हो, क्रिकेट हो, बेडमिंटन हो या गिल्डी डंडा… जो भी हो पर खेलेँ जरूर।यदि आपके लिये यह आर्टिकल लाभप्रद रहा और आप भी अपनेँ Talent के बुते पर अपनीँ एक अलग पहचान बनाना चाहते हैँ और एक अच्छा Player बनना चाहते हैँ तो अपनेँ सुझाव हम तक जरूर पहुँचायेँ।
इतनेँ छोटे उम्र मेँ जब ये कर सकते हैँ तो आप क्योँ परेशान बैठे हैँ, उठ खड़े होईये और खुद को मोटिवेट करके सफल बनाते रहिये।
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